♥♥♥♥♥गणित...♥♥♥♥♥♥
मैं शब्दों का गणित न जानूं।
केवल खुद का हित न जानूं।
नहीं बोल सकता जिव्हया से,
मौन प्रेम है लिखित न जानूं।
लाज भरा स्वभाव है मेरा,
तुमसे कुछ न कह पाता हूँ।
किन्तु सच है बिना तुम्हारे,
क्षण भर भी न रह पाता हूँ।
बिना तुम्हारे प्राण को अपने,
किसी मनुज में निहित न मानूं।
नहीं बोल सकता जिव्हया से,
मौन प्रेम है लिखित न जानूं...
नहीं मौन, न चुप्पी तोड़ो,
नयनों से सम्प्रेषण होगा।
अपनेपन के दीप जलेंगे ,
भावुकता का प्रेषण होगा।
बिना तुम्हारे अस्त हुआ हूँ,
अनुचित और उचित न जानूं।
नहीं बोल सकता जिव्हया से,
मौन प्रेम है लिखित न जानूं...
मौन प्रेम की भाषा होगी।
और भेंट की आशा होगी।
"देव" यहाँ हम मिल जायेंगे,
परिणय की जिज्ञासा होगी।
सदा कामना अच्छे की हो,
कभी किसी का अहित न जानूं।
नहीं बोल सकता जिव्हया से,
मौन प्रेम है लिखित न जानूं। "
....चेतन रामकिशन "देव"…..
दिनांक--२५.०१.१५
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