♥♥♥♥अनदेखा...♥♥♥♥♥
अनदेखा करती रहती हो!
तुम विरहा का दुख देती हो!
भले दूर तुम जाओ लेकिन,
मेरे दिल में तुम रहती हो!
तुम्हें जोड़कर मैं शब्दों से,
अपनी कविता लिख लेता हूँ!
खुशियाँ दो या मुझको ग़म दो,
मैं चुपके से रख लेता हूँ!
नहीं समझतीं जब भावों को,
तो जीता हूँ तन्हाई में,
देख तेरी तस्वीर को हमदम,
अपने आंसू चख लेता हूँ!
एहसासों की धारा बनकर,
रग रग में तुम ही बहती हो!
भले दूर तुम जाओ लेकिन,
मेरे दिल में तुम रहती हो...
लेकिन इतना तड़पाना भी,
प्यार के पथ में सही नहीं है!
हमदम तेरी अनदेखी से,
जान बदन में रही नहीं है!
"देव" मगर एक दिन समझोगे,
तुम पीड़ा की ख़ामोशी को,
अभी तलक जो पीड़ा मैंने,
इन शब्दों से कही नहीं है!
भले ही बाहर से मुंह मोड़ो,
भीतर से तनहा रहती हो!
भले दूर तुम जाओ लेकिन,
मेरे दिल में तुम रहती हो!"
....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-२८.०२.२०१४
अनदेखा करती रहती हो!
तुम विरहा का दुख देती हो!
भले दूर तुम जाओ लेकिन,
मेरे दिल में तुम रहती हो!
तुम्हें जोड़कर मैं शब्दों से,
अपनी कविता लिख लेता हूँ!
खुशियाँ दो या मुझको ग़म दो,
मैं चुपके से रख लेता हूँ!
नहीं समझतीं जब भावों को,
तो जीता हूँ तन्हाई में,
देख तेरी तस्वीर को हमदम,
अपने आंसू चख लेता हूँ!
एहसासों की धारा बनकर,
रग रग में तुम ही बहती हो!
भले दूर तुम जाओ लेकिन,
मेरे दिल में तुम रहती हो...
लेकिन इतना तड़पाना भी,
प्यार के पथ में सही नहीं है!
हमदम तेरी अनदेखी से,
जान बदन में रही नहीं है!
"देव" मगर एक दिन समझोगे,
तुम पीड़ा की ख़ामोशी को,
अभी तलक जो पीड़ा मैंने,
इन शब्दों से कही नहीं है!
भले ही बाहर से मुंह मोड़ो,
भीतर से तनहा रहती हो!
भले दूर तुम जाओ लेकिन,
मेरे दिल में तुम रहती हो!"
....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-२८.०२.२०१४
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