♥♥♥♥♥♥निर्धन की मायूसी..♥♥♥♥♥♥♥
घोटालों की चीत्कार है, जनता है मायूस!
और दफ्तरों में लेते हैं, बाबु अफसर घूस!
देश के नेता लूट-लूट कर, भर रहे अपना कोष,
निर्धन जनता तड़प रही है, गर्मी हो या पूस!
मेरे देश के अब तो हुए हैं, बहुत बुरे हालात!
गम के बादल घिर आए हैं, हुई अँधेरी रात!
पता नहीं के रहेगा कब तक, हाल यूँ ही मनहूस!
घोटालों की चीत्कार है, जनता है मायूस..
निर्धन के जीवन में खिलते, बस कागज के फूल!
निर्धन के तन पे चिथड़े हैं और सूरत पे धूल!
निर्धन जन का जीवन स्तर, है इतना बदहाल,
उसके नंगे पांवों में तो, दुःख के चुभते शूल!
निर्धन जन के दर्द पे जाता, नहीं किसी का ध्यान!
देश का निर्धन ऐसे जीता, जैसे हो बेजान!
सब देते हैं दर्द उसे, कोई देता नहीं खुलूस!
घोटालों की चीत्कार है, जनता है मायूस!"
...........चेतन रामकिशन "देव"...........
दिनांक-१८.०२.२०१३