Saturday 30 March 2013

♥तुम्हारा सम्बन्ध..♥


♥तुम्हारा सम्बन्ध..♥
ह्रदय के स्पंदन में हो!
तुम पूजा में, वंदन में हो!
तुमसे ही जीवन में उर्जा,
तुम जीवन के हर क्षण में हो!

मीत तुम्हीं हो, जीत तुम्हीं हो!
मेरे मन की प्रीत तुम्हीं हो!
हर मौसम की रंगत तुमसे,
तुम ही बारिश, शीत तुम्हीं हो!

हरियाली के हरे रंग में,
तुम फसलों में, तुम वन में हो!
तुमसे ही जीवन में उर्जा,
तुम जीवन के हर क्षण में हो...

तुम गीतों का भाव पक्ष हो,
तुम शब्दों का अलंकार हो!
तुम यमुना का शीतल पानी,
तुम गंगा की मधुर धार हो!

तुम्ही हमारी स्मरण शक्ति,
तुम्ही "देव" के यौवन में हो!
तुमसे ही जीवन में उर्जा,
तुम जीवन के हर क्षण में हो!"

....चेतन रामकिशन "देव"....
दिनांक-३१.०३.२०१३

Friday 29 March 2013

♥♥गीतों के बोल.♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥गीतों के बोल.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तेरी याद में मेरे हमदम, कुछ गीतों के बोल लिखूंगा!
मैं अपने लफ्जों से अपने, जीवन का भूगोल लिखूंगा!

मेरे यारों शै उल्फत की, नहीं बाजारों में बिकती है,
इसीलिए मैं इस उल्फत को, हर पल ही बेमोल लिखूंगा!

तेरे नूर की उजली किरणें, धवल चांदनी के जैसी हैं,
मैं तेरे प्यारे मुखड़े को, चाँद की तरह गोल लिखूंगा!

इस दुनिया में बिन मेहनत के, मंजिल पास नहीं आती है,
बिन हिम्मत के अपने कश्ती, हर पल डांवाडोल लिखूंगा!

"देव" यहाँ पर जिन लोगों को, भाता है बस खून खराबा,
मैं ऐसे लोगों के तन पर, जंगलीपन का खोल लिखूंगा!"

..................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-२९.०३.२०१३


Thursday 28 March 2013

♥♥बादल के आंसू..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥बादल के आंसू..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
विरह भाव से पीड़ित होकर, बादल के भी आंसू बरसे!
बादल के प्यासे नैना भी, सखी तेरे दर्शन को तरसे!

जिधर भी देखो उसी दिशा में, आंसू की नदियाँ बहती हैं!
सखी न जाने कब आएगी, मन ही मन अपने कहती हैं!
बादल का रंग तन्हाई में, "देव" तरसकर हुआ है काला,
कुछ कहने को शब्द नहीं हैं, ये नदियाँ चुप चुप रहती हैं!

इंतजार में सखी तुम्हारे, बीत गए हैं कितने अरसे!
विरह भाव से पीड़ित होकर, बादल के भी आंसू बरसे!"

......................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-२८.०३.२०१३

Wednesday 27 March 2013

♥♥ख्वाहिशों की होली♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥ख्वाहिशों की होली♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
किसी का दिल यहाँ होली के, जैसे जल रहा होगा!
कोई अपनी अमीरी में, उफन कर चल रहा होगा!
कोई भूखा है अरसे से, मगर ईमान रखता है,
कोई पर अपने मकसद में, जहाँ को छल रहा होगा!

जो मुफलिस भी पनप जाये, यहाँ ऐसा नहीं होता!
कोई खरबों में जीता है, कहीं पैसा नहीं होता!
यहाँ पर "देव" मजलूमों की, अर्जी कौन सुनता है,
यहाँ पीड़ित जो चाहता है, कभी वैसा नहीं होता!

अदालत में भी मुफ़लिस का, मुकदमा टल रहा होगा!
किसी का दिल यहाँ होली के, जैसे जल रहा होगा!"

..................चेतन रामकिशन "देव".................
दिनांक-२७.०३.२०१३

Tuesday 26 March 2013

♥♥मोहब्बत के रंग..♥♥


♥♥♥♥♥♥मोहब्बत के रंग..♥♥♥♥♥♥♥♥
रंग से रंग मोहब्बत का, मिलाया जाये!
आओ नफरत को यहाँ, जड़ से मिटाया जाये!

न ही हिन्दू, नहीं मुस्लिम, न इसाई कोई,
आओ खुद को जरा इंसान, बनाया जाये!

प्यार को दिल में, छुपाने से बढ़ी बेचैनी,
प्यार है जिससे चलो, उसका जताया जाये!

आज होली पे भले लकड़ियों में आग न हो,
अपने दिल में छुपी, नफरत को जलाया जाये!

उम्र भर जो मेरे चेहरे पे, "देव" दिखता रहे,
प्यार का रंग वही, सबको लगाया जाये!"

