Friday 19 October 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥जीवन(एक गतिशील अवस्था)♥♥♥♥♥♥♥♥
जीवन पथ में कभी विरह तो, कभी मिलन के पल आते हैं!
कभी यहाँ चुभते हैं कंटक, कभी सुमन भी खिल जाते हैं!
किन्तु अपने जीवन से तुम, साहस का परित्याग न करना,
साहस का धारण करने से, मुश्किल के पल ढल जाते हैं!

जीवन की नियति में देखो, सुख दुःख दोनों की नीति है!
कभी हारती है किस्मत तो, कभी यहाँ मेहनत जीती है!

कभी यहाँ बुझते हैं दीपक, कभी सितारे जल जाते हैं!
जीवन पथ में कभी विरह तो, कभी मिलन के पल आते हैं...

भूले से भी अपने मन को, नहीं कभी अवचेतन करना!
पीड़ा की घातक किरणों का, तुम न कभी विभेदन करना!
जीवन में अपने हाथों से, किसी का जीवन न बंजर हो,
आशाओं के वाहक बनकर, नहीं निराशा प्रेषण करना!

जीवन के आँगन में देखो, कभी हर्ष की ज्योति जलती!
और कभी अपनों के हाथों, जीवन में पीड़ा भी मिलती!

कभी आज पीड़ामय होता, कभी सुनहरे कल आते हैं!
जीवन पथ में कभी विरह तो, कभी मिलन के पल आते हैं...

जो जीवन को युद्ध समझके, युद्ध कला को विकसित करते!
वही लोग एक दिन दुनिया में, इतिहासों की रचना करते!
"देव" जिन्हें अपने लक्ष्यों की, यहाँ प्राप्ति करनी होती,
वो न देखें तिमिर रात का, न कल की प्रतीक्षा करते!

जीवन के इस पथ में देखो, नहीं पराजय से घबराना!
अपने मन में आशाओं के, मरते दम तक दीप जलाना!

गर्म लहू की आंच से देखो, दुःख के हिम भी गल जाते हैं!
जीवन पथ में कभी विरह तो, कभी मिलन के पल आते हैं!"

"
जीवन पथ-ऐसे कोई व्यक्ति नहीं जो संघर्ष की अवस्था में नहीं हो, हर व्यक्ति आगे बढ़ना चाहता है, किन्तु आगे बढ़ने के लिए स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना और साहस का होना अति आवश्यक है! हाँ ये भी सत्य है कि कुछ लोग सफलता के लिए दूसरों से प्रतिस्पर्धा नहीं बल्कि उन्हें गिराने/छलने का प्रयास करते हैं, किन्तु यदि आप में जीतने का जज्बा है, तो पहाड़ जैसी समस्याएँ/बाधायें भी बाधक नहीं बन सकतीं!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२०.१०.२०१२ 

सर्वाधिकार सुरक्षित!
ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!



♥♥♥♥♥♥♥♥♥वक़्त के साथ.♥♥♥♥♥♥♥♥♥
वक़्त के साथ जो चलते हैं, वो बढ़ जाते हैं!
आलसी लोग यहाँ कुछ नहीं कर पाते हैं!

जंगे-मैदान में वो खाक भला जीतेंगे,
जंग के नाम से ही लोग जो डर जाते हैं!

ऐसे लोगों में कहाँ जिन्दादिली होती है,
गम के तूफान से जो पल में बिखर जाते हैं!

ऐसे लोगों को भला कैसे भुलाये कोई,
रूह में चांदनी बनके जो उतर जाते हैं!

लोग ऐसे भी "देव" कम नहीं जमाने में,
मुल्क के नाम जो हँसते हुए मर जाते हैं!"

.........(चेतन रामकिशन "देव").........

♥♥♥♥♥♥♥♥उनकी जुदाई.♥♥♥♥♥♥♥♥♥
उनकी जुदाई का बड़ा, गहरा असर हुआ!
मंजिल भी खो गईं सभी, सुनसान घर हुआ!

आँखों से अश्क बहते हैं, सांसों में चुभन है,
बिन उनके जिंदगी का ये मुश्किल सफर हुआ!

आया जो बुरा वक़्त तो हालात ये हुए,
अपनों की तरह अजनबी मेरा शहर हुआ!

अख़बारों में भी छपते हैं दमदार के बयां,
अख़बार भी मजलूमों से अब बेखबर हुआ!

अब "देव" कौन किसके लिए फिक्रमंद है,
गुम अपने में देखो यहाँ, हर इक बशर हुआ! "
..........(चेतन रामकिशन "देव")............