Monday 8 August 2011

♥♥छुआछूत(दुरित सोच) ♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥छुआछूत(दुरित सोच) ♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"आज भी देखो पनप रही है, वतन में छुआछूत!
 ऐसी सोच का धारक कहता, दलित को काला भूत!
 इनको मंदिर जाने पर भी कर देते पाबन्दी,
 खुद को किन्तु कहते हैं वो ईश्वर का एक दूत!

पशु यदि पीता है पानी, नहीं कहीं कोई बात!
दलित यदि पीना चाहे तो, मिलते डंडे लात!

धन दौलत की ताक़त से वो, करते नष्ट सबूत!
आज भी देखो पनप रही है, वतन में छुआछूत...........

कहने को आज़ादी पाए, हुए अनेकों साल!
नहीं कटा है छुआछूत का, अब तक किन्तु जाल!
नहीं पटी है खाई अभी भी, सुलग रही चिंगारी,
नहीं एकता आ पायेगी, रहा यदि ये हाल!

ऐसी घटनाओं से अब भी, रंगता है अख़बार!
मानव होकर भी मानव से, नहीं पनपता प्यार!

भेद भाव की उड़ा रहे हैं, अब भी दुरित भभूत!
आज भी देखो पनप रही है, वतन में छुआछूत...........

एक ही जैसे मानव हैं हम, एक लहू का रंग!
एक ही जैसी आकृति है, एक ही जैसा अंग!
"देव" मिटा दो अब ये दूरी, सबको गले लगाओ,
मन में रहे विकार न कोई, प्रेम की बजे तरंग!

एक मंच पर आ जाओ तो तुम, नहीं रहेगा खेद!
मानव को मानव से जोड़ो, नहीं रखो तुम भेद!

खद्दरधारी भेद न पाए, व्यूह करो मजबूत!
एक दूजे के हो जायें हम, मिट जाये ये छूत!"


हम जात धर्म, वर्ग भेद से पहले मानव हैं! हमे अपने मन से इस दुरित सोच को मिटाना होगा, तभी राष्ट्रीय एकता बन सकती है! यदि हम लोग जात धर्म के इसी जंजाल में फंसे रहे तो देश, खंडित खंडित होकर बिखर जायेगा और इस देश का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा!- चेतन रामकिशन "देव"







♥नारी(शक्ति पुंज) ♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥नारी(शक्ति पुंज) ♥♥♥♥♥♥♥
"शक्ति का एक पुंज नारी, दीप का प्रकाश है वो!
आस्था की भावना है, फूल का अधिवास है वो!
ना चरण की धूल है वो, रेत की भूमि नहीं,
साहसी है, निष्कपट है, सत्य का आभास है वो!

नारी बनके संगिनी, प्रेम का उपहार दे!
खुद करे पीड़ा सहन, हर्ष का व्यवहार दे!

वो रचित करती सफलता, जीत का इतिहास है वो!
शक्ति का एक पुंज नारी, दीप का प्रकाश है वो....

नारी का मन गंगाजल सा, होता नहीं विकार!
माँ बनकर के नारी देती, मधु सा मीठा प्यार!
नारी हमको देती साहस, हमको दिशा दिखाए,
नारी करती  है जीवन में, उर्जा का संचार!

नारी पुत्री रूप रचकर, हर्ष का श्रंगार दे!
वो बहन के रूप आकर, मित्रता का सार दे!

जाग्रत करती हैं चिंतन, हार का अवकाश है वो!
शक्ति का एक पुंज नारी, दीप का प्रकाश है वो....

नारी न पूजन की भूखी, वो रखती सम्मान की आशा!
नारी न वंदन की भूखी, उसको दे दो मीठी भाषा!
"देव" नहीं वो धन की भूखी, न ही उसकी सोच कलुषित,
नारी केवल ये चाहती है, भेद रहित बस हो परिभाषा!

नारी है निर्माता किन्तु, फिर भी वो आभार दे!
वो करे सम्मान सबको, वो सदा सत्कार दे!




♥प्रेम( एक निरोगी भावना)♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम( एक निरोगी भावना)♥♥♥♥♥♥♥
"प्रेम
का न प्रमाण है कोई, न कोई प्रयोग!
प्रेम,
चिकित्सा का रूपक है, है न कोई रोग!
प्रेम,
न कोई दुरित भावना, न लालच की रीत,
प्रेम,
वासना से उठकर है, न है कोई भोग!

प्रेम तिमिर को दूर भगाता, ऐसा है प्रदीप!
प्रेम भावना होती है तो घर घर जलते दीप!

प्रेम नहीं तो मानव जीवन, केवल रहे अधूरा!
प्रेम सजाता है रंगों से, नाचे मगन मयूरा!

प्रेम,
भावना सदभावों की, न हिंसा का योग!
प्रेम
का न प्रमाण है कोई, न कोई प्रयोग!"


"तो आइये प्रेम के रंगों से जीवन को सजायें, क्यूंकि अकेले प्रेम से ही जात, धर्म, हिंसा जैसे अनेको दुरित विचार समाप्त हो जाते हैं! प्रेम के साथ रहें-चेतन रामकिशन "देव"