.........चेतन रामकिशन "देव"..............
दिनांक-२६.०३.२०१३

Monday 25 March 2013

♥♥मेरी होली..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मेरी होली..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
चाँद से ली है धवल चांदनी, सूरज से लाली लाया हूँ!
मैं होली पर तुझे भिगोने, बादल से पानी लाया हूँ!

सखी तेरी सुन्दर आँखों में, गहरा काजल भर दूंगा मैं!
सखी तेरे प्यारे चेहरे पर, रंग प्यार का मल दूंगा मैं!
सखी तुम्हारे माथे पर मैं, तिलक लगाऊंगा रोली का,
और तुम्हे तुलसी की भांति, "देव" मानकर जल दूंगा मैं!

बाहर से भी खिला खिला हूँ, भीतर से भी मुस्काया हूँ!
चाँद से ली है धवल चांदनी, सूरज से लाली लाया हूँ!"

...................चेतन रामकिशन "देव"...................
दिनांक-२५.०३.२०१३

Sunday 24 March 2013

♥♥♥होश..♥♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥होश..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
होश में रहना जरुरी है, हिफाजत के लिए!
मार देंगे वो हमें वरना, सियासत के लिए!

ये है हिन्दू,ये मुसलमा,ये इसाई है यहाँ,
बाँट हमने तो लिया ,खुद को इबादत के लिए!

फोड़ दो आँखे जो देखे हवस के अंदाज़ में ,
वरना पछताओगे तुम, अपनी शराफत के ले लिए!

फिक्र है किसको यहाँ पर मुल्क के जज्बात की,
लोग बनते हैं यहाँ नेता, तिजारत के लिए!

"देव" तुम जबसे मेरे दिल, की डगर पे आये हो,
जिंदगी लगती है कम ,मुझको मोहब्बत के लिए!"

...............चेतन रामकिशन "देव".................
दिनांक-२५.०३.२०१३


Saturday 23 March 2013

♥♥अँधा कानून..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥अँधा कानून..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कातिल तो क़त्ल करके, रिहा होने लगा है!
मजलूम तो हर रोज, तबाह होने लगा है!

कानून ने पट्टी, यहाँ आँखों पे बांध ली,
अब झूठ यहाँ, सच का गवाह होने लगा है!

सांसों को अपनी बेच के, ले आया दवाई,
लफ्जों के दिल में दर्द, अथाह होने लगा है!

बचपन भी रहा दर्द में, और दुख में जवानी,
अब देखो मेरा, गम से निकाह होने लगा है!

ए "देव" मेरे मुल्क का, कैसा निजाम है,
मैं सच को सच लिखूं तो, गुनाह होने लगा है!"

................चेतन रामकिशन "देव"...............
( २३.०३.२०१३)

Friday 22 March 2013

♥♥ हालात..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ हालात..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
अपने हालात पे रोकर भी, क्या मैं पाउँगा!
सूखे पत्तों की तरह, पेड़ से गिर जाऊंगा!

याद आयेंगे तुम्हें, लम्हें मेरी चाहत के,
तेरी महफ़िल में गज़ल, जब मैं गुनगुनाऊंगा!

मुझको अंदाजा है, के जीत अभी मुश्किल है,
फिर भी तकदीर को, मैं अपनी आजमाऊंगा!

अपने माँ बाप से, जलने का हुनर सीखा है,
मैं अंधेरों से कभी, खौफ नहीं खाऊंगा!

चाँद पे घर हो तमन्ना, मैं "देव" रखता नहीं,
हाँ मगर सबकी निगाहों में, घर बनाऊंगा!"

............चेतन रामकिशन "देव".............
( २२.०३.२०१३)


♥♥खून की होली.♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥खून की होली.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
खून की होली खेल रहा है, आज ये भारत देश!
भीग गया है खून से दामन, भीग रहा गणवेश!
फिजा में देखो गूंज रहा है, हत्याओं का शोर,
आज मनुज से लुप्त हो रहे, मानव के अवशेष!

प्रेम भाव के रंगों से अब, रंगत लुप्त हुयी है!
गुंजियों से भी अपनेपन की, खुशबु सुप्त हुयी है!

रहना सहना बदल गया, बदल गया परिवेश!
रक्त की होली खेल रहा है, आज ये भारत देश...

निर्ममता से आज हो रहा, नारी का अपमान!
भूख प्यास से निकल रही है, निर्धन जन की जान!
मंचों से कहते हैं नेता, भारत उदय हुआ है,
किन्तु आज भी फुटपाथों पे, सोता हिंदुस्तान!

नेताओं के घर उड़ता है, देखो रंग गुलाल!
इधर देश का निर्धन तबका, बेबस और कंगाल!

सच्चाई का गला रेतता, मिथ्या का आदेश!
रक्त की होली खेल रहा है, आज ये भारत देश...

रंग लगाने तक न सिमटे, होली का त्यौहार!
नहीं लुटे नारी की इज्ज़त, न हो अत्याचार!
"देव" न रखे कोई मानव, अपने मन में बैर, 
एक दूजे पे नहीं करें हम, पीड़ा की बौछार!

तभी आत्मा तक पहुंचेगा, होली का संगीत!
और जहाँ में हो जाएगी, मानवता की जीत!

