Thursday 29 May 2014

♥♥हम जैसे लोग..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥हम जैसे लोग..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
रिश्ता न तोड़ देना, तुम हमसे एक पल में,
हम जैसे लोग दिल से, बरसों नहीं निकलते!

दिल में दर्द है भारी, आँखों में एक जलन है,
वरना तो सर्दियों में, आंसू नही उबलते!

मिन्नत करो उसी से, सीने में जिसके दिल है,
पत्थर से लोग देखो, बिल्कुल नहीं पिघलते!

होता न प्यार तुमसे, होती जो न मोहब्बत,
तो भूल से भी दिल के, अरमां नहीं मचलते! 

वो नाम के थे अपने, शायद वजह यही हो,
वरना वो देख मुझको, बचकर नहीं निकलते!

नियत में खोट होगा, उस आदमी की शायद,
वरना ज़मीर वाले, ऐसे नहीं फिसलते!

हमको न "देव " समझो, तुम अपने ही तरह का,
हम लोग प्यार वाले गुल को, नहीं मसलते!" 

.............चेतन रामकिशन "देव"….………
दिनांक- ३०.०५.२०१४

♥♥खुशियों की मुफ़लिसी ..♥♥

♥♥♥♥♥♥खुशियों की मुफ़लिसी ..♥♥♥♥♥♥♥♥
फुर्सत मिली कभी तो, पूछेंगे जिंदगी से!
हमने था क्या बिगाड़ा, जो दुख मिला सभी से!

सिक्के भी और सोना, चाँदी भी है बहुत पर,
कैसे करें गुजारा खुशियों की, मुफ़लिसी से!

रिश्ते भी आज झूठे, एहसास कुछ नहीं है,
हम भी नहीं करेंगे, अब प्यार ये किसी से!  

हर रोज जीते जी ही, मरना पड़ा हमे तो,
फिर खौफ कैसे खाते, हम यार ख़ुदकुशी से!

जिसको था दिल से चाहा, उसने ही दिल को तोड़ा,
अब पार कैसे पायें, हम ग़म से, बेबसी से!

सूरत को देखकर ख़ुश, आंसू ने हमको दे दें,
गुमनाम हैं तभी हम, डरते हैं हम ख़ुशी से! 

माना के "देव" मुझसे, गलती हुई थी लेकिन,
खायेंगे अब न  धोखा, जज़्बात में किसी से! "

.............चेतन रामकिशन "देव"….…......
दिनांक- २९.०५.२०१४

Wednesday 28 May 2014

♥♥मैं हूँ पत्थर..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥मैं हूँ पत्थर..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मेरी हसरत, मेरे एहसास मुझमें रहने दो!
मैं हूँ पत्थर के मुझे दर्द यहाँ सहने दो!

बांध टूटेगा तो आयेगी सुनामी कोई,
इसीलिए आँखों से मेरी ये अश्क़ बहने दो!

मैं सही हूँ ये मेरा दिल भी जानता है सुनो,
सारी दुनिया को जो कहना है, उसे कहने दो!

लोग महफ़िल में बड़े ही सवाल करते हैं,
मुझे तन्हा मुझे गुमनाम जरा रहने दो!

मेरे चेहरे पे खिंची दर्द की लकीरों से,
वास्ता आखिरी पल तक हमारा रहने दो!

ये महल तुम ही रखो, तुमको ही मुबारक हों,
मुझे माँ बाप का छोटा सा घर वो रहने दो!

"देव" उम्मीद है ये तुम मुझे मिलोगे कभी,
फ़ासला अपने दरम्यान भले रहने दो! "

.........चेतन रामकिशन "देव"……..
दिनांक- २९.०५.२०१४

Tuesday 27 May 2014

♥प्यार का दीया...♥

♥♥♥♥♥प्यार का दीया...♥♥♥♥♥
एक दीया का प्यार का जलाने दो!
सारी नफरत को भूल जाने दो!

हाथ से हाथ तो मिले हैं बहुत,
दोस्ती दिल से अब निभाने दो!

हार से बढ़के क्या मिलेगा सुनो,
अपनी तक़दीर आज़माने दो!

कर दें इनकार वो है उनकी रज़ा,
हाले-दिल उनको तुम बताने दो!

