Thursday 26 February 2015

♥♥गुलकंद ...♥♥


♥♥♥♥♥गुलकंद ...♥♥♥♥♥♥
जीवन को आनंद मिल गया। 
और शब्दों को छंद मिल गया। 
तुम्हें देखकर मन हर्षित हो,
फूलों को मकरंद मिल गया।

सखी ये अम्बर इंद्रधनुषी,
और भूतल रंगीन हो गया। 
साँझ सवेरे तेरे ध्यान में,
मन मेरा तल्लीन हो गया। 
तुमसे है सम्बन्ध आत्मिक,
किन्तु फिर भी नयन हों प्यासे,
एक क्षण को जो दूर हुईं तुम,
मैं पानी बिन मीन हो गया। 

मधु दिया जो प्रेम का तुमने,
जीवन को गुलकंद मिल गया। 
तुम्हें देखकर मन हर्षित हो,
फूलों को मकरंद मिल गया...

मन से मन का तार मिल गया ,
कविता को आधार मिल गया । 
तुमने घर में कदम रखा जो,
खुशियों का संसार मिल गया । 
"देव" तुम्हारा मुख प्यारा है,
और व्यवहार बहुत मनोहारी,
तुमने जब सम्मान दिया तो,
दुनिया में सत्कार मिल गया । 

तुमने जब स्पर्श किया तो,
सपनों को स्पंद मिल गया। 
तुम्हें देखकर मन हर्षित हो,
फूलों को मकरंद मिल गया। "

......चेतन रामकिशन "देव".......
दिनांक-२६.०२.२०१५