♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दिल का कागज़..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
हम अपने दिल के कागज़ पर, अनुभूति के पल लिखते हैं!
कभी हंसी लिखते चेहरे की, कभी नयन का जल लिखते हैं!
जो लेखक अपने शब्दों से, भेदभाव की महिमा गाते!
जो लेखक अपने शब्दों से, बस हिंसा का पाठ पढ़ाते!
ऐसे लेखक सारा जीवन, रहते हैं बस अंधकार में,
जो लेखक अपने शब्दों से, मानवता के दीप बुझाते!
हम लिखते हैं समरसता को, न दंगा, न छल लिखते हैं!
हम अपने दिल के कागज़ पर, अनुभूति के पल लिखते हैं!"
..........."शुभ-दिन".......चेतन रामकिशन "देव"...........