Friday 28 February 2014

♥अनदेखा...♥

♥♥♥♥अनदेखा...♥♥♥♥♥
अनदेखा करती रहती हो!
तुम विरहा का दुख देती हो!
भले दूर तुम जाओ लेकिन,
मेरे दिल में तुम रहती हो!

तुम्हें जोड़कर मैं शब्दों से,
अपनी कविता लिख लेता हूँ!
खुशियाँ दो या मुझको ग़म दो,
मैं चुपके से रख लेता हूँ!
नहीं समझतीं जब भावों को,
तो जीता हूँ तन्हाई में,
देख तेरी तस्वीर को हमदम,
अपने आंसू चख लेता हूँ!

एहसासों की धारा बनकर,
रग रग में तुम ही बहती हो!
भले दूर तुम जाओ लेकिन,
मेरे दिल में तुम रहती हो...

लेकिन इतना तड़पाना भी,
प्यार के पथ में सही नहीं है!
हमदम तेरी अनदेखी से,
जान बदन में रही नहीं है!
"देव" मगर एक दिन समझोगे,
तुम पीड़ा की ख़ामोशी को,
अभी तलक जो पीड़ा मैंने,
इन शब्दों से कही नहीं है!

भले ही बाहर से मुंह मोड़ो,
भीतर से तनहा रहती हो!
भले दूर तुम जाओ लेकिन,
मेरे दिल में तुम रहती हो!"

....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-२८.०२.२०१४

♥♥ग़म की चाहत...♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ग़म की चाहत...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कुछ ग़म रक्खा कल की खातिर, आज के गम को साथ लिया है!
मैंने भी एहसास मारकर कानूनों को, हाथ लिया है! 
नहीं किसी के जाने का डर, नहीं राह तकता आने की,
तन्हाई में बतियाने को, दर्पण अपने साथ लिया है!

मेरा ग़म फिर भी बेहतर है, लोगों जैसा छल नहीं करता!
छोड़ के मुझको एक पल को भी, ये जाने का बल नहीं करता!

मैंने गम को बहलाने को, दुख भी अपने साथ लिया है!
कुछ ग़म रक्खा कल की खातिर, आज के गम को साथ लिया है!

अपने ग़म के साथ ही मैंने, साँझ सवेरे रोटी खाई!
प्यास में ग़म से आंसू मांगे, चोट पे गम की दवा लगाई! 
"देव" मुझे बस अपने गम से, एक गिला बस ये रहता है,
अरसा बीता जिससे बिछड़े, इसने उसकी याद दिलाई!

लेकिन इसकी अच्छाई के आगे, ये गलती कमतर है!
मैं इसके दिल में रहता हूँ, इसके दिल में मेरा घर है!

नहीं ज़माने जैसा बदले, रूह से इसने साथ दिया है!
कुछ ग़म रक्खा कल की खातिर, आज के गम को साथ लिया है!"

.............................चेतन रामकिशन "देव"…..........................
दिनांक-२८.०२.२०१४

Thursday 27 February 2014

♥जीत की लय...♥

♥♥♥जीत की लय...♥♥♥
अपनी मंजिल तय करनी है!
हमें जीत की लय करनी है!
झूठ भले कितना भी घेरे,
हमें सत्य की जय करनी है!

रात ग़मों की गहराये तो,
चाँद से हम उजियारा लेंगे!

प्यास सताएगी जब हमको,
तो आँखों से धारा लेंगे!

धीरे धीरे, हौले हौले,
कर लेंगे मजबूत जड़ों को,

अगर रौशनी मंद पड़ेगी,
तो अम्बर से तारा लेंगे!

सोच हमें अपने तन मन की,
मेहनत में तन्मय करनी है!
झूठ भले कितना भी घेरे,
हमें सत्य की जय करनी है...

पथ बेशक पथरीला है पर,
काँटों से न घबराना है!

भले फिसल के गिर जायें पर,
फिर से हमको उठ जाना है!

"देव" भले ही इस जीवन का,
हमको कोई पता नहीं है,

लेकिन हमको जीते जी न,
इस जीवन में थक जाना है! 