नींद एक पल में पास आएगी,
माँ को लोरी तो गुनगुनाने दो!

गूंजे आँगन में हर घड़ी खुशियाँ,
घर में बेटी को खिलखिलाने दो!

"देव" उनको नज़र लगे न कोई,
अपने दिल में उन्हें छुपाने दो!"

.......चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक- २८.०५.२०१४

♥♥प्रेम साधना..♥♥♥


♥♥♥♥♥प्रेम साधना..♥♥♥♥♥
न ही शत्रु हो न विनाशक हो!
भावनाओं की तुम उपासक हो!
प्रेम को सिद्ध कर दिया तुमने,
तुम तपस्वी हो, तुम ही साधक हो!

जब से तुमसे मिलन हुआ मेरा,
आत्मा तुममें लीन रहती है!
एक नदी प्रेम से भरी मेरे,
मन के आँगन में रोज बहती है!

मेरी वृद्धि के तुम हो सहयोगी,
न ही कंटक हो, न ही बाधक हो!
प्रेम को सिद्ध कर दिया तुमने,
तुम तपस्वी हो, तुम ही साधक हो!

न ही छल, न ही तुम अभिमानी,
न ही हिंसा की बात करती हो!
मेरी सुबह को तुम उजाला दे,
हर्ष भावों से रात करती हो!

तुम सिखाती हो सत्य की बातें,
न ही मिथ्या का तुम कथानक हो!
प्रेम को सिद्ध कर दिया तुमने,
तुम तपस्वी हो, तुम ही साधक हो!

तुम समर्पित हो तुम, तुम दयालु हो,
तुमसे आशाओं को गति मिलती!
"देव" मैं कुछ नहीं तुम्हारे बिना,
तुमसे मन को मेरे मति मिलती!

प्रेम से पूर्ण है तुम्हारी छवि,
न निराशा की तुम सहायक हो!
प्रेम को सिद्ध कर दिया तुमने,
तुम तपस्वी हो, तुम ही साधक हो!"

..........चेतन रामकिशन "देव"………
दिनांक- २७.०५.२०१४


"
प्रेम, केवल ढाई अक्षरों में सिमट जाने वाला तत्व नहीं, अपितु व्यापक है, प्रेम सम्बंधित पक्षों में, जब समर्पण भाव के साथ निहित होता है, तो प्रेम आत्मीय अवस्थाओं में साधना का रूप ले लेता है, परन्तु इस साधना को वही प्रेम तपस्वी पूर्ण कर पाते हैं, जो प्रेम के वास्तविक मूल्यों से परिचित होते हैं, जो  प्रेम को ढाई अक्षरों मात्र में नहीं अपितु व्यापक अर्थों में देखते हैं, तो आइये प्रेम करें "


" सर्वाधिकार सुरक्षित, मेरी ये कविता मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित "

Sunday 25 May 2014

♥टूटे दिल के बिखरे टुकड़े ♥

♥♥♥टूटे दिल के बिखरे टुकड़े ♥♥♥
मिन्नतें उम्र भर मैं करता रहा!
ख्वाब आँखों मैं जिनके भरता रहा!
देखते वो रहे तमाशा यहाँ,
दिल मेरा टूट कर बिखरता रहा!

खून के रिश्तों का ही अपनापन,
दिल के रिश्तों का कोई नाम नहीं!

प्यार के बदले मिल रही नफरत,
अब वफ़ा का कोई ईनाम नहीं!

उनको फुर्सत नहीं दवाओं की,
दर्द मेरा यहाँ उभरता रहा!
देखते वो रहे तमाशा यहाँ,
दिल मेरा टूट कर बिखरता रहा...

मैं भी इंसान हूँ नहीं पत्थर,
दर्द मेरे भी दिल को होता है!

मेरी आँखे भी हैं अभी जिन्दा,
आंसूओं का रिसाव होता है!

 "देव" कैसे यकीन हो सच का,
अब तलक तो हर एक मुकरता रहा!
देखते वो रहे तमाशा यहाँ,
दिल मेरा टूट कर बिखरता रहा! "

.....चेतन रामकिशन "देव"…..
दिनांक- २६.०५.२०१४  

Saturday 24 May 2014

♥अक्स तुम्हारा..♥

♥♥♥♥अक्स तुम्हारा..♥♥♥♥
तुम बिन चैन नहीं आता है!
तुमसे ये कैसा नाता है!
जिधर भी देखूं नज़र उठाकर,
अक्स तुम्हारा दिख जाता है!

