Thursday, 25 October 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥जीवन(एक चुनौती ).♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जब जीवन को एक चुनौती समझ के तुम व्यतीत करोगे!
जात-धर्म से ऊपर उठकर, जब मानव से प्रीत करोगे!
अपनी आंखे लक्ष्य पे रखकर, यकीं करोगे जब मेहनत पर,
वो दिन ऐसा होगा जिस दिन, हर मंजिल पर जीत करोगे!

जो जीवन में कंटक सहकर भी आगे बढ़ते जाते हैं!
वही लोग एक दिन दुनिया में तारे बनकर छा जाते हैं!

जिस दिन अपने चिंतन में तुम, साहस का संगीत भरोगे!
जब जीवन को एक चुनौती समझ के तुम व्यतीत करोगे...

दुरित सोच के पोषक बनकर, तुम मन की शक्ति न खोना!
तुम अपने हाथों से जग में, नफरत के अंकुर न बोना!
जो कल पर छोड़ोगे सब कुछ, तो कुछ भी न मिल पायेगा,
इसीलिए अपने जीवन में, तुम आलस की नींद न सोना!

जो बे-संसाधन होकर भी, कुछ करने का प्रण करते हैं!
वही लोग एक दिन दुनिया में, लोगों को प्रेरित करते हैं!

जीते जी मृत हो जाओगे, जो उर्जा को शीत करोगे!
जब जीवन को एक चुनौती समझ के तुम व्यतीत करोगे...

मुश्किल तो आएँगी पथ में, जीवन केवल सरल नहीं है!
घनी अमावस भी आती हैं, जीवन केवल धवल नहीं है!
"देव" नहीं जीवन में केवल, हरियाली का आंचल होता,
लेकिन अपने बल के आगे कोई, मुश्किल सबल नहीं है!

जो मन में उर्जा भर कर के, मुश्किल से डटकर लड़ते हैं!
वही लोग एक दिन दुनिया में, मंजिल की सीढ़ी चढ़ते हैं!

जिस दिन साहस के पुष्पों से, जीवन को अभिनीत करोगे!
जब जीवन को एक चुनौती समझ के तुम व्यतीत करोगे!"

"
जीवन-जब चुनौती के साथ जिया जाता है तो हमारे कर्मों में उत्कृष्ट क्षमता का विकास होता है! जीवन में, सुख की बेला आती हैं तो दुःख का वज्रपात भी! किन्तु जो दुःख सहने की शक्ति को, अपने मन में समाहित कर लेते हैं, वे लोग निश्चित जीवन में उर्जावान बनकर, लक्ष्य प्राप्ति की ओर रुख करते हैं....तो आइये चिंतन करें!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२६.१०.२०१२ 

"सर्वाधिकार सुरक्षित"
ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!


♥♥♥♥♥♥♥♥♥तेरी याद ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तन्हाई में जब मुझको तेरी याद आ गयी!
तो गम की घटा फिर से मेरे दिल पे छा गयी!

जब याद में मिलना था तो बेहद सुखद लगा,
जब आई जुदाई तो, वो मुझको सता गयी!

आया जो बुरा वक़्त तो अंजाम ये हुआ,
साहिल पे आती कश्ती भी मुझको डुबा गयी!

अब मेरी नजर चाँद पे रूकती ही नहीं है,
जब से ये गम की रात, मेरे दिल को भा गयी!

उसने तो "देव" मुझको गिराया था बहुत पर,
कुदरत मुझे हर बार ही जीना सिखा गयी!"

.............(चेतन रामकिशन "देव")...............