मुश्किल के लम्हातों में भी,
हंसकर हमे विजय करनी है!
झूठ भले कितना भी घेरे,
हमें सत्य की जय करनी है!"

......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-२७.०२.२०१४

Wednesday 26 February 2014

♥ग़मों की फसल...♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ग़मों की फसल...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
फसल ग़मों की हरी भरी है, दुख में नया इज़ाफ़ा होगा!
गम की फलियां देखके लगता, मुझको बहुत मुनाफा होगा!
मेरी फसल की देख तरक्की, बुरा वक़्त शाबाशी देगा,
और वक़्त के हाथों में भी, गम से भरा लिफाफा होगा! 

फसल ग़मों की देखके जिनको, अपना जीवन बोझिल लगता!
उनको लोगों को इस जीवन में, देखो कुछ भी मिल नहीं सकता!
बिना कठिनता पाये जग, नहीं सफलता मिल सकती है, 
बिन मेहनत के इस दुनिया में, जीत का गुलशन खिल नही सकता!

वक़्त भले कितने भी गम दे, भले फसल हो गम की भारी!
टूट न जाना तुम पीड़ा से, चाहें कितनी हो दुश्वारी!
"देव" जहाँ में उन लोगों ने ही, देखो इतिहास बनाया,
जिनमें हिम्मत और सच्चाई, जिनमें रहती है खुद्दारी!

बदले किस्मत देखके हिम्मत, खुशियों भरा लिफाफा होगा!
फसल ग़मों की हरी भरी है, दुख में नया इज़ाफ़ा होगा!"

..................चेतन रामकिशन "देव"….................
दिनांक-२६.०२.२०१४

♥♥प्रेम तपस्या...♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम तपस्या...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
प्रेम तपस्या बहुत कठिन है, प्रेम का पथ आसान नहीं है!
विषय रहित वो प्रेम है जिसमें, मानवता का मान नहीं है!
नहीं प्रेम की सीमाओं में, केवल युगलों की चंचलता,
प्रेम तो वो विश्वास है जिसके, बिन जग में भगवान नहीं है!

प्रेम, विरह की घड़ियों में भी, नहीं टूटकर खंडित होता!
प्रेम है घोतक सच्चाई का, नहीं झूठ से मंडित होता!

प्रेम की सीमा इतनी व्यापक, कि उसका अनुमान नहीं है!
प्रेम तपस्या बहुत कठिन है, प्रेम का पथ आसान नहीं है!

ढाई अक्षर लिख देना ही, नाम प्रेम का कब होता है!
प्रेम समर्पण भाव है जिसमें, खुद का कुछ भी कब होता है!
"देव" भले भगवान को हमने, न देखा अपनी आँखों से,
किन्तु जिससे प्रेम पनपता, प्रेम में वो ही रब होता है!

प्रेम जहां जिस परिसर में हो, वहाँ रात में दिन होता है!
प्रेम से महके वायुमंडल, और सुन्दर ये मन होता है!

निकट की अनुभूति दूरी में, रिक्ति का स्थान नहीं है!
प्रेम तपस्या बहुत कठिन है, प्रेम का पथ आसान नहीं है!"

......................चेतन रामकिशन "देव"…...................
दिनांक-२६.०२.२०१४

Tuesday 25 February 2014

♥♥ठंडा चूल्हा..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ठंडा चूल्हा..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आँखों में मायूसी दिखती और चेहरे पे वीरानी है!
निर्धन का चूल्हा ठंडा है, घर में न दाना पानी है!
भूख प्यास से उसके तन का, जर्जर ढांचा साफ़ झलकता,
मगर रहीसों की दुनिया ने, कब उसकी पीड़ा जानी है!

निर्धन की बेटी का रिश्ता, बिन पैसों के हो नहीं पाता!
बिना दवाओं के ये निर्धन, बेबस होकर के मर जाता!

इतने पर भी देश के नेताओं की, जहरीली वाणी है!
आँखों में मायूसी दिखती और चेहरे पे वीरानी है...

