♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥शर शैय्या...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
भीष्म पिता के जैसे मुझको, शर शैय्या पे सुला दिया है।
रक्त वो मेरा देख के हर्षित, मेरे दुःख को भुला दिया है।
मैंने जिनके अभियोजन में, हर क्षण ही संवाद किया था,
आज उसी ने निर्ममता से, मुझको फांसी झुला दिया है।
अंतहीन सी मानवता है, दया किसी में शेष नहीं है।
पत्थर जैसे हृदय हुये हैं, भावों का अवशेष नहीं है।
धनिकों के तो जरा घाव पर, यहाँ चिकित्सक बहुत खड़े पर,
किन्तु देखो स्वास्थ्य गृहों में, निर्धन का प्रवेश नहीं है।
कल तक जिसमें खेला था वो, उस घर को ही जला दिया है।
भीष्म पिता के जैसे मुझको, शर शैय्या पे सुला दिया है...
जाने कैसा काल, समय है, जाने क्या जीवन यापन है।
यहाँ भूख से मरता कोई, और कहीं पैसों का वन है।
"देव " किसी की आँख में आंसू, फर्क नहीं पर पड़ता कोई,
अंदर से मन में कालापन, और बाहर से उजला तन है।
मेरे कोमल अंतर्मन को, अम्ल धार से जला दिया है।
भीष्म पिता के जैसे मुझको, शर शैय्या पे सुला दिया है।"
..................चेतन रामकिशन "देव"………..............
दिनांक-०४.०८.२०१५
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित।
भीष्म पिता के जैसे मुझको, शर शैय्या पे सुला दिया है।
रक्त वो मेरा देख के हर्षित, मेरे दुःख को भुला दिया है।
मैंने जिनके अभियोजन में, हर क्षण ही संवाद किया था,
आज उसी ने निर्ममता से, मुझको फांसी झुला दिया है।
अंतहीन सी मानवता है, दया किसी में शेष नहीं है।
पत्थर जैसे हृदय हुये हैं, भावों का अवशेष नहीं है।
धनिकों के तो जरा घाव पर, यहाँ चिकित्सक बहुत खड़े पर,
किन्तु देखो स्वास्थ्य गृहों में, निर्धन का प्रवेश नहीं है।
कल तक जिसमें खेला था वो, उस घर को ही जला दिया है।
भीष्म पिता के जैसे मुझको, शर शैय्या पे सुला दिया है...
जाने कैसा काल, समय है, जाने क्या जीवन यापन है।
यहाँ भूख से मरता कोई, और कहीं पैसों का वन है।
"देव " किसी की आँख में आंसू, फर्क नहीं पर पड़ता कोई,
अंदर से मन में कालापन, और बाहर से उजला तन है।
मेरे कोमल अंतर्मन को, अम्ल धार से जला दिया है।
भीष्म पिता के जैसे मुझको, शर शैय्या पे सुला दिया है।"
..................चेतन रामकिशन "देव"………..............
दिनांक-०४.०८.२०१५
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