Tuesday, 10 March 2015

♥♥♥गुलदस्ते...♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥गुलदस्ते...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सोचा था कुछ फूल खिलेंगे, यही सोच गुलदस्ते लाया।
अरसा बीता किसी डाल पर, फूल कोई लेकिन न आया।
यूँ तो मैंने हर दम उसको, अपने अश्कों से सींचा था,
रही कौनसी कमी आज तक, नहीं किसी ने भी समझाया।

नागफनी जैसी रातें हों और कंटीला दिन होता है।
ऑंखें रोकर लाल हो गयीं हैं, और हमारा मन रोता है।
मंचों पर जाकर पढ़ते वो, प्रेम भाव की बड़ी कविता,
पर सीने में झांकके देखो, उनका छोटा दिल होता है।

किस्मत को मंजूर न शायद, हसीं बहारों का वो साया।
सोचा था कुछ फूल खिलेंगे, यही सोच गुलदस्ते लाया...

चलो मुझे पतझड़ प्यारा है, और बिना गुल की डाली भी।
जो दे दो मंजूर  है मुझको, तड़प, वेदना, तंगहाली भी।
"देव" यदि तुम खुश होते हो, मेरे घर को फूंक फूंककर,
तो आ जाओ, नहीं रोकता, चलो मना लो दिवाली भी।

मेरी तो आदत है यारों, दुश्मन को भी गले लगाया।
सोचा था कुछ फूल खिलेंगे, यही सोच गुलदस्ते लाया। "

 ...................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-१०.०३.२०१५