Sunday 13 October 2013

♥♥आज कल का आदमी ..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥आज कल का आदमी ..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आज कल का आदमी तो, आदमी बस नाम का है!
आदमी का अब ईमां भी, कुछ टकों, कुछ दाम का है!
कोई चोखट पर किसी की, तोड़ दे दम मिन्नतों में,
पर कहे उस घर का मालिक, वक़्त का ये आराम का है!

आज कल का आदमी तो, भावना से रिक्त है!
मार कर इंसानियत वो, बहशियत में लिप्त है!

आज कल का आदमी प्यासा, लहू के जाम का है!
आज कल का आदमी तो, आदमी बस नाम का है….

आदमी अब आदमी का, खून पीना चाहता है!
आदमी भगवान बनकर, जग में जीना चाहता है!
"देव" बस खुद को यहाँ पर, धूल तक भी न छुए,
पर वो मेहनत मुफलिसों की, और पसीना चाहता है!

आज कल इंसानियत को, आदमी ही लूटता है!
जेल, थाने और कचहरी, में रकम छूटता है!

बगलों में छुरियां हैं लेकिन, नाम मुख पे राम का है!
आज कल का आदमी तो, आदमी बस नाम का है!"

…………चेतन रामकिशन "देव".......................
दिनांक-१४.१०.२०१३

♥♥आसमां की प्यास ..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥आसमां की प्यास ..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
चलो धीरे धीरे यूँ चलते रहो तुम, ठहरने से मंजिल नहीं पास होती!
के होती ही जिनकी दिलों में निराशा, उन्हें जिंदगी से नहीं आस होती!
वो कैसे रहेंगे यहाँ एक होकर, के जिनको मोहब्बत नहीं ख़ास होती,
जो बैठे हैं हाथों में बस हाथ लेकर, उन्हें खुद की मेहनत नहीं रास होती!

जो इतिहास जग में बनाने की खातिर, चले हैं सफर चाहें कांटो भरा हो!
वो सी लेते हैं घाव हाथों से अपने, भले घाव देखो के कितना हरा हो!
सुनो "देव" वो क्या करेंगे मोहब्बत, ख्यालों में  जिनके जहर एक भरा हो,
नहीं फर्क तन के रंगों से पड़ेगा, वो दिल जिनके सीने में देखो खरा हो!

वो होकर के पर भी नहीं उड़ सकेंगे, जिन्हें आसमां की नहीं प्यास होती!
चलो धीरे धीरे यूँ चलते रहो तुम, ठहरने से मंजिल नहीं पास होती!"

.........................चेतन रामकिशन "देव".....................................
दिनांक-१३.१०.२०१३

♥♥नाम अम्बर पे...♥♥

♥♥♥♥नाम अम्बर पे...♥♥♥♥
नाम अम्बर पे लिख दिया तेरा,
और धरती तुम्हीं से प्यारी है!

तेरी चाहत, तेरी मोहब्बत से,
मेरे जीवन में खुशगवारी है!

न अँधेरा हमें सताएगा,
चाँद-तारों से अपनी यारी है!

तुमसे मिलकर ही चैन आएगा,
देखो इतनी ये बेकरारी है!

इश्क के दुश्मनों की भीड़ बहुत,
प्यार सदियों से मगर जारी है!

उसको नफरत यहाँ पे छू न सके,
प्यार का जो यहाँ पुजारी है!

"देव" दुनिया में प्यार के बिन तो,
सांस पत्थर से ज्यादा भारी है!"

...चेतन रामकिशन "देव"....
दिनांक-१३.१०.२०१३