Sunday, 25 January 2015

♥गणित...♥


♥♥♥♥♥गणित...♥♥♥♥♥♥
मैं शब्दों का गणित न जानूं। 
केवल खुद का हित न जानूं। 
नहीं बोल सकता जिव्हया से,
मौन प्रेम है लिखित न जानूं। 

लाज भरा स्वभाव है मेरा,
तुमसे कुछ न कह पाता हूँ। 
किन्तु सच है बिना तुम्हारे,
क्षण भर भी न रह पाता हूँ। 

बिना तुम्हारे प्राण को अपने,
किसी मनुज में निहित न मानूं। 
नहीं बोल सकता जिव्हया से,
मौन प्रेम है लिखित न जानूं... 

नहीं मौन, न चुप्पी तोड़ो,
नयनों से सम्प्रेषण होगा। 
अपनेपन के दीप जलेंगे ,
भावुकता का प्रेषण होगा। 

बिना तुम्हारे अस्त हुआ हूँ,
अनुचित और उचित न जानूं। 
नहीं बोल सकता जिव्हया से,
मौन प्रेम है लिखित न जानूं... 

मौन प्रेम की भाषा होगी।
और भेंट की आशा होगी। 
"देव" यहाँ हम मिल जायेंगे,
परिणय की जिज्ञासा होगी। 

सदा कामना अच्छे की हो,
कभी किसी का अहित न जानूं। 
नहीं बोल सकता जिव्हया से,
मौन प्रेम है लिखित न जानूं। "

....चेतन रामकिशन "देव"…..
दिनांक--२५.०१.१५