चलो करें हम प्रेषित सबको, प्रेम का ये सन्देश!
रक्त की होली खेल रहा है, आज ये भारत देश!"
"
देश का कोई कोना, कोई स्थल, कोई स्थान, हिंसा, द्वेष से अछूता नहीं! लोग कभी मजहब के नाम पर खून बहाते हैं तो कभी दौलत के लिए..कभी कोई नारी की इज्ज़त को छिन्न-भिन्न कर देता है तो कभी नेताओं की उपेक्षा से, देश का निर्धन तबका भूखे पेट मर जाता है, चिंतन करना होगा, वरना " खून की होली" पर विराम नहीं लग सकता!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२२.०३.२०१३ 

"
सर्वाधिकार सुरक्षित.."
मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!"

Thursday 21 March 2013

♥♥चांदनी का सफर..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥चांदनी का सफर..♥♥♥♥♥♥♥
चाँद बनकर के जरा, साथ मेरे जलते रहो!
है सफ़र लम्बा जरा, साथ मेरे चलते रहो!

जिंदगी दर्द में भी, तुमको रास आएगी,
वक़्त के साथ मेरे यार, जरा ढ़लते रहो!

मेरा दावा है के सच्चाई छुप नहीं सकती,
झूठ के साथ भले, सारा जहाँ छलते रहो!

भूल से भी न कभी मौका, सही खो देना,
ऐसा न हो के सदा, हाथ यहाँ मलते रहो!

"देव" मखमल की तरह, जिंदगी हो जाएगी,
ख्वाब बनकर के निगाहों में, जरा पलते रहो!"

..............चेतन रामकिशन "देव"................
( २१.०३.२०१३)

♥♥जिंदा लाश..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥जिंदा लाश..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दर्द के डर से कभी, जिंदा लाश मत होना! 
देखकर गम को कभी, तुम उदास मत होना!

लोग तुमसे जो, यहाँ दूरी बना लें यारों,
झूठ का तुम कभी, ऐसा लिबास मत होना!

जिंदगी एक ही रिश्ते पे, खत्म होती नहीं,
कोई जाए भी मगर, तुम निराश मत होना!

चंद सिक्कों के लिए बेच दो, ईमान तलक,
अपनी इच्छाओं के, इतने भी दास मत होना!

"देव" जीवन में कभी हार, कभी जीत मिले,
हार जाओ भी मगर, तुम हताश मत होना!"

............चेतन रामकिशन "देव"...........
( २०.०३.२०१३)

Tuesday 19 March 2013

♥♥मन की सरगम..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥मन की सरगम..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मेरे मन की सरगम हो तुम, अंतर्मन का गान!
सखी तुम्हारे प्रेम से रहते, मेरे तन में प्राण!
तुम ज्योति जलते दीपक की, तुम सूरज की धूप,
तुम्ही चाँदनी की शीतलता, भोर का तुम आहवान!

सदा ही मेरे साथ चलीं तुम, थाम के मेरा हाथ!
हर पीड़ा में, हर उलझन में, दिया है तुमने साथ!

सखी तुम्हारे प्रेम से हो गई, हर मुश्किल आसान!
मेरे मन की सरगम हो तुम, अंतर्मन का गान....

तुम निर्देशन, तुम अवलोकन, तुम करती सहयोग!
सखी तुम्हारे प्रेम से देखो, मिटा दुखों का रोग!
तुम सावन की मधुरम वर्षा, तुम उपवन का फूल,
तुम्ही तेज हो मुखमंडल का, तुम्ही हर्ष का योग!

सखी तुम्हारे प्रेम से होता, उर्जा का संचार!
सखी तुम्हारे प्रेम से सुन्दर, लगता है संसार!

तुम गौरव हो जीवन पथ का, तुम मेरा सम्मान!
मेरे मन की सरगम हो तुम, अंतर्मन का गान..

बड़ा ही गहरा होता है ये, प्रेम का अदभुत रंग!
अंतिम क्षण तक साथ रहूँगा, सखी तुम्हारे संग!
सखी तुम्हारे प्रेम का जबसे, किया "देव" ने बोध,
तबसे हमको पीड़ा दुःख ने, नहीं किया है तंग!

बड़े ही प्यारे, बड़े ही सुन्दर, सखी तेरे उदगार!
सखी बड़ा ही सुखमय लगता, तेरे प्रेम का सार!

तुम्ही नयनों का दर्शन हो, तुम्ही हमारा ध्यान!
मेरे मन की सरगम हो तुम, अंतर्मन का गान!"
"
प्रेम-एक ऐसा सम्बन्ध, एक ऐसी अनुभूति, जिसका प्रकाश, जीवन के भौतिक तिमिर को ही नहीं अपितु मानसिक तिमिर को भी, उज्जवल करता है! प्रेम, जहाँ होता है वहां, अपनत्व की संभावनायें, अत्यंत प्रबल होती हैं! तो आइये प्रेम करें.."

"
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१९.०३.२०१३ 

"
मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व-प्रकाशित.."

