♥♥♥♥♥♥♥बलिहारी...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुझे नहीं अनदेखा करता, बेशक की जिम्मेदारी है।
हाँ सच है कर्तव्य जरुरी, पर तू प्राणों से प्यारी है।
बोध तुम्हारी बेचैनी का, नहीं बचा मेरी नज़रों से,
सच पूछों तो तुम पर मेरी, रूह तलक भी बलिहारी है।
पर जीवन के कर्मठ पथ पर, खुद में जीना श्रेष्ठ नहीं है।
इतना ऊँचा बन नहीं सकता, जो कोई मुझपे ज्येष्ठ नहीं है।
सबके हित में निहित हूँ लेकिन, तू भी मुझको मनोहारी है।
सच पूछों तो तुम पर मेरी, रूह तलक भी बलिहारी है....
नहीं उपेक्षित किया है तुमको, इच्छा रखी सदा मिलन की।
कभी पढ़ो अपनी नज़रों से, प्रेम सुधा मेरे जीवन की।
"देव" अपेक्षा यही रखी है, तुम भी समझो ध्येय को मेरे,
बीज कुचलने से न पनपे, बेल कोई भी अपनेपन की।
नतमस्तक हूँ सम्मुख तेरे, तू स्वागत की अधिकारी है।
सच पूछों तो तुम पर मेरी, रूह तलक भी बलिहारी है। "
........चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक-१६.०१.२०१६
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "
तुझे नहीं अनदेखा करता, बेशक की जिम्मेदारी है।
हाँ सच है कर्तव्य जरुरी, पर तू प्राणों से प्यारी है।
बोध तुम्हारी बेचैनी का, नहीं बचा मेरी नज़रों से,
सच पूछों तो तुम पर मेरी, रूह तलक भी बलिहारी है।
पर जीवन के कर्मठ पथ पर, खुद में जीना श्रेष्ठ नहीं है।
इतना ऊँचा बन नहीं सकता, जो कोई मुझपे ज्येष्ठ नहीं है।
सबके हित में निहित हूँ लेकिन, तू भी मुझको मनोहारी है।
सच पूछों तो तुम पर मेरी, रूह तलक भी बलिहारी है....
नहीं उपेक्षित किया है तुमको, इच्छा रखी सदा मिलन की।
कभी पढ़ो अपनी नज़रों से, प्रेम सुधा मेरे जीवन की।
"देव" अपेक्षा यही रखी है, तुम भी समझो ध्येय को मेरे,
बीज कुचलने से न पनपे, बेल कोई भी अपनेपन की।
नतमस्तक हूँ सम्मुख तेरे, तू स्वागत की अधिकारी है।
सच पूछों तो तुम पर मेरी, रूह तलक भी बलिहारी है। "
........चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक-१६.०१.२०१६
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "