♥♥♥♥♥♥♥मेरी प्रेरणा(पथ प्रदर्शक)♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"कोमल है वो रेशम जैसी, नदियों का बहता पानी!
हरियाली सी सुन्दर है वो, संतो की मीठी वाणी!
मेरे भावों की अनुभूति, मेरी कविता की पहचान,
रानी जैसी मर्यादित वो, किंचित भी ना अभिमानी!
मेरी प्रेरणा इतनी सुन्दर, जैसे धवल चांदनी हो!
घनी अमावस भी ढल जाये, उसकी जहाँ रौशनी हो!
वो है ज्ञान का जलता दीपक, मैं तो केवल अज्ञानी!
कोमल है वो रेशम जैसी, नदियों का बहता पानी.........................
शीतल है वो चन्दन जैसी, दयापूर्ण उसका व्यवहार!
दुःख की धूप में करती है, प्रेम रसों की मधुर फुहार!
समझाती शिक्षक बनकर, सही गलत की दे पहचान,
सत्य वचन का पाठ पढ़ाती, वो है मेरी रचनाधार!
मेरी प्रेरणा इतनी प्यारी, जैसे माँ की ममता हो!
किंचित भी वो भेद न रखे, प्रकृति सी समता हो!
मेरे शब्द भी छोटे पड़ते, है वो इतनी गुणवानी!
कोमल है वो रेशम जैसी, नदियों का बहता पानी.........................
उपलब्धि है मेरी प्रेरणा, मेरे जीवन का उपहार!
उसके बिन मैं पतझड़ हूँ,वो मेरा खिलता श्रंगार!
"देव" के मन का चिंतन है ,है भावों का दर्पण भी,
शब्दकोष में शब्द नहीं हैं,कैसे दूँ उसको आभार!
मेरी प्रेरणा इतनी अच्छी, मन में कोई विकार नहीं!
सबका हित है करना चाहती,हिंसा का उद्गार नहीं!
लाभपूर्ण है उसका दर्शन, ना मिलती किंचित हानि!
कोमल है वो रेशम जैसी, नदियों का बहता पानी!"
"मेरी प्रेरणा, ऐसी ही है! पावन, सुन्दर, सरल, मधुमयी, कोमल! चूँकि सब कुछ उसके दिशा निर्देशन से उद्धृत है! इसीलिए आज की ये रचना अपनी प्रेरणा को समर्पित कर रहा हूँ! आपको भी ऐसी ही प्रेरणा मिले, प्रकृति से यही कामना है!-चेतन रामकिशन "देव"
"कोमल है वो रेशम जैसी, नदियों का बहता पानी!
हरियाली सी सुन्दर है वो, संतो की मीठी वाणी!
मेरे भावों की अनुभूति, मेरी कविता की पहचान,
रानी जैसी मर्यादित वो, किंचित भी ना अभिमानी!
मेरी प्रेरणा इतनी सुन्दर, जैसे धवल चांदनी हो!
घनी अमावस भी ढल जाये, उसकी जहाँ रौशनी हो!
वो है ज्ञान का जलता दीपक, मैं तो केवल अज्ञानी!
कोमल है वो रेशम जैसी, नदियों का बहता पानी.........................
शीतल है वो चन्दन जैसी, दयापूर्ण उसका व्यवहार!
दुःख की धूप में करती है, प्रेम रसों की मधुर फुहार!
समझाती शिक्षक बनकर, सही गलत की दे पहचान,
सत्य वचन का पाठ पढ़ाती, वो है मेरी रचनाधार!
मेरी प्रेरणा इतनी प्यारी, जैसे माँ की ममता हो!
किंचित भी वो भेद न रखे, प्रकृति सी समता हो!
मेरे शब्द भी छोटे पड़ते, है वो इतनी गुणवानी!
कोमल है वो रेशम जैसी, नदियों का बहता पानी.........................
उपलब्धि है मेरी प्रेरणा, मेरे जीवन का उपहार!
उसके बिन मैं पतझड़ हूँ,वो मेरा खिलता श्रंगार!
"देव" के मन का चिंतन है ,है भावों का दर्पण भी,
शब्दकोष में शब्द नहीं हैं,कैसे दूँ उसको आभार!
मेरी प्रेरणा इतनी अच्छी, मन में कोई विकार नहीं!
सबका हित है करना चाहती,हिंसा का उद्गार नहीं!
लाभपूर्ण है उसका दर्शन, ना मिलती किंचित हानि!
कोमल है वो रेशम जैसी, नदियों का बहता पानी!"
"मेरी प्रेरणा, ऐसी ही है! पावन, सुन्दर, सरल, मधुमयी, कोमल! चूँकि सब कुछ उसके दिशा निर्देशन से उद्धृत है! इसीलिए आज की ये रचना अपनी प्रेरणा को समर्पित कर रहा हूँ! आपको भी ऐसी ही प्रेरणा मिले, प्रकृति से यही कामना है!-चेतन रामकिशन "देव"