♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ कच्चे मकान ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥
" जरा तुम झांककर देखो, इधर कच्चे मकानों में!
नहीं चूल्हा तलक जलता, इन्ही इन आशियानों में!
अनेकों लोग हैं बेबस, अनेको पेट हैं भूखे,
मगर सरकार चलती है, रहीसों के ठिकानो में!
नहीं मिलता उन्हें खद्दर, नहीं मिलता कोई अस्तर,
उम्र है बीतती जिनकी, मगर जिन कारखानों में!
बड़े ही खोखले लगते, सियासत दार के दावे,
गरीबों के हकों का अन्न भी, यहाँ बिकता दुकानों में!
जरा तुम देख लो अब "देव", इसी भारत की तस्वीरें,
अनगिनत लोग सोते हैं, खुले इन आसमानों में!"
" भारत की इस बदरंग तस्वीर को बदलने के लिए हमे भी अपने स्तर से सार्थक प्रयास करने होंगे! वर्ना ये सियासत दार हिंदुस्तान को बेच देंगे!-चेतन रामकिशन(देव)"