♥♥♥♥♥♥♥दर्द इतना है...♥♥♥♥♥♥♥♥
दर्द इतना है संभाले से संभलता कब है!
कोई हमदर्द मेरे साथ में चलता कब है!
तार टूटे, ये झुके खम्भे, गवाही देते,
मुफलिसों के यहाँ एक बल्ब भी जलता कब है!
कुर्सियां हैं वही, बस आदमी बदल जाते,
कोई बदलाव का सूरज ये, निकलता कब है!
जिसके सीने में है दिल की, जगह रखा पत्थर,
बाद मिन्नत के भी देखो, वो पिघलता कब है!
सब तमाशाई हैं देखे हैं, सर कटी लाशें,
खून पानी है मगर उनका, उबलता कब है!
कोई झुग्गी, न झोपड़ी, है खुला अम्बर बस,
उम्र बीती है मगर, दौर बदलता कब है!
दिन निकलते ही यहाँ "देव" दिल सुलग जाये,
दर्द जिद्दी है, दवाओं से भी ढलता कब है! "
...........चेतन रामकिशन "देव"............
दिनांक-२६.०७ २०१४