Tuesday, 29 April 2014

♥सवेरे की धूप....♥♥

♥♥♥♥सवेरे की धूप....♥♥♥♥
धूप बन जायें हम सवेरे की!
रोक दें चाल हम अँधेरे की!

घोंसला रखके के कोशिशें कर लूँ,
पंछियों के नए वसेरे की!

मेरी हसरत है कुछ नया करना,
सीमा तोड़ी है बंद घेरे की!

पेड़ की छाँव सा सुकून लगे,
तेरी जुल्फों के उस घनेरे की!

आओ पहले तुम्हें अंगूंठी दूँ,
बात बाकी है सात फेरे की!

इस ज़माने को न बताना कभी,
राज की बात तेरे मेरे की!

"देव" ये जिंदगी की सूरत है,
कभी मंजिल, पड़ाव, डेरे की!"

....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-३०.०४.२०१४