सत्ता के मद में कुछ नेता, निर्धन की सीमा तय करते!
निर्धन के अधिकार लूटकर, अपने हित की वो जय करते!
वक़्त चुनावो का हो तो ये, निर्धन को हमदर्द बताते,
बाद चुनावों के ये नेता, अपना जीवन सुखमय करते!

"देव" यहाँ नेताओं ने ही, निर्धन को बर्बाद किया है!
जब आया माहौल चुनावी, तब निर्धन को याद किया है!

लटक रहा है वो फांसी पर, आह तलक भी न जानी है!
आँखों में मायूसी दिखती और चेहरे पे वीरानी है!"

................चेतन रामकिशन "देव"…............
दिनांक-२५.०२.२०१४

Sunday 23 February 2014

♥मन के तार...♥♥

♥♥♥♥मन के तार...♥♥♥♥♥♥♥
मन के तार मिले रहने दो!
तुम एहसास खिले रहने दो!

मैं आँखों से ही पढ़ लूंगा,
अपने होठ सिले रहने दो!

पूरे हों या रहें अधूरे,
सपने मगर पले रहने दो!

अँधेरा न छू पायेगा,
प्यार के दीप जले रहने दो!

मुझे रौशनी देना हर पल,
लम्बी रात भले रहने दो!

तेरी खुशबु मुझको प्यारी,
बेशक फूल खिले रहने दो!

चिलमन से देखूंगा तुमको,
खिड़की जरा खुले रहने दो!

सूरत को मांजो न चाहें,
दिल के भाव धुले रहने दो!

"देव" मिलेंगे हम जल्दी ही,
तुम उम्मीद खिले रहने दो!"

...चेतन रामकिशन "देव"…......
दिनांक-२३.०२.२०१४

Saturday 22 February 2014

♥प्यार अभी तक...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्यार अभी तक...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जान हजारों चली गयीं पर, प्यार अभी तक मरा नहीं है !
क्यूंकि जग में प्यार से बढ़कर, कोई रिश्ता खरा नहीं है!
प्यार नहीं केवल युगलों तक, बहुत बड़ी है सीमा इसकी,
वो मानव पाषाण है जिसमें, प्यार जरा भी भरा नहीं है!

नफरत के अंकुर बोने से, प्यार नहीं पैदा होता है!
किसी के घर अल्लाह में रोता, राम किसी के घर रोता है!

बिना प्रेम के अम्बर सूना, और ये हर्षित धरा नहीं है!
जान हजारों चली गयीं पर, प्यार अभी तक मरा नहीं है !

हर रिश्ते में, हर नाते में, प्यार से ही रौनक आती है!
जिनके दिल में प्यार पनपता, उनकी दुनिया मुस्काती है!
"देव" छोड़कर नफरत सारी, प्यार को अपने दिल में भर लो,
बिना प्यार की छाया पाये, आंच ग़मों की झुलसाती है!

प्यार की ये नातेदारी तो, जात धर्म से ऊपर होती!
न ईर्ष्या, न द्वेष पनपता, दुरित कर्म से ऊपर होती!

प्यार है अमृत के प्याला सा, ये जहरीली सुरा नहीं है!
जान हजारों चली गयीं पर, प्यार अभी तक मरा नहीं है !"

..................चेतन रामकिशन "देव"…................
दिनांक-२२.०२.२०१४

Thursday 20 February 2014

♥प्राण तुम्हीं में...

♥♥♥प्राण तुम्हीं में...♥♥♥
प्राण तुम्हीं में निहित किये हैं!
मन्त्र प्रेम के जपित किये हैं!
शब्दकोष से शब्द चुने पर,
भाव तुम्हीं से उदित किये हैं!

तुम लेखन में गतिमान हो!
सही गलत का अनुमान हो!
काव्य प्रेम का सिखलाती हो,
तुम शिक्षक हो तुम्ही ज्ञान हो!

प्रेम की हर पंक्ति के मैंने,
चिन्ह तुम्ही से विदित किये हैं!
शब्दकोष से शब्द चुने पर,
भाव तुम्हीं से उदित किये हैं!

