Saturday, 26 September 2020

♥♥माँ ( ममता की सम्पदा )...♥♥

  ♥♥माँ ( ममता की सम्पदा )...♥♥

ममता की सम्पदा है, स्नेह की निधि है। 

माँ का है मन सुकोमल, वो तो सरल, सुधि है। 

माँ जैसा कोई जग में, पर्याय ही कहाँ है,

दुविधाएं दूर करती, माँ ऐसी प्राविधि है। 


माँ साथ है जो अपने, तो बचपना है कायम,

माँ का दुलार ऐसा, के घास हो मुलायम,

माँ के बिना तो जीना, लगता है खाली, खाली,

माँ रंग है फागुन का, माँ से खिले दिवाली। 

माँ ने हमें है पाला है, बड़े प्यार से, जतन से ,

हर दर्द मिट गया है, माँ की मधुर छुअन से। 

माँ है नदी शहद की, माँ नील सा गगन है, 

माँ शब्द तुमको मेरा, हर बार ही नमन है। 


माँ स्वार्थ  से रहित है, न ही कोई बदी है। 

माँ का है मन सुकोमल, वो तो सरल, सुधि है.....


पांवों में छाले थे पर, गोदी हमें उठाया,

हम लड़खड़ाके गिरते, चलना हमें सिखाया। 

माँ तूने हमको खुशियों के, फूल ही दिए हैं ,

संतान हित में तुमने, अश्रु बहुत पिए हैं। 

ममता भरी तपस्या की नायिका हो माँ तुम,

लोरी सुनाने वाली हाँ गायिका हो माँ तुम। 

माँ " देव " के शब्दों का उपहार तुम पे अर्पण। 

माँ हम तेरी परछाई, माँ तू हमारा दर्पण। 


माँ तुझसे ये धरा है, ब्रह्माण्ड है , सदी है। 

माँ का है मन सुकोमल, वो तो सरल, सुधि है। "


चेतन रामकिशन " देव" 

दिनांक - २७.०९.२०२० 

( सर्वाधिकार सुरक्षित, मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित )




 

 


Monday, 24 August 2020

♥♥टूट गया दिल...♥♥

 ♥♥टूट गया दिल...♥♥

टूट गया दिल, या तो खुद ही,

या फिर दिल को तोड़ दिया है।

या फिर मुझको बुरे वक़्त ने,

तन्हा करके छोड़ दिया है।

मेरी आँखों के ख्वाबों को,

मार दिया खिलने से पहले,

इसीलिए सपनों के पथ पे,

मैंने चलना छोड़ दिया है।


जो कुछ भी हूँ, ठीक हूँ खुद में,

बुरा किसी का क्या मानूंगा।

तुम्हें परख कर, परख लिया जग,

और किसी को क्या जानूँगा।

मौन हो गया अंतर्मन से, 

न ही आशा, नहीं निराशा,

दर्द से गहरी हुई दोस्ती,

नहीं खुशी को पहचानूँगा।


तेरी यादों का नाता अब,

गुजरे पल से जोड़ दिया है.

टूट गया दिल, या तो खुद ही,

या फिर दिल को तोड़ दिया है....


हलचल है, अब शोर बहुत है,

घाव भी अब रिसते रहते हैं।

फंदे दुश्मन की चालों के,

जीवन में कसते रहते हैं।

" देव" तरीका ये क्या जग का,

औरों पर इल्ज़ाम लगाना,

लोग यहां औरों के दुख पे,

आख़िर क्यों हंसते रहते हैं।


कभी लिखा था जो ख़त तुमको,

उस पन्ने को मोड़ दिया है।

टूट गया दिल, या तो खुद ही,

या फिर दिल को तोड़ दिया है। "


चेतन रामकिशन " देव"

दिनांक- 24. 08. 2020 

( मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित, सर्वाधिकार सुरक्षित)

Friday, 12 June 2020

♥♥इज़हार...♥♥

♥♥इज़हार...♥♥
गुनगुनाते रहे हम तुझे रात भर,
सामने से मगर कुछ भी कह न सके।
खिड़कियां खोलकर के निहारा तुझे,
तुझको देखे बिना हम तो रह न सके।