तुम्हें देखकर मन खुश होता,
तुम्हे सोचकर दिल हँसता है,
देख तुम्हारी सूरत लगता,
मानों तुम में रब वसता है!

इन्द्रधनुष भी तेरे नाम को,
मेरे संग में लिख जाता है!
जिधर भी देखूं नज़र उठाकर,
अक्स तुम्हारा दिख जाता है...

तुमने नज़रें फेरीं जबसे,
गुमसुम खोया सा रहता हूँ,
बाहर से बेशक हँसता पर,
भीतर से रोया रहता हूँ!

तुम बिना दवा असर नहीं करती,
दिल गहरे से दुख जाता है!
जिधर भी देखूं नज़र उठाकर,
अक्स तुम्हारा दिख जाता है! "

.....चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक- २४.०५.२०१४

Friday 23 May 2014

♥♥पीड़ा की ज्वाला...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥पीड़ा की ज्वाला...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मेरे जीवित तन को फूंका, कुछ अपनों ने ज्वाला बनकर!
मेरे कंठ को गला दिया है, जहर भरा एक प्याला बनकर!
नहीं पता मेरी हत्या कर, आखिर वो कैसे जीते हैं,
मेरी देह को किया है घायल, काँटों की एक माला बनकर!

है संवेदनहीन जहाँ ये, दिल को छलनी कर देता है!
अपने हित में किसी का आँचल, दर्द दुखों से भर देता है!

अंग अंग को सुन्न कर दिया, विषधर का एक छाला बनकर! 
मेरे जीवित तन को फूंका, कुछ अपनों ने ज्वाला बनकर...

अपनायत की बात करें पर, चुपके से जड़ काट रहें हैं!
प्यार भरे खिलते उपवन को, वो नफरत से पाट रहे हैं!
"देव" बड़ी आशायें लेकर, मैंने जिनको अपना माना, 
लोग वही शत्रु की तरह, नाम हमारा छांट रहे हैं! 

घाव हैं गहरे, खून रिसा है, पीड़ा का व्यापक स्तर है! 
तेज़ाबों का बादल ऊपर, नीचे शूलों का बिस्तर है!

जीवन मेरा हुआ है खंडहर, दुख लिपटा है जाला बनकर!
मेरे जीवित तन को फूंका, कुछ अपनों ने ज्वाला बनकर!"

.................चेतन रामकिशन "देव"….....................
दिनांक- २४.०५.२०१४ 

Thursday 22 May 2014

♥♥तुम्हे देखकर...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥तुम्हे देखकर...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम्हे देखकर दिन निकला था, तुम्हे सोचकर रात हो गयी!
पर तुम मिलने न आयीं तो, आँखों से बरसात हो गयी!
एक एक लम्हा तुम्हे पुकारा, बेचैनी के हालातों में,
नहीं पलटकर देखा तुमने, ऐसी भी क्या बात हो गयी!

क्या रंजिश है, क्यों गुस्सा हो, मुझको समझ नहीं आता है!
बिना तुम्हारे मेरा चेहरा, सुबक सुबक कर मुरझाता है!

खुशियों की ख्वाहिश थी लेकिन, पीड़ा की सौगात हो गयी!
तुम्हे देखकर दिन निकला था, तुम्हे सोचकर रात हो गयी...

तुम बिन धड़कन मंद हो गयी, सुनना कहना सब भूला हूँ!
बिना तुम्हारे एक पल को भी, जिन्दा रहना मैं भूला हूँ! 
"देव " तुम्हारे साथ ने मुझको, मंजिल का पथ दिखलाया था,
बिना तुम्हारे टूट गया मैं, मुश्किल को सहना भूला हूँ! 

मुझे तुम्हारे प्यार की ताक़त से, जीने का बल मिलता है!
मुझे तुम्हारे प्यार की ताक़त से, मुश्किल का हल मिलता है!

