♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दिल के टुकड़े..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सांसें भी भारी भारी हैं, अधर धूप से चटक रहे हैं!
और हमारे दिल के देखो, टुकड़े होकर छिटक रहे हैं!
कभी किसी से अपनेपन में, हमने सच को सच बोला तो,
वो कहते हैं मेरे सच को, हम रस्ते से भटक रहे हैं!
लगता है के हमदर्दी की, आस लगाकर भूल हो गयी!
जीवन में जो हरियाली थी, वो इक पल में शूल हो गयी!
गैरों की तो बात छोड़िये, अपनों को हम खटक रहे हैं!
सांसें भी भारी भारी हैं, अधर धूप से चटक रहे हैं.....
बड़ा बड़ा क्या लिखना जब तक, सीने में दिल बड़ा नहीं हो!
वो आंखे किस काम जिसमे, प्रेम का मोती जड़ा नहीं हो!
"देव" यहाँ पर उस मानव को, किन शब्दों से अपना लिखूं,
जो जीवन के बुरे वक़्त में, साथ हमारे खड़ा नहीं हो!
दुनिया का ये हाल रहा तो, प्यार जहाँ से मिट जायेगा!
और जहाँ से अपनेपन का, एक एक पौधा कट जायेगा!
वो क्या देंगे मुझे सहारा, हाथ जो मेरा झटक रहे हैं!
सांसें भी भारी भारी हैं, अधर धूप से चटक रहे हैं!"
.................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-०५.०६.२०१३
सांसें भी भारी भारी हैं, अधर धूप से चटक रहे हैं!
और हमारे दिल के देखो, टुकड़े होकर छिटक रहे हैं!
कभी किसी से अपनेपन में, हमने सच को सच बोला तो,
वो कहते हैं मेरे सच को, हम रस्ते से भटक रहे हैं!
लगता है के हमदर्दी की, आस लगाकर भूल हो गयी!
जीवन में जो हरियाली थी, वो इक पल में शूल हो गयी!
गैरों की तो बात छोड़िये, अपनों को हम खटक रहे हैं!
सांसें भी भारी भारी हैं, अधर धूप से चटक रहे हैं.....
बड़ा बड़ा क्या लिखना जब तक, सीने में दिल बड़ा नहीं हो!
वो आंखे किस काम जिसमे, प्रेम का मोती जड़ा नहीं हो!
"देव" यहाँ पर उस मानव को, किन शब्दों से अपना लिखूं,
जो जीवन के बुरे वक़्त में, साथ हमारे खड़ा नहीं हो!
दुनिया का ये हाल रहा तो, प्यार जहाँ से मिट जायेगा!
और जहाँ से अपनेपन का, एक एक पौधा कट जायेगा!
वो क्या देंगे मुझे सहारा, हाथ जो मेरा झटक रहे हैं!
सांसें भी भारी भारी हैं, अधर धूप से चटक रहे हैं!"
.................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-०५.०६.२०१३