नाम कागज पे लिखकर संजोया तेरा
आरज़ू तेरी दिल में दबाये रखी।
कोई देखे तुझे और सवालात हों,
तेरी तस्वीर सबसे छुपाये रखी।
तेरे कदमों के नक़्शे निशां पे चला,
धूप में छांव में, और दिन रात में,
मन की हर एक तपन का शमन है तु ही,
तु नमी,ओस और तु ही बरसात में।

तुझसे संवाद में भी हुआ मौन मैं,
शब्द ठहरे के, धारा में बह न सके।
गुनगुनाते रहे हम तुझे रात भर,
सामने से मगर कुछ भी कह न सके....

मेरा संकोच इज़हार करने न दे,
होगा बेहतर तू ही, मेरा मन जान ले।
तुझको अपना समझते जमाना हुआ,
तू भी अपना मुझे, अब सखी मान ले।
"देव " ख्वाबों की नौका चलेगी तभी,
जो तू पतवार बनकर मेरे संग हो।
तू दिवाली के रौशन दिए की तरह,
तुझसे होली का झिलमिल सखी रंग हो।

प्रेम के पथ पे मैं नव पथिक की तरह,
पांव विरह के काँटों को सह न सके।
गुनगुनाते रहे हम तुझे रात भर,
सामने से मगर कुछ भी कह न सके। "

चेतन रामकिशन 'देव'
दिनांक-12.06.2020
 
(मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित, सर्वाधिकार सुरक्षित )

Monday, 4 May 2020

♥ तुम्हारा नाम... ♥

♥♥♥ तुम्हारा नाम... ♥♥♥
वो कागज़ अब महज़ कागज़ नहीं है,
वो जिसपे नाम लिखा है तुम्हारा।
रखेंगे डायरी में ये समझकर,
कोई रिश्ता तो तुमसे है हमारा।

नहीं परवान चढ़ पायी मोहब्बत,
रखूं क्यों इसका भी अफ़सोस मैं अब,
नहीं था चाँद के शायद मैं काबिल,
क्या रख दूँ किसी पर दोष मैं अब ,

तुम्हें बस दूर से देखा करेंगे,
मेरे दिल की नदी का तुम किनारा।
वो कागज़ अब महज़ कागज़ नहीं है,
वो जिसपे नाम लिखा है तुम्हारा...

मोहब्बत में सदा पाने की हसरत,
तो फिर खोने का मतलब क्या रहेगा।
यदि ख्वाहिश रखूं हंसने की हर दम,
तो फिर रोने का मतलब क्या रहेगा।

तुम्हारे ख्वाब देखेंगी निगाहें,
उठेंगे सोचकर तुमने पुकारा।
वो कागज़ अब महज़ कागज़ नहीं है,
वो जिसपे नाम लिखा है तुम्हारा...

कविता में लिखेंगे "देव" तुमको,
ग़ज़ल में भी तुम्हारा अक्स होगा।
जो तुमको चाहता पाकीज़गी से,
वो कोई मुझ तरह का शख़्स होगा।

चमकना तुम यूँ चंदा की तरह,
मैं देखूंगा तुम्हें बनकर सितारा।
वो कागज़ अब महज़ कागज़ नहीं है,
वो जिसपे नाम लिखा है तुम्हारा। "

चेतन रामकिशन "देव "
दिनांक-05.05.2020


"
 मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित। "




Monday, 9 December 2019

♥♥♥ शायद... ♥♥♥

♥♥♥ शायद... ♥♥♥
शायद मिलना नहीं है मुमक़िन,
क्यों फिर उन्हें पुकारा जाए।
हंसकर, रोकर कटेगा जैसे,
तन्हा सफ़र गुज़ारा जाए।
बहुत तपाया आग ने ग़म की,
स्याह हुआ सारा उजलापन,
अपना चेहरा चलो अश्क़ से,
धोकर यहां निखारा जाए।

छूट गया है हाथ, हाथ से,
कदमताल भी नहीं रही है।
मौन हो गए, चुप्पी साधी,
बोलचाल भी नहीं रही है।
अब तो मुझे देखकर के भी,
अपने रुख को बदल रहे हैं।
वो इतने बेदर्द हो गए,
जबकि पत्थर पिघल रहे हैं।