लेकिन तुमने साथ दिया न, जीती बाज़ी मात हो गयी !
तुम्हे देखकर दिन निकला था, तुम्हे सोचकर रात हो गयी! "

......................चेतन रामकिशन "देव"....................
दिनांक-२१.०५.२०१४

♥शूलों का रोपण..♥

♥♥♥♥शूलों का रोपण..♥♥♥♥
क्षण भर में आरोपित करते!
गलत तथ्य को पोषित करते!
किसी मनुज के कोमल मन पर,
शूल हजारों रोपित करते!

खुद को गंगाजल औरों को,
मदिरा से सम्बोधित करते!
किसी मनुज की कर्मठता को,
क्षण भर में अवरोधित करते!
बस अपने आदेश सुनाते,
बिना पक्ष औरों का जाने,
पीड़ा के गहरे शब्दों को,
हर क्षण वो उद्बोधित करते!

आरोपों की अग्नि से वो,
जल जीवन अवशोषित करते!
किसी मनुज के कोमल मन पर,
शूल हजारों रोपित करते....

किन्तु सबको एक रंग में ही,
रंग देना भी न्याय नहीं है!
बस अपने को गंगा कहना,
नीतिगत अध्याय नहीं है!
"देव" समय जब करवट लेता,
तो पर्वत भी गिर जाते हैं!
दिवसों, घंटों चाहने वाले,
लोग यहाँ पर फिर जाते हैं!

नहीं पता वो रक्त से कैसे,
अपने मन को शोधित करते!
किसी मनुज के कोमल मन पर,
शूल हजारों रोपित करते! "

.....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक- २३.०५.२०१४

Tuesday 20 May 2014

♥♥♥मन का अपराध..♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥मन का अपराध..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सोच पे ताला कैसे डालूं, बंद करूँ कैसे भावों को!
बिना तुम्हारे कैसे भर लूँ, मैं विरह के इन घावों को!
तुमने बेहद आसानी से, मेरे प्यार को ठुकराया है,
तुम्ही बताओ कैसे तोडूं, अपने हाथों से ख्वाबों को!

भले प्यार के पथ पे मैंने, दर्द बहुत गहरा पाया है!
लेकिन मन ने चाहा तुमको, मेरे दिल ने अपनाया है!

झेल रहा हूँ अपने दिल पर, मैं पीड़ा के प्रभावों को!
सोच पे ताला कैसे डालूं, बंद करूँ कैसे भावों को...

किसी की चाहत में रंग जाना, क्या मन का अपराध यही है!
किसी के ख्वाबों में खो जाना, क्या मन का अपराध यही है!
"देव" अगर कांटे बनते हम, तो दुनिया को रास न आते,
फूल यहाँ बनकर खिल जाना, क्या मन का अपराध यही है!

अगर मैं हूँ अपराधी तो फिर, सज़ा मुझे तुम ऐसी देना !
इस दुनिया से प्यार वफ़ा के, नाम को भी तुम दफ़ना देना!

नहीं रोक सकता हाथों से, मैं अश्क़ों के सैलाबों को! 
सोच पे ताला कैसे डालूं, बंद करूँ कैसे भावों को! "

..............चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-२१.०५.२०१४ 

Sunday 18 May 2014

♥तेरी आँखों से..♥

♥♥♥♥♥तेरी आँखों से..♥♥♥♥♥
तेरी आँखों से हमें प्यार मिले!
तेरी आवाज़ से क़रार मिले!

तेरी ज़ुल्फ़ों में बूंद पानी की,
जैसे सावन भरी फुहार मिले!

बिन तेरे जिंदगानी पतझड़ थी,
तेरे आने से हर बहार मिले!

अपनी छत पर जो तुम चली आओ,
चांदनी रात को निखार मिले!

देखकर तुमको ऐसा लगता है,
तेरा दीदार बार बार मिले!

बस दुआ फूल की तुम्हारे लिए,
न ही उलझन, न कोई ख़ार मिले!

"देव" तुझको नज़र से छू लूँ जब,
सारा आलम ये खुशगवार मिले!"

