♥♥♥♥♥♥ये कैसी आराधना ♥♥♥♥♥♥♥♥
"घर में माता-पिता भूख से मर रहे!
हम मगर पत्थरों को नमन कर रहे!
उनके जीवन में देके, तपन आग की,
शांति के लिए हम हवन कर रहे!
घर में माता पिता को सताते रहे!
मंदिरों में मगर सर झुकाते रहे!
ये तो पूजा नहीं, हम तो छल कर रहे!
घर में माता-पिता भूख से मर रहे......
उनके तन पे फटे चिथरों की ढकन!
हमको किन्तु हमारे सुखों की लगन!
हमको उनके दुखों से नहीं वास्ता,
जिनकी कृपा से हमको मिला है जनम!
घर में माता पिता को रुलाते रहे!
मंदिरों में मगर सर झुकाते रहे!
हमको तो उनके शरीरों पे विष मल रहे!
घर में माता-पिता भूख से मर रहे......
ये नहीं सत्कर्म, ये निरा पाप है!
ये नहीं हर्ष है, ये तो संताप है!
"देव" जिनके मनों में न माता पिता,
ऐसी संतान तो बस अभिशाप है!
ये तो पूजा नहीं, हम अकल कर रहे!
घर में माता-पिता भूख से मर रहे!"
"स्वयं सोचिये, क्या उचित है ये आराधना, ये पूजा! यदि हमारे माता पिता, हमारे लिए कुछ नहीं तो ऐसे में क्या मंदिर, क्या मस्जिद, क्या गुरुद्वारा, क्या गिरजाघर-चेतन रामकिशन "देव"