♥♥♥♥♥♥♥♥♥वजह...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
अब लोगों के दिल में, जगह नही मिलती।
खुश होने की एक भी, वजह नहीं मिलती।
लोग घमंडी उड़ें भले ही कितने पर,
गिर जाने पे उनको, सतह नहीं मिलती।
साँस आखिरी जूझो मंजिल पाने को,
थक जाने से जग में, फतह नही मिलती।
गलती अपनी हो तो माफ़ी में क्या डर,
जिद्दी बनकर देखो, सुलह नहीं मिलती।
मुल्क लूटने को तो, सब आमादा हैं,
संसद जैसी उनमे कलह नहीं मिलती।
वो क्या जानें तड़प, जुदाई के आंसू,
प्यार में जिनको एक पल, विरह नही मिलती।
"देव" यहाँ कानून, अमीरों का गिरवीं,
मुफ़लिस को बिन पैसे, जिरह नही मिलती। "
...............चेतन रामकिशन "देव"…...........
दिनांक--३०.१२.२०१४
♥♥♥♥♥दुशाला...♥♥♥♥♥♥
खोटा सिक्का चल जाता है।
सच का सूरज ढ़ल जाता है।
भ्रष्टाचारी रहें ताप में,
शीत में निर्धन गल जाता है।
नहीं पता भारत की नीति,
नहीं पता कैसा निगमन है।
रहे उमर भर मारा मारा,
निर्धन का ऐसा जीवन है।
उसके अधिकारों को लूटें,
लोग यहाँ कुछ मुट्ठी भर ही,
आँख पे पट्टी कानूनों की,
निर्धन का बस यहाँ मरन है।
निर्धन का सच भी अनदेखा,
झूठ ठगों का चल जाता है।
भ्रष्टाचारी रहें ताप में,
शीत में निर्धन गल जाता है...
काश के निर्धन के घर दीपक,
काश उजाला उसके घर हो।
फटे हैं कपड़े, शीत में कांपे,
काश दुशाला उसके सर हो।
व्यवस्थाओं के कान हैं बहरे,
निर्धन की आहें नहीं सुनती,
कब तक धरती बने बिछौना,
कब तक उसकी छत अम्बर हो।
"देव" तड़प में कटता है दिन,
रोकर उसका कल आता है।
भ्रष्टाचारी रहें ताप में,
शीत में निर्धन गल जाता है। "
.....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक--२९.१२.२०१४