Saturday 15 November 2014

♥♥♥♥क्षणभंगुर...♥♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥क्षणभंगुर...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
क्षणभंगुर है जोड़ दिलों का, पल में खंडित हो जाता है। 
सही मनुज भी निर्ममता से, जग में दंडित हो जाता है। 
वो जिसको एहसास नहीं हो, यहाँ प्रेम की भावुकता का,
वही यहाँ झूठे तथ्यों से, प्रेम का पंडित हो जाता है। 

प्रेम का अंकन मुखपृष्ठों पर, अंकित करना प्रेम नहीं है। 
बस अपने को श्रेष्ठ समझकर, सुरभित करना प्रेम नहीं है। 
प्रेम तो है एक भाव समर्पण, नहीं कोई ऊँचा न नीचा,
ऊपरी मन से, प्रेम पुष्प को, पुलकित करना प्रेम नहीं है। 

प्रेम नहीं वो जिसमें धन का, वंदन मंडित हो जाता है। 
क्षणभंगुर है जोड़ दिलों का, पल में खंडित हो जाता है... 

प्रेम विषय के संदर्भों में, सबकी अपनी परिभाषा है। 
वो उतना ही प्रेम में डूबे, जिसकी जितना जिज्ञासा है। 
"देव" यहाँ पर प्रेम को कोई, महज तनों का मिलन बताये,
और किसी की विश्लेषण में, प्रेम आत्मा की भाषा है। 

वो क्या जाने प्रेम को जिसका, मूल्य घमंडित हो जाता है। 
क्षणभंगुर है जोड़ दिलों का, पल में खंडित हो जाता है।  "

...................चेतन रामकिशन "देव"…..................
दिनांक-१६.१०.२०१४