Sunday 17 March 2013

♥♥प्रेम का समर्थन..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम का समर्थन..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
समर्थन प्रेम का चाहूं, नहीं हिंसा की ख्वाहिश है!
नहीं हसरत है दौलत की, नहीं धन की सिफारिश है!
सभी के दिल में उल्फ़त का, सुनहरा नूर जग जाए,
यही कुदरत से विनती है, यही मेरी गुजारिश है!

ये नफरत का जहर, पोषण किसी का कर नहीं सकता!
किसी मानव के घावों को, कभी ये भर नहीं सकता!

कभी गैरों से रंजिश हो, कभी अपनों की साजिश है!
समर्थन प्रेम का चाहूं, नहीं हिंसा की ख्वाहिश है....

किसी को लूटकर, बेशक के राजा बन तो जाओगे!
मगर अपनी निगाहों से, नजर कैसे मिलाओगे!
अदालत तुमको दुनिया की, भले ही माफ़ कर दे पर,
मगर तुम अपने जुर्मों को, यहाँ कैसे भुलाओगे!

यहाँ वो लोग ही मरकर के, हर पल याद आते हैं!
जो अपने लोभ में देखो, नहीं जग को सताते हैं!

जहाँ है "देव" मानवता, वहां खुशियों की बारिश है!
समर्थन प्रेम का चाहूं, नहीं हिंसा की ख्वाहिश है!"

.................चेतन रामकिशन "देव"...............
( १८.०३.२०१३)

♥♥गहरा समुन्दर..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥गहरा समुन्दर..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
समुन्दर हो भले गहरा, किनारा मिल ही जाता है!
मेरी माँ की दुआओं से, सहारा मिल ही जाता है!

कभी दिल की निगाहों से, जरा देखो तो अम्बर में,
यहाँ तकदीर का अपनी, सितारा मिल ही जाता है!

भले है भीड़ गैरों की, भले रंजिश हजारों हैं,
मगर फिर भी कोई, फूलों सा प्यारा मिल ही जाता है!

कभी हारो नहीं हिम्मत, न खुद को लड़खड़ाने दो,
यहाँ मेहनत से खुशियों का, नजारा मिल ही जाता है!

हमेशा दर्द को अपने, बड़ा तुम "देव" न समझो,
सभी की आंख में आंसू, ये खारा मिल ही जाता है!"

...................चेतन रामकिशन "देव".................
( १७.०३.२०१३)


Saturday 16 March 2013

♥♥अनुभूति की जल धारा..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥अनुभूति की जल धारा..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
अनुभूति की जल धारा में, जब मन को स्नान कराया!
पत्थर ने भी कोमल होकर, देखो मुझको गले लगाया!
अनुभूति से पहले जिनको, मीलों दूर समझता था मैं,
जबसे से जागी है अनुभूति, हर स्थल पर उनको पाया!

बिन अनुभूति के जीवन में, नहीं भावना दया की आए!
लोग सड़क पर घायल तड़पें, कोई न उनको दवा दिलाए!

जिसके मन में अनुभूति हो, उसने सबको गले लगाया!
अनुभूति की जल धारा में, जब मन को स्नान कराया...

जब से मैंने अपने मन में, अनुभूति का बोध किया है!
तब से मैंने नीरसता के, हर पथ को अवरोध किया है!
"देव" मुझे इस अनुभूति ने, शिक्षा ध्यान लगाने की दी,
इसी ध्यान के बल पर मैंने, इस जीवन का शोध किया है!

जिसके मन में अनुभूति के, व्यापक भाव नहीं होते हैं!
किसी ओर के दुख से उसके, मन में घाव नहीं होते हैं!

इस अनुभूति ने ही देखो, नदी का कल कल गान सुनाया! 
अनुभूति की जल धारा में, जब मन को स्नान कराया!"

..................चेतन रामकिशन "देव"..................
( १७.०३.२०१३)



Friday 15 March 2013

♥♥पीड़ा का अंकुरण..♥♥


♥♥♥पीड़ा का अंकुरण..♥♥♥
हुआ अंकुरण फिर पीड़ा का,
दवा, खाद, इसको जल दे दूँ!

हर्ष की दीमक इसे न मारे,
इसे जरा इतना बल दे दूँ!

हर्ष क्षणिक होता है किन्तु,
पीड़ा लम्बा साथ निभाए!

पीड़ा मन को शक्ति देकर,
अंधकार में दीप जलाए!

बिन पीड़ा के "देव" ये मानव,
नहीं समझ पाता है दुख को,

पीड़ा ग्राही व्यक्ति का मन,
कुछ करने की ललक जगाए!

सूखा इसको सुखा सके ने,
अश्रु धारा अविरल दे दूँ!

हुआ अंकुरण फिर पीड़ा का,
दवा, खाद, इसको जल दे दूँ!"

