♥♥तुम भूले, कुछ हम भूले...♥♥
तुम भूले, कुछ हम भूले, कुछ उम्र बढ़ी,
हम दोनों के बीच फासला बड़ा हुआ।
याद का क्या है, याद तो आती है लेकिन,
फ़र्ज़, मुहब्बत के आगे अब खड़ा हुआ।
कभी कभी ऐसे ही इम्तहां होते हैं,
न चाहकर भी दरकिनार हो जाते हैं।
मिल जाती हैं, ख्वाहिश सारी मिटटी में,
ख्वाब भी सारे चूर चूर हो जाते हैं।
रिश्तों की बस नींव खड़ी रह जाती है,
कसमें वादों की कड़ियाँ खुल जाती हैं।
घर की इज़्ज़त, कंधे पे जिम्मेदारी,
प्यार वफ़ा की फुलवारी मुरझाती हैं।
अक्सर वो महसूस यूँ ही हो जाता है,
जिसका चेहरा दिल दर्पण में जड़ा हुआ।
याद का क्या है, याद तो आती है लेकिन,
फ़र्ज़, मुहब्बत के आगे अब खड़ा हुआ....
आज शाम से फिर उसका आभास हुआ ,
वो जिससे जीवन भर का वनवास हुआ।
हम भी पंछी की भांति ही बन बैठे,
अलग अलग डालों पर जो प्रवास हुआ।
"देव" वो सुरमय बोली, कहाँ सुनाई दे,
जीवन के मसलों में, सब कुछ गुमसुम है।
एक कोना मन का खाली ही रहता है,
उसके बिन जीवन में हाँ कुछ तो कम है।
जीवन के अनसुलझे किस्से बाकी हैं,
जीवन का संघर्ष भी, अब तो कड़ा हुआ।
याद का क्या है, याद तो आती है लेकिन,
फ़र्ज़, मुहब्बत के आगे अब खड़ा हुआ। "
चेतन रामकिशन " देव"
दिनांक - १६.१२.२०२४
( सर्वाधिकार सुरक्षित, मेरी ये रचना मेरे chetankavi.blogspot.in ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित )
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