Wednesday, 16 March 2011

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥बेबस लड़की की मोहब्बत ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥बेबस लड़की की मोहब्बत ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"जिस दिन मैंने इस दुनिया में अपना पहला कदम रखा था!
माँ ने दूध दिया था मुझको, और पिता ने गोद भरा था!
घर में सब कहते फिरते थे, लक्ष्मी मेरे रूप में आई,
मेरे नाम पे ही बाबा ने, अपने घर का नाम रखा था!

आज मगर जब बड़ी हुई तो प्रेम के अंकुर फूट गए!
ये सुनते ही सारे रिश्ते, एक पल में ही टूट गए!
मेरी माँ कहती है के, बदनामी ना कर देना तुम!
लाखों का ये महल बना है है, नीलामी ना कर देना तुम!

प्यार खुदा है ये सब कहते, प्यार की पर औकात नहीं है!
अपने रहबर बनके लूटें, गैरों की कोई बात नहीं है……..♥ ♥ ♥ ♥ ♥

ये सच है के माँ ने पाला, जीने के अंदाज सिखाए!
और पिता ने गले लगाकर, सुख के संसाधन दिलवाए!
इनकी इज्ज़त करती हूँ मैं, वंदन के हूँ भाव जगाती,
पर उसको मैं कैसे भूलूं, प्यार के जिसने ख्बाव सजाए!

आज मैं उसके साथ खड़ी तो, सारे अपने रूठ गए!
आज मगर जब बड़ी हुई तो प्रेम के अंकुर फूट गए!

मेरी माँ भी कहती है के, बदनामी ना कर देना तुम!
तेरे पिता का नाम है ऊँचा, गुमनामी ना कर देना तुम!

प्यार खुदा है ये सब कहते, प्यार की पर औकात नहीं है!
दिन कटते हैं अश्कों के संग, हर्ष भरी अब रात नहीं है…..♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥

मैंने उनसे मिन्नत की है, अपने दिल का हाल बताया!
उसके बिन जीना है मुश्किल, ये उनको दर्पण दिखलाया!
वो कहते हैं एक नहीं है उसकी और ये जात हमारी,
मानवता जाति से नीची, सबने मुझको पाठ पढाया!

जातिवाद के इस बंधन से, प्रेम के धागे टूट गए!
आज मगर जब बड़ी हुई तो प्रेम के अंकुर फूट गए!

"देव" से मिलने की कोशिश और नादानी ना कर देना तुम!
कर देंगे हम हत्या तेरी, बदनामी ना कर देना तुम!

प्यार खुदा है ये सब कहते, प्यार की पर औकात नहीं है!
झूठी इज्ज़त पे मरते सब, सुनता दिल की बात नहीं है!

प्यार खुदा है ये सब कहते, प्यार की पर औकात नहीं है!
अपने रहबर बनके लूटें, गैरों की कोई बात नहीं है!”

" आप ही बताओ, कि क्या करे ये हमारी" बेबस लड़की"- चेतन रामकिशन (देव)"

-------------------------विरह की बेबसी --------------------------------------


 -------------------------विरह की बेबसी --------------------------------------
"अब आ भी जाओ,ये तन्हाई रुलाती है हमें !
विरहा में सर्द हवा और सताती है हमें !
तड़प के-डर से, तेरे खवाबों से बचना चाहा!
नींद में घेर न लें, रात भर जगना चाहा!
बंद दरवाजा, फिर खिड़की पर परदे ढक कर ,
पलक दबाने को उनपर हाथ जो रखना चाहा!
बस यही बात तो अग्नि में जलती है हमें!
हाथ की अंगूठी तेरी याद दिलाती है हमें!

अब आ भी जाओ,ये तन्हाई रुलाती है हमें.............................

तड़प के डर से ये, काम भी करना चाहा!
धोये कपड़े,तो कभी गेंहू फटकना चाहा!
काम निबटाये, पानी भरके फिर नहाकर के,
सुखाके बाल, भीगे वस्त्र बदलना चाहा!
बस यही बात तो लज्जा में डूबाती है हमें!
उनकी तस्वीर आईने में, नज़र आती है हमें!


अब आ भी जाओ,ये तन्हाई रुलाती है हमें.............................

तड़प के डर से चेहरा भी पलटना चाहा!
भागकर, दौड़कर कमरे से निकलना चाहा!
धूप की आंच में कपड़ो को सुखाने के लिए,
मैंने सीढ़ी से अपनी छत्त पर पहुंचना चाहा!

"देव" ये बात तो लज्जा में डुबाती है हमें!
उनकी चिठ्ठी लिए, मेरी सास बुलाती है हमें!


"" प्रेम के लिए किसी इंसान का प्रत्यक्ष होना जरुरी नहीं, प्रेम तो परोक्ष रूप से भी किया जाता है! तो आइये विरह के इन नाजुक लम्हों की प्राप्ति को प्रेम करैं...चेतन रामकिशन"