Wednesday 14 January 2015

♥वज्रपात...♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥वज्रपात...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
वज्रपात भी मौसम अब तो, निर्धन पे करने निकला है। 
गिरता पारा उघड़े तन के, जीवन को हरने निकला है। 
रह सहकर जिनके सर छप्पर, वो भी पहुंचे बदहाली में,
सर्दी में बारिश का पानी, उनका घर भरने निकला है। 

रेन वसेरा हुआ नाम का और अलावों में घोटाला। 
चंहुओर लगता है देखो, निर्धन की किस्मत पे ताला। 

शीतकाल भी दानव बनकर, निर्धन को चरने निकला है। 
वज्रपात भी मौसम अब तो, निर्धन पे करने निकला है। "

....................चेतन रामकिशन "देव"…..................
दिनांक--१४.०१.१५