♥♥♥♥♥लफ्जों की मोहब्बत....♥♥♥♥♥♥♥
सवेरा लिखा है,
उजाला लिखूंगा,
के मैं रोशनी का सितारा लिखूंगा!
भले घिर गया हूँ,
मैं तूफां में लेकिन,
मैं कश्ती का अपनी किनारा लिखूंगा!
भले दर्द है पर,
ये है सांस जब तक,
मैं जीवन का अपना गुजारा लिखूंगा!
न नफरत से नाता है,
मेरे कलम का,
मैं चाहत का दिलकश नजारा लिखूंगा!
है लफ्जों से मुझको, मोहब्बत बहुत ही,
इसी वास्ते मैं यूँ लिखने लगा हूँ!
कभी बनके सूरज मैं लफ्जों में शामिल,
कभी चाँद बनकर के, दिखने लगा हूँ!
मैं धरती में जमती,
नयी एक लता को,
के पेड़ों के बल का सहारा लिखूंगा!
सवेरा लिखा है,
उजाला लिखूंगा,
के मैं रोशनी का सितारा लिखूंगा ....
नहीं खवाब अपने,
के तोडूंगा खुद ही,
मैं उनको सजाने की कोशिश करूँगा!
मैं लफ्जों से अपने,
मोहब्बत की बूंदें,
के लोगों के दामन में हर पल भरूंगा!
सुनो "देव" नफरत,
करो चाहें मुझसे,
मैं लेकिन नहीं तुमसे नफरत करूँगा!
ये दामन है मेरा,
के फूलों की तरह,
मैं काँटों के जैसी न फितरत करूँगा!
के खेतों में जलती,
झुलसती फसल को,
मैं लफ्जों से पानी की धारा लिखूंगा!
सवेरा लिखा है,
उजाला लिखूंगा,
के मैं रोशनी का सितारा लिखूंगा!"
….....…चेतन रामकिशन "देव"………।
दिनांक-०६.११.२०१३
सवेरा लिखा है,
उजाला लिखूंगा,
के मैं रोशनी का सितारा लिखूंगा!
भले घिर गया हूँ,
मैं तूफां में लेकिन,
मैं कश्ती का अपनी किनारा लिखूंगा!
भले दर्द है पर,
ये है सांस जब तक,
मैं जीवन का अपना गुजारा लिखूंगा!
न नफरत से नाता है,
मेरे कलम का,
मैं चाहत का दिलकश नजारा लिखूंगा!
है लफ्जों से मुझको, मोहब्बत बहुत ही,
इसी वास्ते मैं यूँ लिखने लगा हूँ!
कभी बनके सूरज मैं लफ्जों में शामिल,
कभी चाँद बनकर के, दिखने लगा हूँ!
मैं धरती में जमती,
नयी एक लता को,
के पेड़ों के बल का सहारा लिखूंगा!
सवेरा लिखा है,
उजाला लिखूंगा,
के मैं रोशनी का सितारा लिखूंगा ....
नहीं खवाब अपने,
के तोडूंगा खुद ही,
मैं उनको सजाने की कोशिश करूँगा!
मैं लफ्जों से अपने,
मोहब्बत की बूंदें,
के लोगों के दामन में हर पल भरूंगा!
सुनो "देव" नफरत,
करो चाहें मुझसे,
मैं लेकिन नहीं तुमसे नफरत करूँगा!
ये दामन है मेरा,
के फूलों की तरह,
मैं काँटों के जैसी न फितरत करूँगा!
के खेतों में जलती,
झुलसती फसल को,
मैं लफ्जों से पानी की धारा लिखूंगा!
सवेरा लिखा है,
उजाला लिखूंगा,
के मैं रोशनी का सितारा लिखूंगा!"
….....…चेतन रामकिशन "देव"………।
दिनांक-०६.११.२०१३