Thursday, 24 December 2015

♥निर्मोही...♥♥

♥♥♥♥♥निर्मोही...♥♥♥♥♥
अश्रुपूरित नयन हो गये। 
सारे सपने दहन हो गये।  
मेरे शब्द बताकर झूठे,
सच्चे उनके कहन हो गये। 
निर्मोही होकर वो मुझसे,
तोड़ गए सम्बन्ध नेह का,
नहीं पता के उनको कैसे,
क्षण विरह के सहन हो गये। 

मैं भी रूप किसी मानव का,
पत्थर सा निष्प्राण नहीं था। 
मेरा मन भी फूल सा कोमल,
विष में डूबा वाण नहीं था। 
हो करवद्ध किया था मैंने,
उनसे अपना भाव निवेदन,
तोड़ दिया मेरे हृदय को,
जबकि मुझको त्राण नहीं था। 

घाव मिले हैं, शूल भी देखो,
कुंठा के उत्पन्न हो गये। 
नहीं पता के उनको कैसे,
क्षण विरह के सहन हो गये.... 

या तो व्याकुलता न समझें,
या संवेदनहीन हो गये। 
मैं पीड़ा में खूब कराहा,
वो सुख में आसीन हो गये। 
" देव " हमारी स्मृति में,
उनकी छवि वसी गहरे से,
और वो हमको विस्मृत करके,
किसी और में लीन हो गये। 

पीड़ा के इन प्रहारों से,
हम तो मरणासन्न हो गये। 
नहीं पता के उनको कैसे,
क्षण विरह के सहन हो गये। "


........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-२४.१२.२०१५ 
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