Thursday 20 February 2014

♥प्राण तुम्हीं में...

♥♥♥प्राण तुम्हीं में...♥♥♥
प्राण तुम्हीं में निहित किये हैं!
मन्त्र प्रेम के जपित किये हैं!
शब्दकोष से शब्द चुने पर,
भाव तुम्हीं से उदित किये हैं!

तुम लेखन में गतिमान हो!
सही गलत का अनुमान हो!
काव्य प्रेम का सिखलाती हो,
तुम शिक्षक हो तुम्ही ज्ञान हो!

प्रेम की हर पंक्ति के मैंने,
चिन्ह तुम्ही से विदित किये हैं!
शब्दकोष से शब्द चुने पर,
भाव तुम्हीं से उदित किये हैं!

अपनेपन की तुम प्रेषक हो!
गलत दिशा का संकेतक हो!
मुझे शुद्धता सिखलाती हो,
तुम कमियों की विश्लेषक हो!

तुमसे पाकर प्रेम की शिक्षा,
द्वेष भाव सब विरत किये हैं!
शब्दकोष से शब्द चुने पर,
भाव तुम्हीं से उदित किये हैं!

तुम संकट में बल देती हो!
प्रेम का गंगाजल देती हो!
"देव" तुम्हारा प्रेम न सूखे,
दिवस, रात, हर पल देती हो!

प्रेम भाव के ये क्षण मैंने,
रोम रोम में मुदित किये हैं!
शब्दकोष से शब्द चुने पर,
भाव तुम्हीं से उदित किये हैं!"

....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-२०.०२.२०१४