♥♥♥♥♥♥♥♥♥खून की होली.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
खून की होली खेल रहा है, आज ये भारत देश!
भीग गया है खून से दामन, भीग रहा गणवेश!
फिजा में देखो गूंज रहा है, हत्याओं का शोर,
आज मनुज से लुप्त हो रहे, मानव के अवशेष!
प्रेम भाव के रंगों से अब, रंगत लुप्त हुयी है!
गुंजियों से भी अपनेपन की, खुशबु सुप्त हुयी है!
रहना सहना बदल गया, बदल गया परिवेश!
रक्त की होली खेल रहा है, आज ये भारत देश...
निर्ममता से आज हो रहा, नारी का अपमान!
भूख प्यास से निकल रही है, निर्धन जन की जान!
मंचों से कहते हैं नेता, भारत उदय हुआ है,
किन्तु आज भी फुटपाथों पे, सोता हिंदुस्तान!
नेताओं के घर उड़ता है, देखो रंग गुलाल!
इधर देश का निर्धन तबका, बेबस और कंगाल!
सच्चाई का गला रेतता, मिथ्या का आदेश!
रक्त की होली खेल रहा है, आज ये भारत देश...
रंग लगाने तक न सिमटे, होली का त्यौहार!
नहीं लुटे नारी की इज्ज़त, न हो अत्याचार!
"देव" न रखे कोई मानव, अपने मन में बैर,
एक दूजे पे नहीं करें हम, पीड़ा की बौछार!
तभी आत्मा तक पहुंचेगा, होली का संगीत!
और जहाँ में हो जाएगी, मानवता की जीत!
चलो करें हम प्रेषित सबको, प्रेम का ये सन्देश!
रक्त की होली खेल रहा है, आज ये भारत देश!"
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देश का कोई कोना, कोई स्थल, कोई स्थान, हिंसा, द्वेष से अछूता नहीं! लोग कभी मजहब के नाम पर खून बहाते हैं तो कभी दौलत के लिए..कभी कोई नारी की इज्ज़त को छिन्न-भिन्न कर देता है तो कभी नेताओं की उपेक्षा से, देश का निर्धन तबका भूखे पेट मर जाता है, चिंतन करना होगा, वरना " खून की होली" पर विराम नहीं लग सकता!"
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२२.०३.२०१३
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सर्वाधिकार सुरक्षित.."
मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!"
6 comments:
सार्थक पोस्ट |
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ईमानदारी का लेखन , खून की होली खेल रहा है, आज ये भारत देश!
भीग गया है खून से दामन, भीग रहा गणवेश!
फिजा में देखो गूंज रहा है, हत्याओं का शोर,
आज मनुज से लुप्त हो रहे, मानव के अवशेष!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (24-03-2013) के चर्चा मंच 1193 पर भी होगी. सूचनार्थ
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सम्मानित तुषार जी!
आपका आभारी हूँ!
आपका स्नेह अनमोल है!"
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सम्मानित अजीज जी!
आपका आभारी हूँ!
आपका स्नेह अनमोल है!"
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सम्मानित अरुण जी!
आपका आभारी हूँ!
आपका स्नेह अनमोल है!
कविता को चर्चा में रखने के लिए आभार.."
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