...चेतन रामकिशन "देव"...
     (१५.०३.२०१३)






Wednesday 13 March 2013

♥♥मारक क्षमता..♥♥




♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मारक क्षमता..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
ह्रदयविदारक घटनाओं की, मारक क्षमता में वृद्धि है!
नहीं पता के इस दुनिया की, कैसी अब ये उपलब्धि है!
कमजोरों का रक्त चूसकर, लोग यहाँ पर घर भरते हैं,
लूटपाट कर महल बनाना, आखिर कैसी सम्रद्धि है!

धन दौलत की चकाचौंध में, मानवता विस्मृत कर बैठे!
आज के मानव अपने हित में, संबंधों को मृत कर बैठे!

मन ही साफ नहीं होगा तो, हवनकुंड में कब शुद्धि है!
ह्रदयविदारक घटनाओं की, मारक क्षमता में वृद्धि है...

मानवता की हत्या करके, सुखमय होना सही नहीं है!
नैतिकता और अपनेपन का, क्षय होना भी सही नहीं है!
"देव" ये सच है पीड़ादायक, दशा सभी के जीवन में हैं,
किन्तु फिर भी हिंसा की ये, जय होना भी सही नहीं है!

द्वेष भावना भड़काने को, धर्म का ये प्रचार नहीं हो!
मानव होकर मानवता पे, अब ये अत्याचार नहीं हो!

सुन्दर सोच नहीं हो सकती, जब तक ये विकृत बुद्धि है!
ह्रदयविदारक घटनाओं की, मारक क्षमता में वृद्धि है!"

..................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-१४.०३.२०१३


♥♥फिरती नजरें..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥फिरती नजरें..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जैसे आँखों से अश्कों की, बूंदें झर झर गिर जाती हैं!
उसी तरह से अब अपनों की, नजरें देखों फिर जाती हैं!

जब भी तुम मिलते हो मुझको, एक उजाला सा होता है,
बिना तुम्हारे इस जीवन में, गम की रातें घिर जाती हैं!

कानूनों के दुश्मन हैं जो, उनका चेहरा खिला खिला है,
और यहाँ इल्जाम की चोटें, मजलूमों के सिर आती हैं!

हाँ सच है के झूठ की रंगत, बहुत लुभाती हैं आँखों को,
लेकिन एक दिन आता है जब, झूठ की परतें चिर जाती हैं!

"देव" कभी नाकामी से तुम, हाथ पे हाथ नहीं रख लेना,
मेहनत की ताकत से देखो, यहाँ बहारें फिर आती हैं!"

..................चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-१३.०३.२०१३

Tuesday 12 March 2013

♥♥प्यार का पंछी..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्यार का पंछी..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
पंछी बनकर उड़ आना तुम, आकर मुझको गीत सुनाना!
और तुम बनकर हवा का झोंका, हमदम मेरा घर महकाना!
एक दूजे का हाथ पकड़कर, धवल चांदनी में घूमेंगे,
कुछ तुम मेरे दिल की सुनना, कुछ तुम अपना हाल बताना!

खुले आसमां के नीचे जब, अपने दिल की बातें होंगी!
होगा आलम बड़ा सुहाना, प्यार भरी बरसातें होंगी!

इस बारिश में भीग के हमदम, जुल्फों से मोती बिखराना!
पंछी बनकर उड़ आना तुम, आकर मुझको गीत सुनाना!"

..........................चेतन रामकिशन "देव".......................
दिनांक-१२.०३.२०१३

♥♥नाम के रिश्ते..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥नाम के रिश्ते..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
नाम के रिश्ते तो एक पल में चटक जाते हैं!
लोग दौलत के लिए, राह भटक जाते हैं!

मुझको भाता है बहुत देखना उस वक्त उन्हें,
वो मेरे सामने जब जुल्फें, झटक जाते हैं!

देखो नेताओं को सब कुछ ही हजम होता है,
बिना पानी के ये ताबूत सटक जाते हैं!

वैसे सब कहते हैं, बेटी को रूप दुर्गा का,
फिर भी बेटी को ही सड़कों पे, पटक जाते हैं!

अपने रिश्तों की यहाँ, "देव" जरा कद्र करो,
नहीं मिलते हैं वो, देखो जो छिटक जाते हैं!"

............चेतन रामकिशन "देव".............
दिनांक-१२.०३.२०१३

Monday 11 March 2013

♥♥सौहार्द का संसार..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥सौहार्द का संसार..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
ईद और लोहड़ी हों सब के, और दीवाली भी सबकी हो!
एक दूजे से प्रेम करें सब, और खुशहाली भी सबकी हो!

ध्वस्त हों मजहब की दीवारें, मानवता सबकी प्यारी हो!
नफरत के कांटे हट जायें, महकी महकी फुलवारी हो!
एक ऐसा संसार बने बस, जिसमें मानव ही मानव हों,
रहे सदा नारी की गरिमा, न कोई मारा-मारी हो!

रंग बिरंगे मौसम सब के, नभ की लाली भी सबकी हो!
ईद और लोहड़ी हों सब के, और दीवाली भी सबकी हो...

हिंसा के हथियार नहीं हो, सोच हो सबकी फूलों जैसी!
बस पींगे हो मेलजोल की, सावन के झूलों के जैसी!
"देव" रहें सब समरसता में, हमदर्दी सबको सबसे हो,
द्वेष रहे न मन में कोई, सोच न हो शूलों के जैसी!