अपनेपन की तुम प्रेषक हो!
गलत दिशा का संकेतक हो!
मुझे शुद्धता सिखलाती हो,
तुम कमियों की विश्लेषक हो!

तुमसे पाकर प्रेम की शिक्षा,
द्वेष भाव सब विरत किये हैं!
शब्दकोष से शब्द चुने पर,
भाव तुम्हीं से उदित किये हैं!

तुम संकट में बल देती हो!
प्रेम का गंगाजल देती हो!
"देव" तुम्हारा प्रेम न सूखे,
दिवस, रात, हर पल देती हो!

प्रेम भाव के ये क्षण मैंने,
रोम रोम में मुदित किये हैं!
शब्दकोष से शब्द चुने पर,
भाव तुम्हीं से उदित किये हैं!"

....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-२०.०२.२०१४

Wednesday 19 February 2014

♥♥लहरों में घर..♥♥

♥♥♥लहरों में घर..♥♥♥
आग नहीं पानी से डर है!
बीच लहर में मेरा घर है!

ठोकर जिसको मार रहे हो,
क़दमों में वो मेरा सर है!

मिट्टी को सोना कर देता,
वक़्त बड़ा ये सौदागर है!

सात जनम का रिश्ता कर दे,
रंग भले ही चुटकी भर है!

क़र्ज़ नहीं जो चुका सकेंगे,
माँ की ममता ये कर है!

क़त्ल करो या प्यार मुझे दो,
तेरी चौखट, तेरा दर है!

रखा किताबों में जो तूने,
वो मेरे पंखों का पर है!

जान सभी में एक बराबर,
चाहे नारी, या वो नर है!

"देव" मुझे न भुला सकोगे,
मैं हूँ मिट्टी , तू हलधर है!"

....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-१९.०२.२०१४

Tuesday 18 February 2014

♥♥♥मुफ़लिस की दाह..♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥मुफ़लिस की दाह..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
टूटे पत्ते, नमी ओस की, और पेड़ की आह न देखी !
अपने सुख में लोग हैं अंधे, झूठ-मूठ की राह न देखी!
मुफ़लिस के घर के तिनकों में, आग भले ही लग जाये पर,
लोग शराबों में डूबे हैं, किसी ने उसकी दाह न देखी!

आखिर ये कैसा अपनापन, आखिर ये कैसा नाता है!
जान किसी की जाती है पर, अपना चेहरा मुस्काता है!

लावारिस की मौत मर गए, किसी ने उनकी राह न देखी!
टूटे पत्ते, नमी ओस की, और पेड़ की आह न देखी!

लोग आज के बड़े मतलबी, औरों पर इल्ज़ाम रखेंगे!
जब तक उनका मतलब होगा, वो लोगों से काम रखेंगे!
आज ज़माने की करतूतें "देव", देखकर दिल रोता है,
लोग किसी लुटती इज्जत का, फूटी कौड़ी दाम रखेंगे!

आज की इस दुनियादारी में, मानवता घायल होती है!
दर्द है इतना सारा मन में, आँख मेरी पल पल रोती है!

नेता, अफसर हुए मतलबी, मुफ़लिस की परवाह न देखी!
टूटे पत्ते, नमी ओस की, और पेड़ की आह न देखी !" 

...................चेतन रामकिशन "देव"……………
दिनांक-१९.०२.२०१४ 

♥♥मन में जब...♥♥

♥♥♥♥♥मन में जब...♥♥♥♥♥
मन में जब विश्वास नहीं हो!
कोई रिश्ता खास नहीं हो!

दर्द लगे तब तक मामूली,
जब तक खुद आभास नहीं हो!

दरिया भी मैला लगता है,
जो अधरों को प्यास नहीं हो!

इंतजार की कहाँ जरुरत,
अगर किसी की आस नहीं हो!

पूजा और इबादत फीकी,
सच का जब तक वास नहीं हो!

