♥संभलना आ गया ..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
संभलना आ गया ठोकर, बहुत ही खाईं हैं लेकिन!
चुपा लेता हूँ दिल को, आँख पर भर आईं हैं लेकिन!
किसी से प्यार करना भी, गुनाह अब हो गया शायद ,
खुदा बोलें मोहब्बत को, बहुत रुसवाईं हैं लेकिन!
सिसकती आँख से आंसू, बहे जाते हैं गालों पर!
क्यों गुमसुम हो गए हैं, यहाँ सच के सवालों पर!
है दिल रोता ये खुशियां, झूठ की दिखलाईं हैं लेकिन!
संभलना आ गया ठोकर, बहुत ही खाईं हैं लेकिन!
गुनाह अपना मेरा सर डाल भी, शर्मिंदगी कब है!
वो बाहर से हैं सुन्दर, रूह में पाकीज़गी कब है!
सुनो हम "देव" टूटे दिल के, टुकड़ें जोड़ कर लाये,
नहीं धड़कन है पहले सी, भला वो ताज़गी कब है!
अँधेरी रात का पर्दा, वही चाहते उजालों पर!
वो जिनके होठ सिलते हैं, यहाँ सच के सवालों पर!
है जलता दिल भले आँखों में, बूंदे आईं हैं लेकिन!
संभलना आ गया ठोकर, बहुत ही खाईं हैं लेकिन!
..................चेतन रामकिशन "देव".....................
दिनांक-२४.०७ २०१४