भूख से कोई जन न तड़पे, भोजन की थाली सबकी हो!
ईद और लोहड़ी हों सब के, और दीवाली भी सबकी हो!"

..................चेतन रामकिशन "देव"....................
दिनांक-१२.०३.२०१३

Sunday 10 March 2013

♥♥सच का शिलालेख...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥सच का शिलालेख...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कभी किसी के मन का दर्पण, तुम देखो खंडित न करना!
अपने साधन के हित में तुम, मिथ्या को मंडित न करना!
काम करो तुम ऐसा जिससे, मानवता को ठेस न पहुंचे,
तुम मानव से दानव बनकर, मानवता दंडित न करना!

भले झूठ की चाल हो गहरी, किन्तु उसकी मात हुई है!
सच की किरणें करें उजाला, फिर सुन्दर प्रभात हुई है!

ज्ञान से निर्धारण करना तुम, जात से तुम पंडित न करना!
कभी किसी के मन का दर्पण, तुम देखो खंडित न करना...

मन में सपने रखते हो तो, उन्हें सार्थक करना सीखो!
फूलों की इच्छायें हैं तो, काँटों पर भी चलना सीखो!
बस अम्बर की ओर देखकर, "देव" नहीं ऊंचाई मिलती,
यदि गगन को चाहते हो तो, उड़ने का बल भरना सीखो!

सच की बातें सच होती हैं, उनको थोथी नहीं समझना!
सदाचार की पुस्तक को तुम, केवल पोथी नहीं समझना!

सच से उभरे शिलालेख को, तुम देखो खंडित न करना!
तुम मानव से दानव बनकर, मानवता दंडित न करना!"

..................चेतन रामकिशन "देव"....................
दिनांक-११.०३.२०१३



♥♥प्यार का गंगाजल..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्यार का गंगाजल..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बेशक पूरा जीवन न दो, मगर मुझे तुम्हें कुछ पल दे दो!
जिससे हिम्मत बढ़े हमारी, तुम चाहत का वो बल दे दो!
देखो साथी बिना तुम्हारे, धूल गमों की चिपट रही है,
मैं भी पावन हो जाऊंगा, प्यार का तुम गंगाजल दे दो!

हाँ सच है के बिना तुम्हारे, यूँ तो मैं जिन्दा रहता हूँ!
पर ये भी तो झूठ नहीं के, भीतर से बेदम रहता हूँ!

आज भले ही ठुकरा दो पर, मुलाकात को तुम कल दे दो!
बेशक पूरा जीवन न दो, मगर मुझे तुम्हें कुछ पल दे दो....

तुम बिन साथी तन्हाई के, बादल मुझ पर मंडराते हैं!
तुम बिन मेरी आँखों से यूँ, पल पल आंसू झर जाते हैं!
बिना तुम्हारे आंच तड़प की, मेरे मन को झुलसाती है,
तुम बिन हम तो अँधेरे में, बच्चों जैसे डर जाते हैं!

रस्ता तुम बिन नहीं सूझता, कदमों को ठोकर मिलती है!
"देव" मैं कोशिश करता हूँ पर, तुम बिन ये किस्मत छलती है!

घनी मुश्किलों में उलझा हूँ, तुम मुझको इनका हल दे दो!
बेशक पूरा जीवन न दो, मगर मुझे तुम्हें कुछ पल दे दो!"

......................चेतन रामकिशन "देव".....................
दिनांक-१०.०३.२०१३

Saturday 9 March 2013

♥नुकीला दंत♥


♥♥♥♥नुकीला दंत♥♥♥♥
मानवता का अंत हो रहा,
पापी भी अब संत हो रहा,
जात-पात और धर्मवाद का,
बड़ा नुकीला दंत हो रहा!

जगह जगह बैठे उपदेशक,
लोगों को उपदेश सुनाते!
लोगों से धन ऐंठ ऐंठ कर,
अपने घर को महल बनाते!
बड़े जोर से कहते हैं ये,
ईश्वर की मूरत न कोई,
यही लोग फिर न जाने क्यूँ, 
अपनी मूरत को पुजवाते!

भोले लोगों के घर पतझड़,
इनके यहाँ बसंत हो रहा!
जात-पात और धर्मवाद का,
बड़ा नुकीला दंत हो रहा...

खुद को ईश्वर भक्त बताकर,
ईश्वर को विक्रय करते हैं!
यही लोग लोगों के मन में,
नए नए संशय करते हैं!
यही लोग अपने वचनों से,
"देव" सदा चर्चा में रहते,
ढोंग-दिखावा करके हरदम,
सब की किस्मत तय करते हैं!

नहीं कहा जाता शब्दों में,
रोष यहाँ अत्यंत हो रहा!
जात-पात और धर्मवाद का,
बड़ा नुकीला दंत हो रहा!"