आसमान वो क्या नापेंगे,
जिनको उड़ना रास नहीं हो!

मंजिल हमसे दूर रहेगी,
जब तक हिम्मत पास नहीं हो!

कौन भले कौसे किस्मत को,
गर लफ्जों में काश नहीं हो!

"देव" वहीँ तक अपनापन है,
जब तक के उपहास नहीं हो!"

....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-१८.०२.२०१४

Monday 17 February 2014

♥♥कुछ खोने को ♥♥♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥कुछ खोने को ♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कुछ खोने को शेष नहीं है, कुछ पाने को रहा नहीं है!
बाकि ऐसा दर्द न कोई, जिसको मैंने सहा नहीं है!
गालों तक ढलके हैं आंसू, दिल रोया है फूट फूट के,
आज तलक मेरी आँखों से, इतना पानी बहा नहीं है!

मगर वक़्त की चाल के आगे, मैं बेबस क्या कर सकता हूँ!
एक दिन जीत मिलेगी मुझको, यही भरोसा कर सकता हूँ!

चुप होकर के गम सहता हूँ, किस्मत से कुछ कहा नहीं है! 
कुछ खोने को शेष नहीं है, कुछ पाने को रहा नहीं है!

आस नहीं तोड़ी है मैंने, लेकिन कौशल झुलस रहा है!
इस जीवन की पगडंडी पर, दुख का बादल बरस रहा है!
"देव" न जाने कब किस्मत से, खुशियों की सौगात मिलेगी,
एक अरसे से मेरा ये दिल, जिन खुशियों को तरस रहा है!

उम्मीदों के तिनके चुनकर, टूटा फूटा घर जोड़ा है!
नहीं पता के मेरी खातिर, वक़्त ने आखिर क्या छोड़ा है!

एक सपना भी नहीं है ऐसा, जो जीवन में ढ़हा नहीं है!
कुछ खोने को शेष नहीं है, कुछ पाने को रहा नहीं है!"

..........चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-१७.०२.२०१४

Friday 14 February 2014

♥♥मेहनत का जज्बा...♥♥

♥♥♥♥मेहनत का जज्बा...♥♥♥♥♥♥
जब से मेहनत का जज्बा पहचाना है!
मिट्टी को भी सोना करना जाना है!

वो दुश्मन होकर भी प्यारा लगता है,
जिसको मैंने दिल से अपना माना है!

तुम दुनिया की भीड़ में गुम न हो जाना,
मेरे दिल में हमदम, तेरा ठिकाना है!

अब मंजिल आँखों से दूर नहीं होती,
मैंने जबसे यकीं जीत का माना है!

तारों को नजदीक से छूकर देखेंगे,
अम्बर को क़दमों के नीचे लाना है!

प्यास लगेगी तो अश्कों को पी लेंगे,
और भूख में अपने गम को खाना है!

लूट मार कर न ख्वाहिश है दौलत की,
केवल जग में अपना नाम कमाना है!

आज है दुख तो कल सुख भी मिल जायेगा,
यही सोचकर सूरत को मुस्काना है!

"देव" घमंडी लोगों को ये समझा दो,
एक दिन सबको मिट्टी में मिल जाना है!"

..........चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-१४.०२.२०१४

Wednesday 12 February 2014

♥♥जिंदगी का सबक...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥जिंदगी का सबक...♥♥♥♥♥♥♥♥
जिंदगी जीने का तुम, मुझको सबक दे जाओ!
मेरी आँखों में सितारों की, चमक दे जाओ!

पर नहीं हैं मेरे पर, उड़ने की ख्वाहिश तो है,
होंसला भरके उड़ानों की, ललक दे जाओ!

लोग पढ़कर जो मोहब्बत पे एतबार करें,
अपने लफ्ज़ों में वो शिद्दत, वो कसक दे जाओ!

नहीं नफरत के हों अल्फ़ाज, जुबां पर मेरी,
मेरे लहजे में मोहब्बत की, चहक दे जाओ!

सादगी में भी मेरा रूप ये खिल जाता है,
तुम जो छूकर मुझे, चांदी की दमक दे जाओ!

