Monday, 1 July 2013

♥♥दो कदम.. ♥♥

♥♥♥♥♥♥♥दो कदम.. ♥♥♥♥♥♥♥
दो कदम भी मेरे साथ चल न सके!
जो तिमिर में दीया बनके जल न सके!
ऐसे लोगों को कैसे मैं अपना कहूँ, 
आह सुनकर मेरी जो पिघल न सके!

प्रेम का जिनके मन, कोष कोई नहीं!
दर्द देकर कहें, दोष कोई नहीं!
ऐसे लोगों को इन्सान कैसे कहूँ,
तोड़कर दिल जिन्हें रोष कोई नहीं!

रंग चाहत का मैं उनपे क्या डालता,
जो मेरे सुख में देखो, मचल न सके!
ऐसे लोगों को कैसे मैं अपना कहूँ, 
आह सुनकर मेरी जो पिघल न सके..

दिल किसी का, दुखाकर मैं सो न सकूँ!
बीज नफरत का मैं दिल में बो न सकूँ!
"देव" ये मेरी आदत है और आरजू,
झूठ का रिश्ता मैं देखो, ढ़ो न सकूँ!

मन को उम्मीद है, कल को बदलेंगे वो,
दर्द के आज पल जो, बदल न सके!
ऐसे लोगों को कैसे मैं अपना कहूँ, 
आह सुनकर मेरी जो पिघल न सके!"

..........चेतन रामकिशन "देव".........
दिनांक-०२.०७.२०१३