♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥रंगहीन...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मन का क्षेत्र बहुत घायल है और नयनों में व्यापक जल है।
झुलस गयीं हैं अधर पंखुड़ी और चित्त में कोलाहल है।
चिंतित चिंतन की रेखायें, मानवता का अंत देखकर,
भाव यहाँ दोहन की वस्तु, और यहाँ अपनों का छल है।
प्रेम के बदले यहाँ दंड है, तरह तरह के मानक होते।
लोग किसी के जीवन में क्यों, पीड़ाओं के अंकुर बोते।
प्राण निकलते हैं बिंद बिंद कर, और सभी करते अनदेखा।
औरों पर आरोप लगाते, भूल के अपना लेख जोखा।
मदिरा की प्याली कैसे, कह दूंगा मैं गंगाजल है।
मन का क्षेत्र बहुत घायल है और नयनों में व्यापक जल है...
केश रंग से हीन हो गये, ऊर्जा, क्षमता मंद हो गयी।
एक उजाले की खिड़की थी, वो भी अब तो बंद हो गयी।
"देव" जहाँ में मुझको मिटटी, और उनको रेशम कहते हैं।
हमे ज्ञात किन अवस्थाओं में, हम देखो पीड़ा सहते हैं।
अब लगता है हर एक मंजिल, मेरी दृष्टि से ओझल है।
मन का क्षेत्र बहुत घायल है और नयनों में व्यापक जल है। "
....................चेतन रामकिशन "देव"……................
दिनांक-०७.०६.२०१५
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित।
मन का क्षेत्र बहुत घायल है और नयनों में व्यापक जल है।
झुलस गयीं हैं अधर पंखुड़ी और चित्त में कोलाहल है।
चिंतित चिंतन की रेखायें, मानवता का अंत देखकर,
भाव यहाँ दोहन की वस्तु, और यहाँ अपनों का छल है।
प्रेम के बदले यहाँ दंड है, तरह तरह के मानक होते।
लोग किसी के जीवन में क्यों, पीड़ाओं के अंकुर बोते।
प्राण निकलते हैं बिंद बिंद कर, और सभी करते अनदेखा।
औरों पर आरोप लगाते, भूल के अपना लेख जोखा।
मदिरा की प्याली कैसे, कह दूंगा मैं गंगाजल है।
मन का क्षेत्र बहुत घायल है और नयनों में व्यापक जल है...
केश रंग से हीन हो गये, ऊर्जा, क्षमता मंद हो गयी।
एक उजाले की खिड़की थी, वो भी अब तो बंद हो गयी।
"देव" जहाँ में मुझको मिटटी, और उनको रेशम कहते हैं।
हमे ज्ञात किन अवस्थाओं में, हम देखो पीड़ा सहते हैं।
अब लगता है हर एक मंजिल, मेरी दृष्टि से ओझल है।
मन का क्षेत्र बहुत घायल है और नयनों में व्यापक जल है। "
....................चेतन रामकिशन "देव"……................
दिनांक-०७.०६.२०१५
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