Friday, 10 January 2014

♥♥फूल बनकर तेरे...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥फूल बनकर तेरे...♥♥♥♥♥♥♥♥
फूल बनकर तेरे आंगन में खिला करता हूँ!
दीप बनकर तेरे कमरे में जला करता हूँ!
मुझको पहचान जरा हूँ मैं वही तो हमदम,
जो तुझे रात को ख्वाबों में मिला करता हूँ!

तो अगर रोये तो मैं भी उदास रहता हूँ!
तेरे साये की तरह तेरे पास रहता हूँ!
धूप में भी मैं तेरे साथ साथ तपकर के,
रात में चांदनी जैसा लिबास रहता हूँ! 

बनके पर्दा तेरी खिड़की का, हिला करता हूँ!
फूल बनकर तेरे आंगन में खिला करता हूँ....

मैं तेरे गीत के एहसास की धुनों में हूँ!
कभी खुशियां कभी थोड़ी सी अनबनों में हूँ!
बनूँ तन्हाई में तेरी मैं, घडी की टिक टिक,
कभी शामिल तेरी जुल्फों की उलझनों में हूँ!

बनके परछाईं तेरे साथ चला करता हूँ!
फूल बनकर तेरे आंगन में खिला करता हूँ....

मैं तेरे पाओं में पायल की तरह बजता हूँ!
मैं तेरे हाथ में कंगन की तरह सजता हूँ!
"देव" आँखों में तेरी बनके मैं काजल रहता,
तेरी ऊँगली में अंगूठी की तरह सजता हूँ!

अपने चेहरे से तेरी खुशबु मला करता हूँ!
फूल बनकर तेरे आंगन में खिला करता हूँ!

............चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-१०.०१.२०१४