♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ग़मों की बरफ..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जमे आंसुओं की बरफ को ग़मों की, अगन में तपाकर बहाने का मन है!
मुझे अपने माथे पे पड़ती शिक़न को, के झूठी हंसी से दबाने का मन है!
ये दुनिया है पत्थर मगर फिर भी इसको, के अपने दुखों को सुनाने का मन है,
के मैं रो रहा हूँ मगर इस जहाँ को, के अपने से हुनर से हंसाने का मन है!
यहाँ पे निवेदन, यहाँ मिन्नतों की, कद्र देखो कोई भी करता नहीं है!
किसी के ज़ख्म को मरहम और दवा से, कोई एक पल को भी भरता नहीं है!
इसी वास्ते देखो अपने ज़ख्म पर, के अब खुद ही मरहम लगाने का मन है!
जमे आंसुओं की बरफ को ग़मों की, अगन में तपाकर बहाने का मन है…
यहाँ हसरतों की जली आज होली, के इस रौशनी से दिवाली मनाऊं!
कोई आदमी तो नहीं सुन रहा है, के अब पत्थरों को मोहब्बत सिखाऊं!
सितमगर बहुत हैं, नहीं कोई अपना, मैं किसको जहाँ में के अपना बताऊँ,
मेरे दिल ने देखो पढ़ी है मोहब्बत, इसी वास्ते मैं मोहब्बत निभाऊं!
अभी बेबसी है, कभी तो ख़ुशी पर, के मेरी तरफ को भी आया करेगी!
के पायल हंसी की कभी तो हमारे, के कानों में गुंजन सुनाया करेगी!
इसी वास्ते देखो इस दर्दे गम को, के सीने से अपना लगाने का मन है!
जमे आंसुओं की बरफ को ग़मों की, अगन में तपाकर बहाने का मन है…
नहीं दर्द पाकर के थमना है मुझको, नहीं चोट खाकर के रुकना है मुझको!
ग़मों से नहीं खौफ खाना है मुझको, नहीं दर्द के आगे झुकना है मुझको!
सुनो "देव" हम तो बढे जायेंगे अब, के हम जंग जीवन से करते रहेंगे!
यहाँ नूर बनकर के लफ्जों से अपने, के दुनिया में हम तो बिखरते रहेंगे!
कोई साथ दे या नहीं साथ दे अब, के मुझको किसी से शिकायत नहीं है!
के मैं जैसा हूँ मैं तो वैसा दिखूंगा, मेरी शख्सियत में रवायत नहीं है!
मशीनों के युग में, बिना दिल के बुत को, के ममता की लोरी सुनाने का मन है!
जमे आंसुओं की बरफ को ग़मों की, अगन में तपाकर बहाने का मन है!"
"
दर्द-एक ऐसा शब्द जिससे हर कोई बचना चाहता है पर दर्द भी गतिशील होता है, वो जीवन पथ में मानव से जरुर भेंट करता है, जब व्यक्ति उस दर्द को अपने अनुभव में समाहित कर लेता है तो वो दर्द, शक्ति का काम करता है, हाँ अत्यंत पीड़ा व्यक्ति को परिवर्तित करने का प्रयास करती है मगर जो दर्द को शक्ति बना लेते हैं वे योद्धा हो जाते हैं, तो आइये दर्द को शक्ति बनायें!"
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-११.१०.२०१३