Thursday, 6 February 2014

♥♥जंग भले ही जीती मैंने...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥जंग भले ही जीती मैंने...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जंग भले ही जीती मैंने, किसी के दिल को जीत न पाया!
वजह से मेरी लोग रो रहे, लेकिन मुझको तरस न आया!
मैं इंसां की खाल में हूँ पर, शायद मैं इंसान नही हूँ,
इसीलिए तो मुझसे मिलकर, एक चेहरा भी न मुस्काया! 

खुद को जब शीशे में देखा, नजर मिलाना भी मुश्किल था!
मौन अवस्था में पहुंचा दिल, जिसको समझाना मुश्किल था!

वक़्त का पहिया देखो यारो, ख़ुशी का कोई पल न लाया!
जंग भले ही जीती मैंने, किसी के दिल को जीत न पाया...

मजलूमों के खून से रंगकर, हाथ बड़ा ही इतराता था!
मैं लोगों की फूंक झोपड़ी, हौले हौले मुस्काता था!
चीख सुनी न कभी किसी की, आह तलक अनदेखा करके,
कदम के नीचे रौंद के सबको, अपना लोहा मनवाता था!

भले बना मैं यहाँ शहंशाह, लेकिन दिल को सुकूं न आया!
जंग भले ही जीती मैंने, किसी के दिल को जीत न पाया...

इसीलिए मैं पछतावे की, आग में हर लम्हा जलता हूँ!
वक़्त मुझे जैसा भी रखता, वक़्त के रंग में मैं ढलता हूँ!
"देव" नहीं तुम जुल्म ढहाकर, कभी विजेता बन सकते हो,
खाली हाथ यहाँ आया था, खाली हाथ वहाँ चलता हूँ!

सोच के मैं नाखुश होता हूँ, क्यूँ पहले मैं समझ न पाया!
जंग भले ही जीती मैंने, किसी के दिल को जीत न पाया!"

..................चेतन रामकिशन "देव"…..................
दिनांक-०६.०२.२०१४