Tuesday 18 September 2012


♥♥♥♥♥♥शोषण से संघर्ष(एक आह्वान)♥♥♥♥♥♥♥♥♥
अपने मन की शक्ति को तुम, मन से बाहर लाना सीखो!
अपने अधिकारों की खातिर, तुम आवाज उठाना सीखो!
जीवन में शोषण के आगे, तुम नतमस्तक न हो जाना,
शोषण करने वालों की तुम, ईंट से ईंट बजाना सीखो!

कमजोरी के भाव जगाकर, जीवन यापन क्यूँ करते हो!
मौत तो एक दिन आनी ही है, तो मरने से क्यूँ डरते हो!

वीरों जैसे बनकर के तुम, मौत को गले लगाना सीखो!
अपने मन की शक्ति को, तुम मन से बाहर लाना सीखो...

सच को सच कहने की आदत और झूठ को झूठ कहो तुम!
शोषण से संघर्ष करो, यूँ आँख मूंदकर नहीं सहो तुम!
हार-जीत दोनों मिलती हैं, रणभूमि का यही नियम है,
नहीं हारकर हिम्मत छोड़ो, मुर्दा बनकर नहीं रहो तुम!

रणभूमि में हार क्यूँ पाई, इसका चिंतन करना होगा!
और दुबारा उन कमियों को, युद्ध से बाहर करना होगा!

इक दिन जीत मिलेगी हमको, ये खुद को समझाना सीखो!
अपने मन की शक्ति को तुम, मन से बाहर लाना सीखो...

जीवन में जो भय खाते हैं, वो इतिहास नहीं रच पाते!
वो जीते हैं मुर्दों जैसे और मुर्दा बनकर मर जाते!
"देव" न केवल तन से हमको, मन से भी जिंदा रहना है,
मन से मृतक होने वाले, कोई साहस न कर पाते!

इसी तरह चुपचाप रहे तो, शोषण-मुक्ति नही मिलेगी!
अंधकार ही रहेगा पथ में, कोई दीपिका नहीं जलेगी!

अपने मन को तुम निद्रा से, अब तो जरा जगाना सीखो!
अपने मन की शक्ति को, तुम मन से बाहर लाना सीखो!"

"शोषण- से भय खाकर, अपने आप को जीते जी मुर्दा बनाकर, अपने को कमजोर मानकर, जीवन में कोई युद्ध नहीं जीता जा सकता! जीवन में यदि शोषण से संग्राम करना है, तो अपने आप को तन से नहीं, मन से भी जिन्दा रखना होगा! तो आइये चिंतन करें......................."

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१९.०९.२०१२

सर्वाधिकार सुरक्षित..
रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!

♥♥♥♥♥♥♥♥मन की चहल-पहल...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मन की चहल-पहल खोई है, खुशियों की दुनिया रोई है!
न जाने क्यूँ मेरी किस्मत, लम्बे अरसे से सोई है!

जो मेरे जीवन को अक्सर, अमृत से सिंचित करते थे,
आज उन्ही अपनों ने देखो, नफरत की क्यारी बोई है!

आज तो अपने ही अपनों का, गले काटने पर आतुर हैं,
आज दिलों से ने जाने क्यूँ, अपनायत की शै खोई है!

ऐसा करने वाले बिल्कुल, रोयेंगे और पछतायेंगे,
जिन लोगों ने मजलूमों के, खून से ये धरती धोई है!

"देव" देखिए एक दिन वो भी, मेरी चाहत को तरसेंगे,
आज वो जिनकी वजह से मेरी, रूहानी चाहत रोई है!"

.............,........चेतन रामकिशन "देव"...................."

♥♥♥♥♥♥♥♥मन की चहल-पहल...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मन की चहल-पहल खोई है, खुशियों की दुनिया रोई है!
न जाने क्यूँ मेरी किस्मत, लम्बे अरसे से सोई है!

जो मेरे जीवन को अक्सर, अमृत से सिंचित करते थे,
आज उन्ही अपनों ने देखो, नफरत की क्यारी बोई है!

आज तो अपने ही, अपनों का, गले काटने पर आतुर हैं,
आज दिलों से ने जाने क्यूँ, अपनायत की शै खोई है!

ऐसा करने वाले बिल्कुल, रोयेंगे और पछतायेंगे,
जिन लोगों ने मजलूमों के, खून से ये धरती धोई है!

"देव" देखिए एक दिन वो भी, मेरी चाहत को तरसेंगे,
आज वो जिनकी वजह से मेरी, रूहानी चाहत रोई है!"

.....,........चेतन रामकिशन "देव"...................."