Friday, 28 February 2014

♥अनदेखा...♥

♥♥♥♥अनदेखा...♥♥♥♥♥
अनदेखा करती रहती हो!
तुम विरहा का दुख देती हो!
भले दूर तुम जाओ लेकिन,
मेरे दिल में तुम रहती हो!

तुम्हें जोड़कर मैं शब्दों से,
अपनी कविता लिख लेता हूँ!
खुशियाँ दो या मुझको ग़म दो,
मैं चुपके से रख लेता हूँ!
नहीं समझतीं जब भावों को,
तो जीता हूँ तन्हाई में,
देख तेरी तस्वीर को हमदम,
अपने आंसू चख लेता हूँ!

एहसासों की धारा बनकर,
रग रग में तुम ही बहती हो!
भले दूर तुम जाओ लेकिन,
मेरे दिल में तुम रहती हो...

लेकिन इतना तड़पाना भी,
प्यार के पथ में सही नहीं है!
हमदम तेरी अनदेखी से,
जान बदन में रही नहीं है!
"देव" मगर एक दिन समझोगे,
तुम पीड़ा की ख़ामोशी को,
अभी तलक जो पीड़ा मैंने,
इन शब्दों से कही नहीं है!

भले ही बाहर से मुंह मोड़ो,
भीतर से तनहा रहती हो!
भले दूर तुम जाओ लेकिन,
मेरे दिल में तुम रहती हो!"

....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-२८.०२.२०१४

♥♥ग़म की चाहत...♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ग़म की चाहत...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कुछ ग़म रक्खा कल की खातिर, आज के गम को साथ लिया है!
मैंने भी एहसास मारकर कानूनों को, हाथ लिया है! 
नहीं किसी के जाने का डर, नहीं राह तकता आने की,
तन्हाई में बतियाने को, दर्पण अपने साथ लिया है!

मेरा ग़म फिर भी बेहतर है, लोगों जैसा छल नहीं करता!
छोड़ के मुझको एक पल को भी, ये जाने का बल नहीं करता!

मैंने गम को बहलाने को, दुख भी अपने साथ लिया है!
कुछ ग़म रक्खा कल की खातिर, आज के गम को साथ लिया है!

अपने ग़म के साथ ही मैंने, साँझ सवेरे रोटी खाई!
प्यास में ग़म से आंसू मांगे, चोट पे गम की दवा लगाई! 
"देव" मुझे बस अपने गम से, एक गिला बस ये रहता है,
अरसा बीता जिससे बिछड़े, इसने उसकी याद दिलाई!

लेकिन इसकी अच्छाई के आगे, ये गलती कमतर है!
मैं इसके दिल में रहता हूँ, इसके दिल में मेरा घर है!

नहीं ज़माने जैसा बदले, रूह से इसने साथ दिया है!
कुछ ग़म रक्खा कल की खातिर, आज के गम को साथ लिया है!"

.............................चेतन रामकिशन "देव"…..........................
दिनांक-२८.०२.२०१४