..........चेतन रामकिशन "देव".......... 
दिनांक-१९.०५.२०१४

Saturday 17 May 2014

♥♥बेगुनाही की सज़ा..♥♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥बेगुनाही की सज़ा..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
क्या मेरा एहसास गलत था, जो मुझको मुज़रिम ठहराया!
क्या मेरी आँखों का बहता झरना तुमको नजर न आया!
क्यों बस अपनी अपनी कहकर, मुझको ये इलज़ाम दिया है,
एक पल को भी मेरा ये दिल, इस सदमे से उभर न पाया!

क्यों मानवता मरी मरी है, कोई दिल की नहीं सुन रहा!
सब रस्ते में कंकर फेंके, कोई कांटे नहीं चुन रहा!

दवा तलक भी न दी उसने, और दुआ भी कर न पाया!
क्या मेरा एहसास गलत था, जो मुझको मुज़रिम ठहराया.....

लोग यहाँ औरों को कीचड़, खुद को गंगाजल कहते हैं!
बस अपने को कहें सार्थक, औरों को निष्फल कहते हैं!
"देव" जहाँ में जिनकी नीति, होती है बस खुदगर्जी की,
वही लोग सच्चे इन्सां की, निर्मलता को छल कहते हैं!

घाव दिए हैं शब्द बाण से, जो जीवन भर नही भरेंगे!
सबक मिला है आज हमे ये, अब अपनायत नहीं करेंगे!

कितना घातक जहर ये देखो, अमृत से भी मर न पाया!
क्या मेरा एहसास गलत था, जो मुझको मुज़रिम ठहराया!"

....................चेतन रामकिशन "देव".......................
दिनांक-१८.०५.२०१४  

Friday 16 May 2014

♥♥लड़ाई भूख से..♥♥

♥♥♥♥लड़ाई भूख से..♥♥♥♥
लड़ाई भूख से लड़ने लगे हैं!
परिंदे शाख़ से उड़ने लगे हैं!

नशे का दौर ऐसा आ गया के,
नए पत्ते भी अब सड़ने लगे हैं!

मेरे दुश्मन हैं जाने दोस्त हैं वो,
जो आंसू आँख में जड़ने लगे हैं!

हैं हरकत नौजवानों की घिनोनी,
बड़े भी शर्म से गड़ने लगे हैं!

जो बिगड़ा वक़्त तो टूटे सितारे,
वो राजा पैर तक पड़ने लगे हैं!

वफ़ा का खाद पानी न मिला तो,
ख़ुशी के फूल सब झड़ने लगे हैं!

नज़र में "देव" क्यों हैं सरफिरे वो,
जो सच की बात पे अड़ने लगे हैं!"

.......चेतन रामकिशन "देव"……  
दिनांक-१७.०५.२०१४

Thursday 15 May 2014

♥♥किसी के दिल पे..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥किसी के दिल पे..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
किसी के दिल पे क्या बीतेगी, कहने वाले क्या जानेंगे!
बस इलज़ाम लगाने वाले, अपनी गलती क्या मानेंगे!
वो जिनकी आँखों को दिखता, बस नफ़रत का काला धुआं,
आखिर ऐसे लोग किसी की, चाहत को क्या पहचानेंगे!

बिना जुर्म के सजा मिले तो, मन को गहरा दुख होता है!
आँखों से बहती है धारा, उतरा उतरा मुख होता है!

मुझको ज़हर पिलाने वाले, खून को मेरे क्या छानेंगे!
किसी के दिल पे क्या बीतेगी, कहने वाले क्या जानेंगे!

इस दुनिया का हाल यही है, चकित नहीं हूँ इस मंजर से!
लोग यहाँ चाहत को काटें,  कभी कुल्हाड़ी और खंजर से!
"देव" हमारे अपनेपन को, इल्ज़ामों का नाम दिया है,
इसीलिए अब चाहत छोड़ी, हमने इल्ज़ामों के डर से!

बस अपने में गुम होकर के, जो अपना जीवन जीते हैं!
कहाँ भला वो लोग जहाँ में, ज़ख्म किसी का कब सीटें हैं!

चीर के रखदूं मैं दिल भी पर, वो क्या सच को सच मानेंगे!
किसी के दिल पे क्या बीतेगी, कहने वाले क्या जानेंगे!  "

...................चेतन रामकिशन "देव"…......................
दिनांक-१५.०५.२०१४

Sunday 11 May 2014

♥♥माँ की छुअन..♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥माँ की छुअन..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
छुअन है माँ की कोमल कोमल, अमृत के जैसी ममता है!
हर संतान की खातिर माँ के, मन मेँ एक जैसी समता है!
नहीं जानती है माँ छल को, नहीं फरेबी माँ की बातें,  
माँ के मन में सहनशीलता की, देखो व्यापक क्षमता है!

