"♥ ♥ ♥ ♥ ♥♥ पुतला दहन दशानन ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥
दुरित सोच का अंत नहीं है, नहीं सत्य का पालन!
ऐसे में बस लगे निरर्थक, पुतला दहन दशानन!
आज भी सीता को हरते हैं, देश में ढेरों रावण!
अपने झूठ के सम्मुख लगता, उनको सच साधारण!
गली गली हर चौराहे पर रावण हैं उजले से,
मन से अपने भुला रहे हैं, राम के शुद्ध उदाहरण!
श्री राम की मर्यादा का नहीं हो रहा पालन!
ऐसे में बस लगे निरर्थक, पुतला दहन दशानन............
अपने मन के चिंतन में हम नहीं घोलते शुद्धि!
झूठ बोलकर बनना ऊँचा, लगता है उपलब्धि!
मानवता का नाम न जिसमें ऐसा जीवन व्यर्थ,
औरों का सुख लूटके करते, जीवन में सम्रद्धि!
अपने हित के लिए हो रहा मिथ्या का सञ्चालन!
ऐसे में बस लगे निरर्थक, पुतला दहन दशानन............
आओ विजय के पर्व से सीखें, सत्यव्रत का ज्ञान!
अपने मन में लायें नम्रता, त्याग चलें अभिमान!
यदि सोच को हमने अपनी नहीं बनाया बेहतर,
कहाँ मनों से हो पायेगा, रावण का अवसान!
आओ सत्य के पदचिन्हों को, करें मनों में धारण!
तभी सार्थक हो पायेगा, पुतला दहन दशानन!"
"तो आइये चिंतन करें, मनन करें! त्योहारों से प्रेरणा लें, अपने मन से रावण का अंत करना होगा, तभी दशानन का पुतला दहन करने में सार्थकता आएगी!-चेतन रामकिशन "देव"