Friday 16 December 2011

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प्रेम है कोमल रेशम जैसा, हिंसा तो है शूल!
प्रेम जहाँ पुष्पों की माला, हिंसा है त्रिशूल!

प्रेम नहीं तो मानव जीवन लगता है पाषाण,
प्रेम नहीं तो शब्द भी लगते हैं जहरीले वाण!

प्रेम नहीं तो माँ जननी की माटी लगती धूल!
प्रेम है कोमल रेशम जैसा, हिंसा तो है शूल!

---"शुभ-दिन"---चेतन रामकिशन "देव"---
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आओ निकालें अपने मन से, मैले दुरित विचार!
जात धर्म से ऊपर उठकर करें मनुज से प्यार!

ईश्वर ने जब बिना भेद के दिया हमें ये जन्म!
हम आपस में क्यूँ फिर करते, भेदपूर्ण ये कर्म!

आओ गिरा दें जात-धर्म की स्वयंनिर्मित दीवार!
जात धर्म से ऊपर उठकर करें मनुज से प्यार!"
------"शुभ-दिन"--------चेतन रामकिशन "देव"--