♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मेरे मन की...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मेरे मन की भी सुनते तुम, बस अपना निर्णय देते हो।
मेरा जीवन शांत नदी सा, लेकिन तुम प्रलय देते हो।
तुम अपनी खातिर खुशियों का, ताना बाना बुनना चाहो,
लेकिन मेरी हंसी ख़ुशी में, तुम क्यों आखिर क्षय देते हो।
इस एकतरफा सोच को देखो, नहीं प्रीत बोला जाता है।
प्रीत के रिश्ते को दुनिया में, न धन से तौला जाता है।
मुझे गिराकर क्यों तुम आखिर, सोच को अपनी जय देते हो।
मेरे मन की भी सुनते तुम, बस अपना निर्णय देते हो...
तुमसे अपनी प्रीत के बदले, बस थोड़ा सा प्यार ही चाहा।
नाम मुझे तुम दे दो अपना, इतना सा ही अधिकार ही चाहा।
"देव" तुम्हे मैंने जीवन में, मान दिया है खुद से ज्यादा,
मैंने तुमसे उसके बदले, मुट्ठी भर सत्कार ही चाहा।
काश मेरी चीखों को सुनकर, निकट हमारे तुम आ जाते।
सच कहती हूँ मेरे मन पे, चाहत के बादल छा जाते।
मैं चाहती हूँ मिलन प्यार का, तुम विरह का भय देते हो।
मेरे मन की भी सुनते तुम, बस अपना निर्णय देते हो। "
....................चेतन रामकिशन "देव".....................
दिनांक-०९.०३.२०१५