अपने दिल से चलो प्यार का,
गाढ़ा रंग उतारा जाए। 
शायद मिलना नहीं है मुमक़िन,
क्यों फिर उन्हें पुकारा जाए।

मुझे छोड़ना, बेहतर समझा,
उनके मन की वो ही जानें।
जिसको चाहें गैर समझ लें,
जिसको चाहें अपना मानें।
प्यार, मोहब्बत के रिश्ते में,
अब कसमों का दौर नहीं है।
कोई तड़पे, या थम जाये,
किसी को इसका गौर नहीं है।

सुनो "देव" टूटे दर्पण में,
खुद को चलो निहारा जाए।
शायद मिलना नहीं है मुमक़िन,
क्यों फिर उन्हें पुकारा जाए। "

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक- १०.१२.२०१९

Wednesday, 4 December 2019

♥♥♥अलगाव... ♥♥♥

♥♥♥अलगाव... ♥♥♥
स्वयं से ही अलगाव हुआ है,
मन में गहरा घाव हुआ है।
सखी तुम्हारे बहिर्गमन से,
मुझपे ये प्रभाव हुआ है।

तुम संग थीं तो प्रेम था खुद से,
नयन स्वप्न से हरे भरे थे।
साथ तुम्हारा धवल चांदनी,
कभी तिमिर से नहीं डरे थे।
तुम संग थीं तो जीवन पथ पर,
हम एकाकी नहीं हुए थे,
खिले फूल से भरी हथेली,
कंटक क्षण भर नहीं छुए थे।

एक तुम्हारे परिवर्तन से,
सुख का घना अभाव हुआ है।
सखी तुम्हारे बहिर्गमन से,
मुझपे ये प्रभाव हुआ है।

तुम संग थीं तो आकांक्षा थीं,
उत्सव सा जीवन लगता था। 
रात को खुश होकर सो जाना,
और सुबह हंसकर जगता था। 
तुम संग थीं तो अनुभूति के,
सरिता, सागर लहर रहे थे। 
" देव " उड़ानें भरता था मन,
ध्वजा प्रेम के फहर रहे थे। 

शिला खंड जैसा निर्जीवी,
अब मेरा स्वभाव हुआ है। 
सखी तुम्हारे बहिर्गमन से,
मुझपे ये प्रभाव हुआ है। "

चेतन रामकिशन " देव "
०४. १२.२०१९ 

Tuesday, 6 August 2019

♥♥♥रज्जु ... ♥♥♥

♥♥♥रज्जु ... ♥♥♥
मन की शुष्क परत पे घर्षण, पीड़ा की रज्जू करती है।
और उपर से मेरी शत्रुता, वेग में उसके बल भरती है।
नंगे पांवों पथ पर जाओ, तो उपचार रखो तुम स्वयं का,
ये दुनिया है, बुरे वक्त में, मदद किसी की कब करती है।

बस केवल भ्रमजाल है कोई, बस खुद का महिमामंडन है।
चलें झूठ की पगडंडी पर, और यहाँ सच का खंडन है।
हम आंखों के नीर से जिनके, जीवन को सुखमय करते हैं।
वही लोग देखो सपनों की, सस्ती कीमत तय करते हैं।

जरा जरा से लोभ पे देखो, मानवता भी अब मरती है।
मन की शुष्क परत पे घर्षण, पीड़ा की रज्जू करती है...

वाणी भी है मौन सरीखी, कंठ भी अब स्वर भूल रहा है।
मेरे हिस्से कंटक कंटक, उनके हिस्से फूल रहा है।
रण कौशल में शून्य हैं किन्तु, छदम से अपनी जय करते हैं।
निर्बल, निर्धन, असहायों के, जीवन पथ में भय करते हैं। 

दुरित काम से ऐसे जन की,  कहाँ आत्मा भी डरती है।
मन की शुष्क परत पे घर्षण, पीड़ा की रज्जू करती है। "

चेतन रामकिशन " देव "
06.08.2019