भूलकर भी न कभी तोडूं तुम्हारे दिल को,
खून में मेरी वफाओं की, नमक दे जाओ!

"देव" हर रोज रहे, सर पे वो साया बनकर,
प्यार का मुझको यहाँ, ऐसा फलक दे जाओ!"

............चेतन रामकिशन "देव"…..........
दिनांक-१२.०२.२०१४

Tuesday 11 February 2014

♥♥♥…तेरी एक तस्वीर ♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥…तेरी एक तस्वीर ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
फूलों के मकरंद से हमदम, तेरी एक तस्वीर बनाऊँ!
हरियाली के हरे रंग से, चूड़ी कंगन तेरे सजाऊँ!
आसमान से चंदा लाकर, जड़ दूँ मैं तेरी बिंदिया में,
और तेरी प्यारी आँखों में, हमदम अपनी झलक दिखाऊँ!

धूप से थोड़ी किरणें लेकर, गाल तुम्हारे लाल करूँगा!
और फूलों के गजरे से मैं, सुन्दर तेरे बाल करूँगा!

मनोहारी तस्वीर बनेगी, जिसको हर पल गले लगाऊँ !
फूलों के मकरंद से हमदम, तेरी एक तस्वीर बनाऊँ...

धीरे धीरे कुछ दिन में, तस्वीर तुम्हारी पूरी होगी!
हर लम्हा तुम पास रहोगी, पल भर की न दूरी होगी!
"देव" मेरा मन जब भी चाहे, छू लूँ मैं तस्वीर तुम्हारी,
न दुनिया का डर होगा न मिलने में मज़बूरी होगी!

धवल श्वेत मोती की माला, गले में तेरे पहना दूंगा!
तेरी आँख से नीर चुराकर, खुशी का तुझको गहना दूंगा!

बात तेरी तस्वीर से करके, तेरे ख्वाबों में खो जाऊँ!
फूलों के मकरंद से हमदम, तेरी एक तस्वीर बनाऊँ!"

.................चेतन रामकिशन "देव"…...............
दिनांक-११.०२.२०१४

Saturday 8 February 2014

♥♥दिल की निदा…♥♥

♥♥♥♥♥♥दिल की निदा…♥♥♥♥♥♥♥♥
पूजता हूँ मैं पत्थरों को, खुदा मिल जाये!
कोई इंसां मुझे दुनिया से जुदा मिल जाये!

इसी उम्मीद में खोली हैं खिड़कियां मैंने,
जिंदा रहने को मुझे थोड़ी हवा मिल जाये!

प्यार ने बख्शा है मुझको यहाँ पे दर्द बहुत,
दर्द को सोख ले, कोई ऐसी दवा मिल जाये!

तेरी तस्वीर से मैं बात किया करता हूँ,
क्या खबर मुझको, जिंदगी की अदा मिल जाये!

चुप रहा करता हूँ बस इतना सोचता हूँ मैं,
मेरी लफ्ज़ों की वो खोई सी, सदा मिल जाये!

वो मेरी रूह से वाकिफ़ ही, हो गया होगा,
जिसको चुप रहके मेरे दिल की निदा मिल जाये!

"देव" हारा हुआ मुझको समझना उस दिन तुम,
जिंदगी को मेरी जिस रोज, विदा मिल जाये!"

...............चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-०८.०२.२०१४

Friday 7 February 2014

♥♥…तो दिल भर आया ♥♥

♥♥♥♥♥♥…तो दिल भर आया ♥♥♥♥♥♥♥♥
कुछ अधूरे जो रहे ख्वाब, तो दिल भर आया!
दर्द से दिल में हुए घाव, तो दिल भर आया!

उम्र भर मुझको चुभन, काँटो की जो देता रहा,
वो मेरी कब्र में लेकिन, गुलाब भर आया!

ब्याज की तरह इजाफा है, मेरे अश्कों में,
मैंने सोचा था ग़मों का, हिसाब कर आया!

