Monday 13 February 2012

♥आखिर ये विरोध क्यूँ?♥


♥♥♥♥♥♥♥♥आखिर ये विरोध क्यूँ?♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
युगल मात्र तक नहीं संकुचित, प्रेम का व्यापक अर्थ!
प्रेम तो करता है अभिनंदित, है बिना प्रेम सब व्यर्थ!

इसी दिवस को बड़े शोर से, पश्चिम की संतान बताते!
किन्तु अपनी संतानों को, पश्चिम के परिधान दिलाते!
फादर, टीचर, मदर डेस क्या,पश्चिम का उपहार नहीं हैं,
इसी दिवस को क्यूँ आखिर, लुटता, डिगता मान बताते!

प्रेम न नैतिकता से करता, कभी मानव को अपदस्थ!
युगल मात्र तक नहीं संकुचित, प्रेम का व्यापक अर्थ...

दोहरी सोच का धारण करके, वैलेंटाइन नहीं रुकेगा!
हम पश्चिम को चाहेंगे तो, कैसे अंकुर नहीं उगेगा!
पश्चिम के रंगों में देखो हम सब बढ़ चढ़कर रंगते हैं,
जब देंगे अंग्रेजी शिक्षा, तो कैसे ये पैगाम थमेगा!

हम सब हर्षित होकर रहते हैं, पश्चिम के अंतरस्थ!
युगल मात्र तक नहीं संकुचित, प्रेम का व्यापक अर्थ...

ये सच है एक दिवस में नहीं सिमटती प्रेम की धारा!
प्रेम तो व्यापक जीवन है, प्रेम रहित जीवन बेकारा!
वैलेंटाइन तभी रुकेगा, जब पश्चिम से मुख मोडेंगे,
दो नावों पे पग रखने से, न मिल पाए कभी किनारा!

"देव" हम सब ही करते हैं, इस पश्चिम को स्वस्थ!
युगल मात्र तक नहीं संकुचित, प्रेम का व्यापक अर्थ!"


"हम एक तरफ पश्चिम का आवरण अन्य सभी दिवसों को धूमधाम से मनाते हैं! पश्चिम की शिक्षा प्रणाली को हमने अपने बच्चों की जीवन धारा से जोड़ लिया है और हम दोहरी नीति के चलते वैलेंटाइन का विरोध करते हैं! आखिर क्यूँ, अपने आप से पूछिए, क्या ये उचित है? मेरे ख्याल से तो ये अनुचित है और तानाशाही है!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक--१४.०२.२०१२