♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥चिमनी का धुआं..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जैसे चिमनी के धुँयें से, वायुमंडल दूषित लगता!
उसी तरह से मानव का मन, आज बड़ा प्रदूषित लगता!
संस्कार भी सिमट रहे हैं, नैतिक शिक्षा लगे पुरानी!
आज बड़ी ही पिछड़ी लगती, सदाचार की बात सुनानी!
मर्यादा भी हुयी अधमरी, और मूल्य भी मरणासन्न हैं,
बस अपने ही हित की बातें, हर मानव को लगें सुहानी!
इस युग में तो हर मानव का, चिंतन बड़ा कलुषित लगता!
जैसे चिमनी के धुँयें से, वायुमंडल दूषित लगता!"
........................चेतन रामकिशन "देव"...........................
दिनांक--०५.०१.२०१३