Friday, 19 December 2014

♥♥पाकीज़ा एहसास...♥♥



♥♥♥♥♥♥पाकीज़ा एहसास...♥♥♥♥♥♥
पाकीज़ा एहसास तुम्हारी चाहत के। 
लम्हे लगते ख़ास तुम्हारी चाहत के। 

दिन में दूरी रोजी की, पर शाम ढले,
हम आते हैं, पास तुम्हारी चाहत के। 

बिना तुम्हारे दुनिया फीकी लगती है,
मीठे हैं एहसास, तुम्हारी चाहत के। 

धन, दौलत, मयखाना, चांदी न सोना,
बढ़कर हैं उल्लास तुम्हारी चाहत के। 

गोद में तेरी सर रखकर के सोया तो,
मलमल थे एहसास तुम्हारी चाहत के। 

तुम राधा के रूप में, हम मोहन बनकर,
संग संग करते रास, तुम्हारी चाहत के। 

"देव " हो दिन या रात मगर न करते हैं,
लम्हे ये अवकाश तुम्हारी चाहत के। "

.........चेतन रामकिशन "देव"……...
दिनांक--१९.१२.२०१४