♥♥♥....खेत पर ♥♥♥
जल गए एक ओर मेरे, पांव तपती रेत पर,
और वहां कृषक जुटा है, धूप में भी खेत पर,
ग्राम के हर देवता को, कष्ट है, संघर्ष है,
हाँ मगर के पेट सबके, भरने का भी हर्ष है।
जेठ की तपती दुपहरी, शीत हो या पूस की,
झोपड़ी सा घर है उसका, और बिस्तर फूस की।
देह तो झुलसी तपन से, मन नहीं अश्वेत पर,
और वहां कृषक जुटा है, धूप में भी खेत पर,
देश में, सूबे में बेशक, कोई भी सरकार हो।
हाथ खाली और वंचित का, उसे सरोकार हो।
"देव" वासी को महज, समझा न जाये सिर्फ मत,
सबके हित की योजना का, एक ही आधार हो।
मौन है पर, रुष्ट है वो, जान लो संकेत भर।
और वहां कृषक जुटा है, धूप में भी खेत पर। "
चेतन रामकिशन "देव "
दिनांक-०४.०५.२०१९
(सर्वाधिकार सुरक्षित, मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग http://chetankavi.blogspot.in पर पूर्व प्रकाशित)
जल गए एक ओर मेरे, पांव तपती रेत पर,
और वहां कृषक जुटा है, धूप में भी खेत पर,
ग्राम के हर देवता को, कष्ट है, संघर्ष है,
हाँ मगर के पेट सबके, भरने का भी हर्ष है।
जेठ की तपती दुपहरी, शीत हो या पूस की,
झोपड़ी सा घर है उसका, और बिस्तर फूस की।
देह तो झुलसी तपन से, मन नहीं अश्वेत पर,
और वहां कृषक जुटा है, धूप में भी खेत पर,
देश में, सूबे में बेशक, कोई भी सरकार हो।
हाथ खाली और वंचित का, उसे सरोकार हो।
"देव" वासी को महज, समझा न जाये सिर्फ मत,
सबके हित की योजना का, एक ही आधार हो।
मौन है पर, रुष्ट है वो, जान लो संकेत भर।
और वहां कृषक जुटा है, धूप में भी खेत पर। "
चेतन रामकिशन "देव "
दिनांक-०४.०५.२०१९
(सर्वाधिकार सुरक्षित, मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग http://chetankavi.blogspot.in पर पूर्व प्रकाशित)