Sunday, 17 February 2013

♥निर्धन की मायूसी..♥


♥♥♥♥♥♥निर्धन की मायूसी..♥♥♥♥♥♥♥
घोटालों की चीत्कार है, जनता है मायूस!
और दफ्तरों में लेते हैं, बाबु अफसर घूस!
देश के नेता लूट-लूट कर, भर रहे अपना कोष,
निर्धन जनता तड़प रही है, गर्मी हो या पूस!

मेरे देश के अब तो हुए हैं, बहुत बुरे हालात!
गम के बादल घिर आए हैं, हुई अँधेरी रात!

पता नहीं के रहेगा कब तक, हाल यूँ ही मनहूस!
घोटालों की चीत्कार है, जनता है मायूस..

निर्धन के जीवन में खिलते, बस कागज के फूल!
निर्धन के तन पे चिथड़े हैं और सूरत पे धूल!
निर्धन जन का जीवन स्तर, है इतना बदहाल,
उसके नंगे पांवों में तो, दुःख के चुभते शूल!

निर्धन जन के दर्द पे जाता, नहीं किसी का ध्यान!
देश का निर्धन ऐसे जीता, जैसे हो बेजान!

सब देते हैं दर्द उसे, कोई देता नहीं खुलूस!
घोटालों की चीत्कार है, जनता है मायूस!"

...........चेतन रामकिशन "देव"...........
दिनांक-१८.०२.२०१३


♥जीवन का जुआ..♥


♥♥♥♥♥♥♥जीवन का जुआ..♥♥♥♥♥♥♥
है हार कभी जीत, ये जीवन तो जुआ है!
हर रोज जिंदगी में, नया खेल हुआ है!

पर फिर भी मुझे, जिंदगी से डर नहीं लगता,
मेरे साथ में हर दम ही, मेरी माँ की दुआ है!

लोगों को अब तो भाने लगी, मेरी लिखावट,
तेरे प्यार ने जबसे मेरे, लफ्जों को छुआ है!

दिल से मेरे ज़ख्मों के, निशां जाते नहीं हैं,
हमला मेरे दिल पे यहाँ, अपनों का हुआ है!

मैं खुद से नजर, "देव" मिलाता हूँ बेहिचक,
मेहनत से अपनी मैंने, ये आकाश छुआ है!"

..चेतन रामकिशन "देव"..
दिनांक-१७.०२.२०१३