♥♥♥♥♥♥♥♥प्यार का आँगन..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सवेरे जब मैं जाता हूँ, तिलक मुझको लगाती है!
मेरे घर लौट आने तक, पलक अपनी बिछाती है!
मेरे बहते पसीने को, वो पौंछे अपने आँचल से,
थकन को भूलकर अपनी, ख़ुशी से मुस्कुराती है!
समर्पण भाव ये तेरा, सखी अभिभूत करता है!
मेरे दिल हर घड़ी तुझको ही, बस अनुभूत करता है!
गुजारा हंसके करती है, नहीं शिक़वा जताती है!
सवेरे जब मैं जाता हूँ, तिलक मुझको लगाती है...
जहाँ पर प्यार होता है, वो आँगन आसमानी है!
परस्पर दर्द में बहता, जहाँ आँखों में पानी है!
सुनो तुम "देव" ऐसे आदमी का साथ न रखना,
वो जिसने सिर्फ दौलत तक ही, अपनी सोच मानी है!
जो निश्छल मन से, भावों का यहाँ सत्कार करते हैं!
यही वो लोग हैं जो, आत्मा से प्यार करते हैं!
जो बनकर प्यार की खुशबु, हवा के साथ आती है!
सवेरे जब मैं जाता हूँ, तिलक मुझको लगाती है! "
...............चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-२५.०७ २०१४
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