मैंने मांगीं थी यहाँ, जिससे दवा की बूंदें,
जाम में वो मेरी खातिर, शराब भर आया!

रात दिन लानतें देता था जिस सियासी को,
चंद रुपयों को उसी का, चुनाव कर आया!

बाद अरसे के दिखाकर, मुझे सूरत अपनी,
मेरे जीवन में वो गम का, बहाव कर आया!

"देव" हाथों से बनाकर के, बुत खुद ही का मैं,
दर्द की राख से उसमें, रुआब भर आया! "

..........चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-०७.०२.२०१४

Thursday 6 February 2014

♥♥जंग भले ही जीती मैंने...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥जंग भले ही जीती मैंने...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जंग भले ही जीती मैंने, किसी के दिल को जीत न पाया!
वजह से मेरी लोग रो रहे, लेकिन मुझको तरस न आया!
मैं इंसां की खाल में हूँ पर, शायद मैं इंसान नही हूँ,
इसीलिए तो मुझसे मिलकर, एक चेहरा भी न मुस्काया! 

खुद को जब शीशे में देखा, नजर मिलाना भी मुश्किल था!
मौन अवस्था में पहुंचा दिल, जिसको समझाना मुश्किल था!

वक़्त का पहिया देखो यारो, ख़ुशी का कोई पल न लाया!
जंग भले ही जीती मैंने, किसी के दिल को जीत न पाया...

मजलूमों के खून से रंगकर, हाथ बड़ा ही इतराता था!
मैं लोगों की फूंक झोपड़ी, हौले हौले मुस्काता था!
चीख सुनी न कभी किसी की, आह तलक अनदेखा करके,
कदम के नीचे रौंद के सबको, अपना लोहा मनवाता था!

भले बना मैं यहाँ शहंशाह, लेकिन दिल को सुकूं न आया!
जंग भले ही जीती मैंने, किसी के दिल को जीत न पाया...

इसीलिए मैं पछतावे की, आग में हर लम्हा जलता हूँ!
वक़्त मुझे जैसा भी रखता, वक़्त के रंग में मैं ढलता हूँ!
"देव" नहीं तुम जुल्म ढहाकर, कभी विजेता बन सकते हो,
खाली हाथ यहाँ आया था, खाली हाथ वहाँ चलता हूँ!

सोच के मैं नाखुश होता हूँ, क्यूँ पहले मैं समझ न पाया!
जंग भले ही जीती मैंने, किसी के दिल को जीत न पाया!"

..................चेतन रामकिशन "देव"…..................
दिनांक-०६.०२.२०१४

Wednesday 5 February 2014

♥♥अश्क़ों की बूंदों पे तेरा...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥अश्क़ों की बूंदों पे तेरा...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
अश्क़ों की बूंदों पे तेरा, नाम लिखा है रोते रोते!
जान भी अब तो नहीं बची है, गँवा दिया सब खोते खोते!
असर तुम्हारा है इस दिल पर और लफ्ज़ों में तुम्ही वसी हो,
दिन में नाम पुकारा तेरा, ख्वाब तुम्हारे सोते सोते!

तुम बिन दिल में बेचैनी है, हँसने का भी मन नहीं होता!
नब्ज थमी है बिना तुम्हारे, जीवित जैसे तन नहीं होता!

फसल खुशी की उगे न दिल में, उम्र बीत गयी बोते बोते!
अश्क़ों की बूंदों पे तेरा, नाम लिखा है रोते रोते....

चेहरा उतरा, आँखे सूजी, बाल भी मेरे बिखर रहे हैं!
ख़त्म हो गई बचत खुशी की, दर्द के सिक्के निखर रहे हैं!
बिना तुम्हारे नूर नहीं है, भाव पक्ष भी जड़वत सा है,
सजे थे कल तक जिस शीशे में, आज उसी को अखर रहे हैं!

नहीं सँवरता बिना तुम्हारे, तन भी अब रूठा रहता है!
मेरी अंगूठी का नग देखो, बिना तेरा टूटा रहता है!

