Friday, 22 March 2013

♥♥ हालात..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ हालात..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
अपने हालात पे रोकर भी, क्या मैं पाउँगा!
सूखे पत्तों की तरह, पेड़ से गिर जाऊंगा!

याद आयेंगे तुम्हें, लम्हें मेरी चाहत के,
तेरी महफ़िल में गज़ल, जब मैं गुनगुनाऊंगा!

मुझको अंदाजा है, के जीत अभी मुश्किल है,
फिर भी तकदीर को, मैं अपनी आजमाऊंगा!

अपने माँ बाप से, जलने का हुनर सीखा है,
मैं अंधेरों से कभी, खौफ नहीं खाऊंगा!

चाँद पे घर हो तमन्ना, मैं "देव" रखता नहीं,
हाँ मगर सबकी निगाहों में, घर बनाऊंगा!"

............चेतन रामकिशन "देव".............
( २२.०३.२०१३)


♥♥खून की होली.♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥खून की होली.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
खून की होली खेल रहा है, आज ये भारत देश!
भीग गया है खून से दामन, भीग रहा गणवेश!
फिजा में देखो गूंज रहा है, हत्याओं का शोर,
आज मनुज से लुप्त हो रहे, मानव के अवशेष!

प्रेम भाव के रंगों से अब, रंगत लुप्त हुयी है!
गुंजियों से भी अपनेपन की, खुशबु सुप्त हुयी है!

रहना सहना बदल गया, बदल गया परिवेश!
रक्त की होली खेल रहा है, आज ये भारत देश...

निर्ममता से आज हो रहा, नारी का अपमान!
भूख प्यास से निकल रही है, निर्धन जन की जान!
मंचों से कहते हैं नेता, भारत उदय हुआ है,
किन्तु आज भी फुटपाथों पे, सोता हिंदुस्तान!

नेताओं के घर उड़ता है, देखो रंग गुलाल!
इधर देश का निर्धन तबका, बेबस और कंगाल!

सच्चाई का गला रेतता, मिथ्या का आदेश!
रक्त की होली खेल रहा है, आज ये भारत देश...

रंग लगाने तक न सिमटे, होली का त्यौहार!
नहीं लुटे नारी की इज्ज़त, न हो अत्याचार!
"देव" न रखे कोई मानव, अपने मन में बैर, 
एक दूजे पे नहीं करें हम, पीड़ा की बौछार!

तभी आत्मा तक पहुंचेगा, होली का संगीत!
और जहाँ में हो जाएगी, मानवता की जीत!

चलो करें हम प्रेषित सबको, प्रेम का ये सन्देश!
रक्त की होली खेल रहा है, आज ये भारत देश!"
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देश का कोई कोना, कोई स्थल, कोई स्थान, हिंसा, द्वेष से अछूता नहीं! लोग कभी मजहब के नाम पर खून बहाते हैं तो कभी दौलत के लिए..कभी कोई नारी की इज्ज़त को छिन्न-भिन्न कर देता है तो कभी नेताओं की उपेक्षा से, देश का निर्धन तबका भूखे पेट मर जाता है, चिंतन करना होगा, वरना " खून की होली" पर विराम नहीं लग सकता!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२२.०३.२०१३ 

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मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!"