माँ अपने बच्चों के हित में, अपना सुख भी त्यागा करती!
और बच्चों की नींद की ख़ातिर, रात रात भर जागा करती!

बच्चों को नाखुश देखे तो, खून यहाँ माँ का जमता है!
छुअन है माँ की कोमल कोमल, अमृत के जैसी ममता है!

गंगाजल सा पावन मन है, न क़ोई ईर्ष्या होती है!
माँ के आँचल में हर लम्हा, प्यार, वफ़ा, ममता होती है!
वो जो अपने हित की खातिर, गला घोट देती ममता का,
ऐसी औरत कभी रूह से, नहीं जरा भी माँ होती है! 

माँ केवल सम्बन्ध नहीं है, और माँ केवल नाम नहीं है!
माँ की कीमत नहीं है कोई, और ममता का दाम नहीं है!

बच्चों के घर न आने तक, माँ का तो जीवन थमता है!
छुअन है माँ की कोमल कोमल, अमृत के जैसी ममता है!

माँ सिखलाती कलम चलाना, माँ सिखलाती पैदल चलना!
माँ की हिम्मत में शामिल है, तिमिर में दीपक जैसे जलना!
"देव " जहाँ में रिश्ते नाते, माँ से बढ़कर हो नहीं सकते,
इसीलिए तुम एक पल को भी, माँ से नजरेँ नहीं बदलना!

जीवन का अाधार है माँ से, माँ के बिन दुनिया खाली है! 
माँ बच्चों को खुश्बू देती, माँ तो फ़ूलों की डाली है!

दुआ हजारों दे बच्चोँ को, प्यार नहीं माँ का थकता है ! 
छुअन है माँ की कोमल कोमल, अमृत के जैसी ममता है!"


................चेतन रामकिशन "देव"………………
दिनांक-११.०५.२०१४ 
  
( मेरी ये रचना दोनों माताओं माँ कमला देवी एवं प्रेमलता जी को समर्पित 

Sunday 4 May 2014

♥माँ का आँचल ...♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥माँ का आँचल ...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दूध भरा जिसके आँचल में, और जिसका मन गंगाजल है!
जो अपने आशीष भेजकर, संतानों में भरती बल है!
इस दुनिया में ढूंढे से भी, नहीं हमे मिल सकता देखो,
जितना पावन, जितना कोमल, इस दुनिया में माँ का दिल है!

माँ के दिल की करो वंदना, माँ के दिल की करो इबादत!
माँ के दिल में प्यार वफ़ा है, माँ के दिल में नहीं तिज़ारत !

माँ का दामन प्यार भरा है और माँ की ममता निश्छल है!
दूध भरा जिसके आँचल में, और जिसका मन गंगाजल है!

हर संतान उसे प्यारी है, नहीं किसी को कमतर आंके!
सही गलत का भेद कराती, संतानों के दिल में झांके!
कभी बेटियों की चोटी की, माँ अच्छे से करे सजावट,
और कभी बेटों की खातिर, वो गिरते बटनों को टांके!

आशाओं की जोत जलाती, अपनी संतानों के मन में!
निश दिन ईश्वर से कहती है, ठेस लगे न उनके तन में!

माँ की बोली शहद सी मीठी, माँ का मुखड़ा बड़ा धवल है!
दूध भरा जिसके आँचल में, और जिसका मन गंगाजल है!

माँ अपनी संतान का गुस्सा, हँसकर के टाला करती है!
अपना दुख और भूख भूलकर, बच्चों को पाला करती है!
"देव" जहाँ में माँ के दिल सा, बड़ा नहीं कोई दिल होता,
मा संतानों के क़दमों में, अपना सुख डाला करती है!

माँ की कोई जात नहीं है, न शहरी न ही देहाती!
मा का मज़हब बस ममता है, न कोई दीवार उठाती!

माँ की ममता सुर्ख गुलाबी, माँ की ममता श्वेत कमल है!
दूध भरा जिसके आँचल में, और जिसका मन गंगाजल है!"