..चेतन रामकिशन "देव"..
दिनांक-१०.०३.२०१३

♥♥इंसानियत की राह..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥इंसानियत की राह..♥♥♥♥♥♥♥♥
कभी इंसानियत की राह से, तुम दूर न होना!
भले दौलत हो कितनी भी, कभी मगरूर न होना!

किसी के बिन जमाने में, जो तुम जिंदा न रह पाओ,
मोहब्बत में कभी इतने बड़े, मजबूर न होना!

तरस जायें जो घर के लोग, एक रोटी के टुकड़े को,
कभी दारू की बोतल में, यूँ ऐसे चूर न होना!

तुम्हारा दिल परेशां हो, तुम्हारी रूह दे लानत,
इमां को बेचकर जग में, कभी मशहूर न होना!

हुनर को "देव" कर लो तुम, उजालों की तरह रौशन,
किसी अपनी ही गलती से, कभी बेनूर न होना!"

...............चेतन रामकिशन "देव"..............
दिनांक-०९.०३.२०१३

Friday 8 March 2013

♥♥जीवन की गतियां..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥जीवन की गतियां..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
हो मंजर दर्द का या फिर, खुशी की जिंदगानी हो!
हंसी की धूप खिल जाए, या फिर आँखों में पानी हो!
यही जीवन की गतियां हैं, इन्हीं के साथ तुम चलना,
कभी बारिश, कभी पतझड़, कभी ये रुत सुहानी हो!

कभी तन्हाई मिलती है, कभी मिलने के पल आते!
कभी आती बहारें हैं, कभी खिलने के पल आते!

सदा तुम बोलना सच ही, भले दुनिया बैगानी हो!
हो मंजर दर्द का या फिर, खुशी की जिंदगानी हो...

सवेरा हो, अँधेरा हो, कभी दिन रात होते हैं!
कभी अनदेखे, अनजाने, नए जज्बात होते हैं!
वही मंजिल को पाते हैं, जो अपने शौक को भूलें,
जिन्हें कुछ करना होता है, कहाँ वो लोग सोते हैं!

ये ऐसे लोग जो अवसर, पकड़ना भूल जाते हैं!
सदा ये कोसते खुद हो, सदा आंसू बहाते हैं!

नहीं वो हार से डरते, वो जिनको जीत पानी हो!
हो मंजर दर्द का या फिर, खुशी की जिंदगानी हो!"

.............चेतन रामकिशन "देव"..............
दिनांक-०९.०३.२०१३

♥दर्द का शोर..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥दर्द का शोर..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
शोर है दर्द का, ख़ामोशी अख्तियार करें!
आओ कुछ देर के, तन्हाई से अब प्यार करें!

वो नहीं आए तो, दिल अपना क्यूँ छोटा करना,
आओ आकाश में अब चाँद का, दीदार करें!

जिंदगी का तो नहीं होता, भरोसा कोई,
कैसे फिर बैठ के हम, कल का इंतजार करें!

खून का प्यासा यहाँ आदमी, अब होने लगा,
ऐसे हालात में अब किस पे, ऐतबार करें!

जिसके चेहरे से मुझे "देव", खुशी मिलती हो,
कैसे हम उसके बिना, गम का सफर पार करें!"

............चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-०८.०३.२०१३ 

Thursday 7 March 2013

♥नारी का अलंकरण..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥नारी का अलंकरण..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
नारी के सम्मान का चिंतन, अपने मन में भरना होगा!
भ्रूण में पुत्री का स्वागत कर, उसका संकट हरना होगा!
केवल बातें करने भर से, नारी सम्मानित नहीं होती,
हमको नारी के जीवन का, सदा अलंकरण करना होगा!

नारी भी है पुरुषों जैसी, उसका जीवन व्यर्थ नहीं है!
हम पुरुषों के इस जीवन का, बिन नारी के अर्थ नही है!

नारी को पीड़ित करने की, सोच से हमको डरना होगा!
नारी के सम्मान का चिंतन, अपने मन में भरना होगा...

नारी मन की अभिलाषा का, दमन नहीं करना है हमको!
लोभ स्वार्थ में पड़ नारी का, दहन नहीं करना है हमको!
हमको नारी की पीड़ा की, अनुभूति करनी ही होगी,
नारी मन की पीड़ाओं को, गहन नहीं करना है हमको!

नारी प्रेम की संवाहक है, नारी का मन बड़ा दयालु!
उसका ह्रदय बहुत बड़ा है, नारी होती है कृपालु! 

हमको नारी के अश्रु के, संग संग देखो झरना होगा!
नारी के सम्मान का चिंतन, अपने मन में भरना होगा...

एक दिन की अपनायत देकर, नहीं वर्ष भर उसे रुलाना!
न उसको आरोपित करना, न ही उसका ह्रदय दुखाना!
बिन नारी के इस दुनिया में, जनम पुरुष को मिल न पाए,
इसीलिए तुम भूले से भी, नारी का मन नहीं सताना!

बिना नारी के प्रकृति भी, नहीं संतुलित हो सकती है!
बिन नारी के मनुज श्रंखला, नहीं अंकुरित हो सकती है!