दर्द से झुलसा मुख न निखरे, हुए हैं घंटो धोते धोते!
अश्क़ों की बूंदों पे तेरा, नाम लिखा है रोते रोते....

कभी जरा सा वक़्त मिले तो, मेरी दुनिया में भी आना!
गोद में रखना मेरे सर को, चुपके चुपके मुझे सुलाना!
"देव" भले ही तेरे कद से, मेरी हैसियत बौनी है पर,
जब तुम मेरे पास में आओ, तो मेरे रंग में रंग जाना!

चंद लम्हों का साथ तुम्हारा, जीवन में खुशियां भर देगा!
हाथ तुम्हारा मुझको छूकर, मिट्टी को सोना कर देगा!

प्यार बनेगा अमर हमारा, धीरे धीरे होते होते!
अश्क़ों की बूंदों पे तेरा, नाम लिखा है रोते रोते!"

..................चेतन रामकिशन "देव"…..................
दिनांक-०५.०२.२०१४

Tuesday 4 February 2014

♥♥जब जी चाहा...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥जब जी चाहा...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जब जी चाहा दिल तोड़ा है, जब जी चाहा मन कुचला है!
कभी सजाया गुलदस्ते में, कभी हमारा तन कुचला है!
खुद का दामन पाक बताकर, कहते हैं नापाक मुझे वो,
कभी उजाड़ा फुलवारी को, कभी ख़ुशी का वन कुचला है!

नहीं पता इतनी बेदर्दी, कैसे दिल में भर लेते हैं!
लोग यहाँ अपने हाथों से, क़त्ल किसी का कर लेते हैं!
झूठे आंसू खूब बहाकर, दिखलायें झूठा अपनापन,
लोग यहाँ अपने मतलब में, प्यार का सौदा कर लेते हैं!

कोई सुने न चीख किसी की, कानों में शीशा पिघला है!
जब जी चाहा दिल तोड़ा है, जब जी चाहा मन कुचला है!

लोग यहाँ पत्थर बनकर के, दिल का शीशा चटकाते हैं!
अपनी राहें सही करेंगे, पर लोगों की भटकाते हैं!
"देव" न जाने क्यूँ दुनिया की, नजर में है बेजान मेरा दिल,
दुनिया वाले मेरे दिल को, ठोस सड़क पर छिटकाते हैं!

नहीं संभाला मुझे किसी ने, पैर मेरा जब भी फिसला है!
जब जी चाहा दिल तोड़ा है, जब जी चाहा मन कुचला है!"

..................चेतन रामकिशन "देव"…..................
दिनांक-०४.०२.२०१४

Monday 3 February 2014

♥♥ये मन तो...♥♥

♥♥♥♥ये मन तो...♥♥♥♥
आँच में तपकर काजल जैसा!
कभी सौम्य गंगाजल जैसा!
कभी वो सोचे पृथ्वी तल को,
कभी खड़ा विंध्याचल जैसा!

ये मन तो ऐसा ही होता,
पल में मिट्टी, पल में सोना!
मन चाहता है कभी हँसी तो,
कभी कहे मन खुलकर रोना!

कभी पिता के साये में मन,
कभी है माँ के आँचल जैसा!
कभी वो सोचे पृथ्वी तल को,
कभी खड़ा विंध्याचल जैसा!

जीत है मन से, हार है मन से!
नफरत मन से, प्यार है मन से!
मन से हिम्मत, मन से साहस,
दृढ़ता का आधार है मन से!

कभी सख्त है वो पत्थर सा,
कभी लचीला, ढ़ुलमुल जैसा!
कभी वो सोचे पृथ्वी तल को,
कभी खड़ा विंध्याचल जैसा!

मन चंचल है, मन धावक है, 
लेकिन इसे नियंत्रित करना!
"देव" कभी तुम मन की खातिर,
द्वेष, लोभ न मिश्रित करना!

सजा दिलाकर उड़ भी जाये,
कभी ये सूखे बादल जैसा!
कभी वो सोचे पृथ्वी तल को,
कभी खड़ा विंध्याचल जैसा!"

....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-०३.०२.२०१४