"
माँ-एक चरित्र जिसका जन्म हुआ है ममता का प्रेषण करने के लिये, माँ के अपनत्व क निर्धारण हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्धिस्ट एवं अन्य के आधार पर नहीं,  अपितु ममता के आधार पर होता है, माँ के प्रखर स्वरूप को नमन "

.....चेतन रामकिशन "देव"…....
दिनांक-०४.०५.२०१४ 


Saturday 3 May 2014

♥♥♥हमराज़...♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥हमराज़...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुमको हर बात पता है, तुम हो हमराज़ मेरे!
तुमसे गुजरा हुआ कल था, हो तुम्ही आज मेरे!
तुमसे एक बात तलक, मैंने न छुपाई है,
तुम ही अंजाम मेरा हो, तुम्ही आगाज़ मेरे! 

जानकर भी मेरे हालात, क्यूँ शिकायत है!
तुमको मालूम है जबकि, तु मेरी चाहत है!

तुमसे लफ्जों की चमक, और तुम हो साज़ मेरे!
तुमको हर बात पता है, तुम हो हमराज़ मेरे!

तुमको सपनो का पता, तुमको ख्वाहिश का पता!
तुमको मुझपर जो हुई, हर किसी साज़िश का पता!
और तुमसे क्या छुपाऊँ, हो रूह तुम मेरी,
तुमको जीवन में हुयी दर्द की बारिश का पता!

मुझसे नाराज़ भी रहकर, क्या भला पाओगे!
क्या मेरा घर, मेरी तस्वीर, तुम जलाओगे!

तेरे सजदे में झुक सर, तुम हो सरताज मेरे!
तुमको हर बात पता है, तुम हो हमराज़ मेरे!

मेरा हर एक कदम साथ तेरे चलता है!
तुमसे मिलने को मेरा दिल भी तो मचलता है!
"देव" ये बात अलग है, कोइ मजबूरी हो,
वरना दिल मेरा भी, यादों में तेरी जलता है!

मेरी धरती भी तुम्ही, और तुम ही अम्बर हो! 
मेर आँगन हो तुम्ही और तुम मेरा घर हो!

तुमसे त्यौहार मेरे और तुम रिवाज़ मेरे!
तुमको हर बात पता है, तुम हो हमराज़ मेरे!"

"
प्रेम-के पथ में जब वो क्षण आते हैं जब, एक पक्ष दूसरे पक्ष के हर व्यवहार, हर कार्य, हर अनुभूति से परिचित होते भी संदेह की अवस्था लाता है तो वहां दूसरे पक्ष को पीड़ा मिलती है, हलांकि प्रथम पक्ष के संदेह जताने की पीछे प्रेम ही होता है मगर उसका स्वरूप उसे पीडा के रूप में प्रतिस्थापित कर देता है, और ये दशा प्रेम सबंधों के खंडित होने की अवस्था तक भी पहुँच जाती है, चूँकि प्रेम सम्बन्धित पक्षों के समर्पण क विषय है तो आइये चिन्तन करेँ! "


...........चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-०३.०५.२०१४ 


Friday 2 May 2014

♥♥बारूद..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥बारूद..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जिस्म बारूद बना इसको तुम सुलगने दो!
मेरे जज़्बात मेरे दिल में आग लगने दो!

मैं जो तड़पूँ तो मेरे मुंह को बंद कर लेना,
क्यों पड़ौसी को मेरी चीख से तुम जगने दो!

तुम तो कातिल हो तुम्हें दर्द से क्या मतलब है,
दिल को सीने से अलग करके तुम सुबकने दो!

सर्द मौसम में दवाओं का काम कर देंगे,
मेरे अश्कों को जरा तुम यहाँ भभकने दो!

मेरे हाथों में बनी थी जो प्यार की रेखा,
ग़म के तेज़ाब से तुम उसको जरा गलने दो!

बंदिशों में ही रहा जब तलक रह ज़िंदा,
बाद मरने के मेरी रूह को बहकने दो!

"देव" तुमसे न गिला और न शिकवा कोई,
बन्द आँखों से मुझे तय ये सफ़र करने दो!"

...........चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-०२.०५.२०१४