"देव" हमे नारी जीवन को, सदा सुसज्जित करना होगा!
नारी के सम्मान का चिंतन, अपने मन में भरना होगा!"

"
नारी-प्रकृति की ऐसी कृति, जिसके बिन ये जग सम्पूर्ण नहीं, जो अनेकों दायित्वों का निर्वहन, पुरुष समाज के लिए, बड़े ही अपनत्व के साथ करती है, किन्तु इसके पश्चात भी, इस कोमल ह्रदयी नारी को, इसी पुरुष वर्ग के हाथों दंड मिलता है, आरोप मिलते हैं, तो आइये चिंतन करें और नारी के जीवन को, सम्मान से अलंकृत करें..."

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०८.०३.२०१३ 

"सर्वाधिकार सुरक्षित"
"मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित."

Monday 4 March 2013

♥परिस्थति..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥परिस्थति..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम विपरीत परिस्थतियों में, अपना साहस सुप्त न करना!
बस प्रभाव जमाने भर को, मिथ्या को प्रयुक्त न करना!
इस दुनिया में हर व्यक्ति ही, मार्ग सफलता का चाहता है,
किन्तु अपनी तृष्णा में तुम, नैतिकता को लुप्त न करना! 

समरसता से रहना सीखो, मधुर सुरीला गान बनो तुम!
जिसे देखकर मन पुलकित हो, इक ऐसे इंसान बनो तुम!

कभी सफलता की इच्छा में, अपना मन अभियुक्त न करना!
तुम विपरीत परिस्थतियों में, अपना साहस सुप्त न करना...

न तन से सम्बन्ध रखो तुम, मन से मन का नाता जोड़ो!
नहीं समझता जो मानवता, उस व्यक्ति से मिलना छोड़ो!
इस जीवन का अर्थ सार्थक, उसी दशा में संभव होगा,
तुम औरों को सीख से पहले, अपने जीवन का रुख मोड़ो!

कभी किसी को पीड़ा देकर, तुम सुख के अवसर न पाना!
बड़ी खुशी पायेगा मनवा, किसी के दुख में साथ निभाना!

इस आधुनिक परिवेश में, मर्यादा उन्मुक्त न करना!
तुम विपरीत परिस्थतियों में, अपना साहस सुप्त न करना...

अपने पढ़े-लिखे मन से तुम, काम कोई छोटा न मानो!
बिन मेहनत के कुछ नहीं मिलता, इस युक्ति की कीमत जानो!
"देव" निराशा में रहने से, बस जीवन कुंठित होता है,
तुम मन में आशायें भर कर, अपनी मंजिल को पहचानो!

एक दिन में ही कुछ नहीं मिलता, इसीलिए संतोष करो तुम!
नहीं डिगो तुम लक्ष्य से अपने, न ही मन में रोष करो तुम!

भूले से भी इस युक्ति को, तुम मन से आमुक्त न करना!
तुम विपरीत परिस्थतियों में, अपना साहस सुप्त न करना!"

"
जीवन-कभी दुख, कभी पीड़ा, कभी विरह तो कभी दंड, किन्तु जीवन की इन दशाओं में, साहस, मेहनत और आत्मविश्वास की युक्ति से जीवन को गतिशीलता मिलती है, तो आइये जीवन को गतिशील बनायें.."

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०५.०३.२०१३

"सर्वाधिकार सुरक्षित"
मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित"

Sunday 3 March 2013

♥♥मेरी तस्वीर.♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥मेरी तस्वीर.♥♥♥♥♥♥♥♥
तस्वीर मेरी दिल में, वसाकर तो देखिये!
तुम प्यार का एक दीप, जलाकर तो देखिये!

जलती हुए आँखों को भी, मिल जाएगी ठंडक,
तुम गीत के यहाँ, प्यार के गाकर तो देखिये!

हिन्दू नहीं, मुस्लिम, तुम्हें इन्सान मिलेगा,
नफरत की ये दीवार, गिराकर तो देखिये!

दिल भी करार पायेगा और रूह भी सुकूं,
रोटी किसी भूखे को, खिलाकर तो देखिये!

न "देव" घुटन दिल में, कोई अपने रहेगी,
तुम सच को यहाँ, सच ही बताकर तो देखिये!"
...........चेतन रामकिशन "देव"............
दिनांक-०३.०३.२०१३

Friday 1 March 2013

♥रूह के आंसू..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥रूह के आंसू..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आँखों में नमी, दिल में दुखन होने लगी है!
गम इतना है के, रूह मेरी रोने लगी है!

मरते हुए इन्सां को, बचाता नहीं कोई, 
इंसानियत भी लगता है, के सोने लगी है!

बारूद से धरती की कोख, भरने लगे सब,
मिट्टी भी अपनी गंध को, अब खोने लगी है!

आँखों में अँधेरा है, हाथ कांपने लगे,
लगता है उम्र मेरी, खत्म होने लगी है!

एक कौम को गद्दार यहाँ, "देव" क्यूँ कहो,
हर कौम ही अब खून से, मुंह धोने लगी है!"

............चेतन रामकिशन "देव".............
दिनांक-०१.०३.२०१३