Tuesday, 25 February 2014

♥♥ठंडा चूल्हा..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ठंडा चूल्हा..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आँखों में मायूसी दिखती और चेहरे पे वीरानी है!
निर्धन का चूल्हा ठंडा है, घर में न दाना पानी है!
भूख प्यास से उसके तन का, जर्जर ढांचा साफ़ झलकता,
मगर रहीसों की दुनिया ने, कब उसकी पीड़ा जानी है!

निर्धन की बेटी का रिश्ता, बिन पैसों के हो नहीं पाता!
बिना दवाओं के ये निर्धन, बेबस होकर के मर जाता!

इतने पर भी देश के नेताओं की, जहरीली वाणी है!
आँखों में मायूसी दिखती और चेहरे पे वीरानी है...

सत्ता के मद में कुछ नेता, निर्धन की सीमा तय करते!
निर्धन के अधिकार लूटकर, अपने हित की वो जय करते!
वक़्त चुनावो का हो तो ये, निर्धन को हमदर्द बताते,
बाद चुनावों के ये नेता, अपना जीवन सुखमय करते!

"देव" यहाँ नेताओं ने ही, निर्धन को बर्बाद किया है!
जब आया माहौल चुनावी, तब निर्धन को याद किया है!

लटक रहा है वो फांसी पर, आह तलक भी न जानी है!
आँखों में मायूसी दिखती और चेहरे पे वीरानी है!"

................चेतन रामकिशन "देव"…............
दिनांक-२५.०२.२०१४

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